मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा संचालित मातृभूमि शिक्षा मंदिर में भाषा संवाद कार्यक्रम संपन्न
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। जन्म लेने के पश्चात मानव जो प्रथम भाषा सीखता है उसे मातृभाषा कहते हैं। यह भाषा सीखने के लिए उसे कहीं बाहर नहीं जाना पड़ता। यह विरासत की तरह घर के परिवेश और लोगों द्वारा उसके अंदर स्वयमेव समाहित होती जाती है और यही उसकी सामाजिक और भाषाई पहचान बन जाती है। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर व्यक्त किए। इस अवसर पर मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा संचालित मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों के बीच मातृभाषा का महत्व विषय पर भाषा संवाद संभाषण प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। जिसमें प्रथम स्थान गौरव, द्वितीय आकाश एवं तृतीय नुकुल ने प्राप्त किया। मातृभूमि सेवा मिशन की ओर से प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया गया।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि बचपन में जिस भाषा से पहला परिचय होता है, जिस भाषाई परिवेश में हम रहते हैं, बढ़ते हैं वह भाषा मातृभाषा कहलाती है। मातृभाषा हमारे संस्कारो की संवाहक होती है और राष्ट्रीयता एवं देशप्रेम की भावना का निर्माण करती है। मातृभाषा के बिना किसी भी देश की संस्कृति की हम कल्पना भी नहीं कर सकते। विश्व में ऐसी कई भाषाएँ और बोलियाँ हैं जो आज विलुप्ति की कगार पर हैं और उनका संरक्षण करना अत्यावश्यक है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया भर में बोली जाने वाली छह हजार भाषाओं में से लगभग हर दो सप्ताह में एक भाषा गायब हो जाती है जो सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को नष्ट कर देती है। यूनेस्को का यह मानना है कि बचपन से ही मातृभाषा के आधार पर बच्चों को शिक्षा देनी चाहिए क्योंकि यही शिक्षा सीखने की नींव है। दुनिया भर में अपनी भाषा संस्कृति के प्रति लोगों में रुचि जागृत करना और जागरूकता फैलाना ही अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का उद्देश्य है। इस दिवस पर संयुक्त राष्ट्र का शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन और संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियाँ भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों में भाग लेती हैं। साथ ही साथ लोगों को एक से अधिक भाषा सीखने और अपनी मातृभाषा के बारे में अपने ज्ञान को बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व भर में बोली जाने वाली 6000 भाषाओं में से लगभग 2680 भाषाएं 43 प्रतिशत समाप्त प्राय होती जा रही हैं। गायब होने की रफ्तार तीव्र है, तकरीबन हर महीने दो भाषा गायब हो जाती है, इस से क्षेत्रीय सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत नष्ट होने के कगार पर है। डिजिटल क्रांति में पिछड़ती छोटी भाषाएं अपना अस्तित्व नहीं बचा पा रही है। डिजिटल प्लेटफॉर्म में सौ से भी कम भाषाओं का उपयोग होता है। वैश्विक स्तर पर छोटे छोटे देशों की मातृभाषाएं विभिन्न क्षेत्रें में प्रचलित हैं। वर्ल्ड डाटा इंफो के अनुसार भारत की राजभाषा होने के साथ-साथ हिन्दी सात देशों में मातृभाषा के रूप में प्रमुख स्थान रखती है। इनमें फिजी, न्यूजीलैंड, जमैका, सिंगापुर, ट्रिनिडाड टोबैगो, मॉरीशस आदि प्रमुख हैं। भारत में चार कोस पर बदले बानी तो है ही और यही विविधता इसकी पहचान भी है। पापुआ न्यू गिनी जैसा क्षेत्र उच्च भाषायी विविधता का उदाहरण है। यहां 3-9 मिलियन आबादी द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं की संख्या लगभग 832 है। ये भाषाएं 40 से 50 अलग-अलग भाषा परिवारों से सम्बन्ध रखते हैं। विश्व के तकरीबन 60 प्रतिशत लोग केवल 30 प्रमुख भाषाएं बोलते हैं।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि भारत का दुर्भाग्य है कि हमारे यहां लोग मातृभाषा में बात करने से कतराते हैं। कोई अगर अपनी मातृभाषा में बात करता है तो उसे गंवारु मान लिया जाता है, उसके कौशल को कम करके आंका जाता है। अंग्रेजी मानसिकता ने भाषा को सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है। अगर हम अपनी मातृभाषाओं को बढ़ावा नहीं देंगे तो भाषाई विविधता स्वयं ही समाप्त हो जाएगी। भारत जैसे देश में करोड़ों विद्यार्थियों की मातृभाषा और पढाई की भाषा समान नहीं होने के कारण शिक्षा अक्सर चुनौतीपूर्ण बन जाती है। मातृभाषा आधारित बहुभाषी शिक्षा से ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं लक्ष्य को प्राप्त प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में दी जाए। मातृभाषा के साथ, अदालत की कार्यवाही और उनसे जुड़े फैसलों में स्थानीय भाषाओं के उपयोग की भी आवश्यकता है। उच्च और तकनीकी शिक्षा में स्वदेशी भाषाओं के उपयोग में धीरे-धीरे बढ़ोतरी भी इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। भारत विकास के सभी क्षेत्रें में मातृभाषा का प्रयोग करके दुनिया का एक संपन्न राष्ट्र बन सकता है।कार्यक्रम में विद्यालय के शिक्षक एवं अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहे।