Friday, November 22, 2024
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घरफूंक थियेटर फेस्टिवल में “आड़ी टेढ़ी मुग़ल-ए-आज़म” ने बिखेरे हास्य के रंग

by Newz Dex
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न्यूज डेक्स संवाददाता

रोहतक। ‘गैर पेशेवर लोग जब कला पर काबिज़ हो जाते हैं तो कला और कलाकारों का क्या हश्र होता है’, यही संदेश दिया घरफूंक थियेटर फेस्टिवल में इस बार हुए नाटक ‘आड़ी टेढ़ी मुग़ल-ए-आज़म’ ने। सप्तक रंगमंडल, सोसर्ग और पठानिया वर्ल्ड कैम्पस के संयुक्त तत्वावधान में बिना किसी सरकारी सहायता के आयोजित इस आत्मनिर्भर फेस्टिवल की यह 39वीं प्रस्तुति थी, जो हास्य के रंग बिखेरने में कामयाब रहा। रूबरू थिएटर ग्रुप दिल्ली के कलाकारों द्वारा अभिनीत इस नाटक का लेखन एवं निर्देशन आकाशवाणी दिल्ली की कार्यक्रम अधिशासी काजल सूरी ने किया।

हास्य-व्यंग्य से भरपूर ‘आड़ी टेढ़ी मुग़ल-ए-आज़म’ में दिखाया गया कि एक गैंगेस्टर पर फ़िल्म बनाने का भूत सवार हो जाता है। बतौर प्रोड्यूसर फ़िल्म बनाने के लिए वह एक संघर्षरत फ़िल्म निर्देशक, उसकी मौसी (असिस्टेंट डायरेक्टर) व जुगाड़ू कहानीकार को साइन कर लेता है और उन्हें मुग़ल-ए-आज़म की तरह भव्य लेकिन सस्ती फ़िल्म बनाने को कहता है। जल्दी फ़िल्म पूरी करने के चक्कर में वह कलाकारों की कास्टिंग भी खुद ही कर देता है और अपने अड़ोसी पड़ोस, चाय वाले, सब्ज़ी वाले, पान वाले व रिश्तेदारों को रोल बांट देता है। अति तो तब हो जाती है जब निर्देशक को भी काम नहीं करने देता। वह पिस्तौल के दम पर उस को धमका कर मनमाने संवाद बुलवाने लगता है और उस बेकहानी फ़िल्म की ऐसी-तैसी कर देता है। ज़ाहिर है कि ऐसे में जो फ़िल्म बनती है वह मुग़ल-ए-आज़म नहीं, बल्कि आड़ी टेढ़ी मुग़ल-ए-आज़म होती है। रही सही कसर लेखक डर के मारे उसका ऊल जुलूल क्लाइमेक्स सुझा कर पूरी कर देता है। बेचारे निर्देशक व ए. डी. अपने सामने फ़िल्म का सत्यानाश होते देखते हैं। मज़े की बात यह होती है कि निर्माता को वही अंत पसंद आ जाता है और वह कहता है कि फ़िल्म पूरी होने के बाद वह उसे रिलीज करने की बजाय डब्बे में बंद कर देगा, ताकि कोई और उसके आइडिए को चुरा न ले। नाटक में शुरू से अंत तक खूब हास्य पूर्ण परिस्थितियां बनती हैं, जिनका दर्शक भरपूर आनंद उठाते हैं।

में आस्था ने रेशम व अनारकली की भूमिका में खूब वाहवाही बटोरी। डायरेक्टर के रूप में शान्तनु, मौसी व एडी की भूमिका में जसकिरण चोपड़ा, ख़ामख़ा घुसपेठी तथा राइटर के रूप में शुभम, अहमक खबती व अकबर के रूप में जतिन, कवि कुँवारे भाई पलीत व प्रोड्यूसर के रूप में धरम, बेअदब शिकारपुरी,रतन व सलीम के रूप में राहुल, कवि नटखटचिलमभरू व टोखा के रूप में आकाश, मुन्नी व जोधा बाई के रूप में श्रद्धा, रोशन के रूप में महेश और ज्योतिषी मगन महाराज की भूमिका में उमेर ने भी प्रभावित किया। शान्तनु और आस्था असिस्टेंट डायरेक्टररहे, जबकिमेक उप राशिद भाई का रहा। लाइट पर रितेश व म्यूजिक पर लोकेश रहे। वीडियो एंड स्टिल्स अंजली बंसल के रहे। मंच संचालन सुजाता ने किया।

इस अवसर पर स्थाई लोक अदालत के पूर्व न्यायिक सदस्य अश्विनी जुनेजा, वरिष्ठ बैंक अधिकारी इंदरजीत सिंह भयाना, समाजसेवी डॉ. आर एस दहिया, डॉ. एस जेड एच नकवी, डॉ. राजेन्द्र शर्मा, रमणीक मोहन, गुलाब सिंह, सप्तक के अध्यक्ष विश्व दीपक त्रिखा, शक्ति सरोवर त्रिखा, अविनाश सैनी, यतिन वधवा, विकास रोहिल्ला, जगदीप जुगनू, महक कथूरिया, सिद्धार्थ भारद्वाज, राहुल सहित अनेक नाट्यप्रेमी उपस्थित रहे।

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