‘‘राष्ट्रभाव के जागरण में हिन्दी की भूमिका’’ विषय पर व्याख्यान आयोजित
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र, 19 सितंबर। विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा ‘राष्ट्रभाव के जागरण में हिन्दी की भूमिका’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। संस्थान द्वारा आयोजित चौदहवें व्याख्यान में महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी (बिहार) के कुलपति प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा मुख्य-वक्ता रहे। व्याख्यान में संस्थान के संगठन सचिव श्रीराम आरावकर का सान्निध्य प्राप्त हुआ।
संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने अतिथि परिचय कराते हुए बताया कि प्रो. शर्मा भारतीय राजनीति विज्ञान संघ के महासचिव एवं कोषाध्यक्ष हैं। उन्होंने अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक कार्यक्रमों का आयोजन किया है। देश के 150 से अधिक विश्वविद्यालयों के साथ शैक्षणिक रूप से जुड़े हुए हैं। ऐसे महान विद्वान जिनका पूरा करियर राजनीति विज्ञान का रहा है और शिक्षाविद् होने के नाते देश और विदेश में आपने यात्राएं की हैं, इन सबके इतर प्रो. शर्मा को देववाणी संस्कृत का असाधारण ज्ञान भी है। तत्पश्चात इंदौर से जुड़े सुविख्यात बाल साहित्यकार गोपाल माहेश्वरी ने स्वरचित कविता ‘‘शीश पर नव रसों के कलश धर चली, रम रही है जो भारत हृदय की गली’’ प्रस्तुत की।
प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने कहा कि हिन्दी भारत को जोड़ने का बहुत बड़ा सेतु है। भारत को संयुक्त रखने की बहुत बड़ी शक्ति है। भारत को भारत बनाए रखने का आधार प्रदान करती है। इसके अंदर वह सामर्थ्य है केवल उसके साहित्य की नहीं है या लोगों को हिन्दी समझने की क्षमता की नहीं है, वह सामर्थ्य सब को जोड़ने की शक्ति में है। वह इसलिए है कि सब हिन्दी को भारत की स्वाभाविक भाषा मानते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में हिन्दी पत्रकारिता के बहुत से व्यक्ति हैं जिन्होंने पत्रकारिता के माध्यम से राष्ट्रीयत्व के भाव को केवल जाग्रत नहीं किया वरन् उसे स्थायी भाव बनाया। स्थायी बनाने के साथ उसकी सम्प्रेषणीयता, उसका संचारण बढ़ाया। हिन्दी को भाषा के रूप में, साहित्य के रूप में पढ़ने के साथ-साथ माध्यम के रूप में पढ़ना यही इसकी विशेषता है।
प्रो. शर्मा ने कहा कि भाषा के प्रति हमारी सजगता कम हुई है। उसका परिणाम है कि हमने उसे सरल, सुबोध, सुगम कहकर उसमें बहुत कुछ सम्मिलित कर दिया है। हमने हिन्दी का अभ्यास कम कर दिया है। यही कारण है कि अंग्रेजी सरल लगने लगी। भाषा के प्रति हमारी संवेदनशीलता में कमी आई है। उन्होंने कहा कि हिन्दी भारत में अपनी व्याप की दृष्टि से, स्वीकार्यता की दृष्टि से, अपनी विषय वस्तु की दृष्टि से, लिखी जाने वाली सामग्री की दृष्टि से, पत्रकारिता की दृष्टि से और अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से बहुत सम्पन्न है और हमारी सहायता करती है। इसके लिए आवश्यक है कि हम हिन्दी के माध्यम से अपनी परम्परा, अपनी संस्कृति, अपने देश, उसके श्रेष्ठ तत्वों को सामने लाने में समर्थ हुए हैं क्या? कर सकते हैं क्या? करेंगे क्या? यह एक महत्वपूर्ण विषय है।
उन्होंने कहा कि हिन्दी की शक्ति के संवर्द्धन में, हिन्दी के संरक्षण में, हिन्दी के राष्ट्रीयत्व का प्रतिबिम्ब बनने के सामर्थ्य की अभिवृद्धि में हमारा योगदान तब होगा जब भारतीय अन्य भाषाओं को बोलने वालों को भी साथ-साथ लेंगे। प्रो. शर्मा ने राष्ट्रीय आन्दोलन को हिन्दी से जोड़ते हुए स्वतंत्रता से पूर्व एवं बाद में लिखी अनेक कवियों की रचनाएं सुनाईं। उन्होंने रामधारी सिंह दिनकर, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत, अज्ञेय जी की राष्ट्रभाव जगाती अनेक कविताओं को सुनाकर राष्ट्रभाव के जागरण में हिन्दी की भूमिका को चरितार्थ किया।
इस अवसर पर विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के संगठन मंत्री श्रीराम आरावकर ने कहा कि हिन्दी साहित्य और हिन्दी भाषा का राष्ट्रभाव में जो योगदान रहा है, वह समय-समय पर ध्यान में आता है। संघ के गीत भी हिन्दी साहित्यकारों ने ही लिखे हैं। स्वतंत्रता के पश्चात दुर्भाग्य से हिन्दी की उपेक्षा हुई। जिस प्रकार किसी परिवार या देश की प्रतिष्ठा नहीं बढ़ती है तो उसके लिए दूसरे देश के लोग जिम्मेदार नहीं होते, उसी प्रकार जिस भाषा की प्रतिष्ठा नहीं बढ़ रही है, उसका कारण उस भाषा के बोलने वाले ही हैं।
आज केवल हिन्दी ही नहीं बल्कि भारत की अन्य भाषाओं के सामने भी यह समस्या खड़ी हुई है। उसका कारण अंग्रेजी के प्रति मोह ही है। हमें लगता है कि अभी भी उसी दबाव में ही हैं। यह जो मानसिक दबाव हमने अपने पर ओढ़ लिया है, इसे हटाने की आवश्यकता है। राष्ट्रभाव के जागरण का सबसे बड़ा अर्थ है कि किसी भी स्थिति में हम अपनी मातृभाषा व भाषाओं को बचाएं। उसका साहित्य समृद्ध करें और उसे लोक व्यवहार में लाएं। व्याख्यान के अंत में संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने वक्ता एवं देशभर से जुड़े सभी श्रोताओं का धन्यवाद किया और सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना के साथ व्याख्यान का समापन हुआ।
फोटो: व्याख्यान देते हुए महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी (बिहार) के कुलपति प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा, वि.भारती के राष्ट्रीय मंत्री श्रीराम आरावकर, बाल साहित्यकार गोपाल माहेश्वरी एवं संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह।