न्यूज़ डेक्स संवाददाता
अयोध्या धाम। महामण्डलेश्वर गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज ने अयोध्या में आयोजित 4 दिवसीय दिव्य गीता सत्संग में उपस्थित श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि भगवान धर्म की स्थापना के लिए प्रकट होते हैं। परंपराओं, मूल्यों और आदर्शों की स्थापना यही धर्म का वास्तविक अमृत है। अयोध्या की मणिराम छावनी में जीओ गीता एवं कृष्ण कृपा परिवार द्वारा आयोजित सत्संग में बोलते हुए ज्ञानानंद जी ने कहा कि जहां कृष्ण हैं वही धर्म है तथा राम और कृष्ण दोनों ही एक हैं। उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण ने वन से राजमहल तक सफर किया तो दूसरी ओर भगवान राम महल में जन्म लेकर वन की ओर गए। लेकिन उन्होंने परंपरा नहीं छोड़ी। इसी प्रकार भगवान कृष्ण ने द्वारिकाधीश बन कर भी परम्परा निभाई।
उन्होंने कहा कि गीता के सारे लक्षण साक्षात् राम के रूप में प्रकट होते हैं। व्यक्ति को अनुकूल परिस्थितियों में भी संकीर्णता नहीं लानी चाहिए। उन्होंने कहा कि आज सभी श्रद्धालुओं को अयोध्या धाम से संकीर्णता से ऊपर उठकर जीने की प्रेरणा लेकर जाना चाहिए। मानव में श्रेय लेने की नहीं बल्कि श्रेय देने की भावना होनी चाहिए। स्वयं में सम्मान चाहने की नहीं सम्मान देने की भावना पैदा करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सेवा की भावना आने से व्यक्तित्व में निखार आता है। जीव को जिस भाव से जरूरत होती भगवान उसी भाव से प्रकट हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि गीता और रामायण में एक ही बात कही गई है कि जब-जब धर्म की हानि होती है तब-तब भगवान प्रकट होते हैं। वह जब चाहें, जहां चाहें, जिस रूप में चाहें, वहीं प्रगट हो सकते हैं। जीव में सत्संग सुनने की लालसा बनी रहनी चाहिए। तीर्थ में आना सौभाग्य की बात है और तीर्थ में आकर सत्संग सुनने का अवसर मिल जाए तो वह सबसे बड़ा सौभाग्य है। उन्होंने कहा कि भगवद् प्राप्ति का सबसे बड़ा साधन सत्संग ही है।