इस बीमारी से पीड़ित रोगियों के तीमारदारों को जरूरत है सजगता की : डॉ०ममगाईं
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र ,21 सितंबर। भारत रतन एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ,पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिसऔर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन में एक बहुत बड़ी समानता थी कि वह उस रोग से पीड़ित थे जिसे आज पूरे विश्व में मनाया जा रहा है। यह दिवस है -विश्व अल्जाइमर दिवस।यह जानकारी लोकनायक जयप्रकाश जिला नागरिक अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक और हृदय एवं छाती रोग विशेषज्ञ डॉ०शैलेंद्र ममगाईं शैली ने आज अस्पताल परिसर में विश्व अल्जाइमर दिवस पर आयोजित गोष्ठी में दी।
डॉ०शैली ने बताया कि भारत में 50 लाख से ज्यादा लोग मानसिक बीमारियों से पीड़ित हैं जिनमें से 80 प्रतिशत लोग इस बीमारी की चपेट में है। आशंका है, कि 2030 तक यह संख्या दुगनी हो जाएगी । यह एक तरह की दिमागी बीमारी है जिसमें मानसिक क्षमता में गिरावट आ जाती है और आने वाले समय में साधारण जिंदगी जीने में मुश्किल होती है। सरल भाषा में समझें, तो इस भूलने वाली बीमारी को ही अल्जाइमर रोग कहते हैं।
इसमें अक्सर लोग छोटी बातें भूल जाते हैं। इसका मूल कारण मस्तिष्क में एमीलाइड प्रोटीन की मात्रा बढ़ना है जिससे मस्तिष्क की कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं और उसकी याददाश्त ,सोचने की शक्ति,व्यवहारिक व बौद्धिक ज्ञान प्रभावित होता है। कोविड-19 के संक्रमण से सबसे ज्यादा बुजुर्ग प्रभावित हो रहे हैं। अल्जाइमर नामक बीमारी भी 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को होती है जिसमें मस्तिष्क की कोशिकाएं सिकुड़ जाती हैं और दिमाग की कोशिकाओं में कुछ रसायनिक तत्वों की मात्रा असंतुलित हो जाती है ।
डॉ०ममगाईं ने बताया कि अल्जाइमर रोग को लेकर हमारा शरीर पहले से कई तरह के संकेत देता है। उदाहरण के तौर पर यदि रोगी यदि व्यक्ति ने 10 मिनट पहले कोई काम किया है या फिर वह सोचता है कि उसने काम किया था या नहीं, तो यह संभव है कि वह इस बीमारी से पीड़ित हो।इस बीमारी के लक्षणों की चर्चा करते हुए डॉ० शैली ने बताया कि शुरुआती दौर में इस बीमारी के लक्षणों को उस व्यक्ति के व्यवहार से पता चलाया जा सकता है जिनमें याददाश्त का कमजोर होना, समय-जगह से भटकाव होना ,एक ही सवाल को बार-बार पूछना ,आसान गिनती न कर पाना, रिश्तेदारों के नाम भूलना और स्वभाव में बदलाव आना मुख्य रूप से शामिल है।
इस बीमारी के इलाज की चर्चा करते हुए डॉ०शैली ने बताया कि इस बीमारी का अभी तक कोई पुख्ता इलाज नहीं है लेकिन मस्तिष्क की कोशिकाओं में रसायनों की मात्रा को संतुलित करने के लिए दवाओं का प्रयोग किया जाता है जिससे रोगियों की याददाश्त और उनकी सूझबूझ में सुधार हो सकता है ।दवाई जितनी जल्दी शुरू की जाए उतना ही फायदेमंद होता है ।इसके अलावा दवाओं के साथ-साथ रोगियों और उनके परिजनों को भी काउंसलिंग की जरूरत होती है।
डॉक्टर शैली ने परामर्श दिया कि ऐसे बुजुर्गों को कब दवा लेनी है, और कितनी डाइट रखनी है ,यह निश्चित करना होगा और भूलने के चलते उन्हें एक चार्ट बनाकर उसमें दिनचर्या लिखनी होगी या मोबाइल में रिमाइंडर लगाना होगा और रोगियों के तीमारदारों को और ज्यादा सजग और धैर्यवान रहने की जरूरत रहती है।इसके अलावा इस बीमारी से पीड़ित रोगियों के लिए उच्च प्रोटीन युक्त भोजन ,मौसमी फल, हरी सब्जियां ,विटामिन से भरपूर खाद्य पदार्थ, फिजिशियन की सलाह पर सप्लीमेंट और समय पर दवाओं का सेवन बहुत जरूरी है जिससे उसकी प्रतिरोधी क्षमता बनी और बढ़ती रहेगी।
गोष्ठी में भाग लेने वालों में वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ विमल कुमार, वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर मेजपाल ,नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अनिता गोयल , मुख्य तकनीकी अधिकारी नरेश सैनी ,वरिष्ठ स्टाफ नर्स सविता शर्मा,परविंदर कौर, रोगी और उनके परिजन एवं अन्य कर्मचारी अधिकारी मौजूद थे।