मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा भारतीय आजादी के अमृतोत्सव एवं भारतरत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती के अवसर पर कार्यक्रम संपन्न
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। डॉ. अम्बेडकर समानता को लेकर काफी प्रतिबद्ध थे। उनका मानना था कि समानता का अधिकार धर्म और जाति से ऊपर होना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को विकास के समान अवसर उपलब्ध कराना किसी भी समाज की प्रथम और अंतिम नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए। अगर समाज इस दायित्व का निर्वहन नहीं कर सके तो उसे बदल देना चाहिए। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने भारतीय आजादी के अमृतोत्सव एवं भारतरत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किए। कार्यक्रम का शुभारंभ भारतमाता एवं डॉ. भीमराव अंबेडकर के चित्र पर पुष्पार्चन एवं दीपप्रज्जवलन से हुआ। इस अवसर पर मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा संचालित मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन दर्शन से संबंधित अनेक संस्मरण सुनाए व डॉ. भीमराव अंबेडकर के बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि भारतरत्न डॉ. भीमराव अम्बेडकर भारत के संविधान निर्माता, चिंतक और समाज सुधारक थे। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने हमेशा स्त्री-पुरुष समानता का व्यापक समर्थन किया। यही कारण है कि उन्होंने स्वतंत्र भारत के प्रथम विधिमंत्री रहते हुए हिंदू कोड बिल संसद में प्रस्तुत किया और हिन्दू स्त्रियों के लिए न्याय सम्मत व्यवस्था बनाने के लिए इस विधेयक में उन्होंने व्यापक प्रावधान रखे। डॉ. अंबेडकर का लक्ष्य था कि सामाजिक असमानता दूर करके दलितों के मानवाधिकार की प्रतिष्ठा करना। डॉ. अंबेडकर ने गहन.गंभीर आवाज में सावधान किया था, 26 जनवरी 1950 को हम परस्पर विरोधी जीवन में प्रवेश कर रहे हैं। हमारे राजनीतिक क्षेत्र में समानता रहेगी किंतु सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में असमानता रहेगी। जल्द से जल्द हमें इस परस्पर विरोधता को दूर करना होगी। वर्ना जो असमानता के शिकार होंगे, वे इस राजनीतिक गणतंत्र के ढांचे को उड़ा देंगे। डॉ. अंबेडकर के अलावा भारतीय संविधान की रचना हेतु कोई अन्य विशेषज्ञ भारत में नहीं था। अतः सर्वसम्मति से डॉ. अंबेडकर को संविधान सभा की प्रारूपण समिति का अध्यक्ष चुना गया। 26 नवंबर 1949 को डॉ. अंबेडकर द्वारा रचित 315 अनुच्छेद का संविधान पारित किया गया।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि डॉ. भीमराव अम्बेडकर भारत के आधुनिक निर्माताओं में से एक माने जाते हैं। उनके विचार व सिद्धांत भारतीय राजनीति के लिए हमेशा से प्रासंगिक रहे हैं। दरअसल वे एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था के हिमायती थे, जिसमें राज्य सभी को समान राजनीतिक अवसर दे तथा धर्म, जाति, रंग तथा लिंग आदि के आधार पर भेदभाव न किया जाए। उनका यह राजनीतिक दर्शन व्यक्ति और समाज के परस्पर संबंधों पर बल देता है। उनका यह दृढ़ विश्वास था कि जब तक आर्थिक और सामाजिक विषमता समाप्त नहीं होगी, तब तक जनतंत्र की स्थापना अपने वास्तविक स्वरूप को ग्रहण नहीं कर सकेगी। जब सामाजिक चेतना के अभाव में जनतंत्र आत्मविहीन हो जाता है। ऐसे में जब तक सामाजिक जनतंत्र स्थापित नहीं होता है, तब तक सामाजिक चेतना का विकास भी संभव नहीं हो पाता है। डॉ. अम्बेडकर जनतंत्र को एक जीवन पद्धति के रूप में भी स्वीकार करते हैं, वे व्यक्ति की श्रेष्ठता पर बल देते हुए सत्ता के परिवर्तन को साधन मानते हैं। वे कहते थे कि कुछ संवैधानिक अधिकार देने मात्र से जनतंत्र की नींव पक्की नहीं होती। उनकी जनतांत्रिक व्यवस्था की कल्पना में नैतिकता और सामाजिकता दो प्रमुख मूल्य रहे हैं जिनकी प्रासंगिकता वर्तमान समय में बढ़ जाती है। कार्यक्रम में मिशन के सदस्यों सहित अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहे।