न्यूज डेक्स संवाददाता
पानीपत। मुगल काल में हिंदू धर्म खतरे में था। मुस्लिम बादशाह औरंगजेब की धर्मांतरण की मुहिम उन दिनों जोरों पर थी । श्री गुरु तेग बहादुर जी ने अपनी शहादत देकर सहमी जनता को जुल्म के खिलाफ खड़ा होना सिखाया। श्री गुरु तेग बहादुर जी के 400 वें प्रकाशोत्सव पर पानीपत में उनके तप, त्याग, तपस्या और बलिदान को दर्शाती हुई प्रदर्शनी देखकर देश दुनिया से आने वाले श्रद्धालु अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहे थे कि हिंदुस्तान की इस धरा पर ऐसे महान गुरुओं ने जन्म लिया था।
17 वीं सदी के उस दौर में कश्मीरी हिन्दू औरंगजेब के धर्मांतरण और अत्याचार से तंग आ चुके थे । तब 500 कश्मीरी ब्रह्मणों का जत्था श्री गुरु तेगबहादुर जी के पास आंनदपुर साहिब पहुंचा । उनके नेता पंडित कृपा राम ने गुरु जी को औरगजेब बादशाह के अत्याचारों के बारे में बताया कि उन्हें धर्मांतरण के लिए मजबूर किया जा रहा है । उन्होंने गुरु जी से जुल्म और धर्मांतरण से बचाने की गुहार की।
उन्होंने जबरन धर्म परिवर्तन , धार्मिक समारोहों पर प्रतिबंध , मंदिरों की तोड़ फोड़ और जनसंहार पर विस्तार से बताया । गुरु साहिब ने ब्राह्मणों से कहा था कि हिंदू धर्म को बचाने के लिए अब किसी महान व्यक्ति को कुर्बानी दे कर नई अलख जगानी पड़ेगी । इस पर उनके साथ खड़े 9 वर्षीय बेटे गोविंद ने कहा कि पिताजी आप से महान व्यक्ति इस समय और कौन है।
धर्म की रक्षा के लिए श्री गुरु तेग बहादुर साहिब 10 जुलाई , 1675 ई . को चक्क नानकी ( अनंदपुर साहिब ) से भाई मती दास , भाई सती दास और भाई दयाला जी के साथ दिल्ली के लिए रवाना हुए । नवंबर , 1675 ई . को गुरु साहिब को गिरफ्तार कर लिया। गुरु जी ने औरंगजेब को यह चैलेंज किया था कि अगर उसे जिंदा इस्लाम कबूल करवा देंगे तो हिंदुस्तान के बाकी नागरिक इस्लाम कबूल कर लेंगे लेकिन अगर वह उसे इस्लाम कबूल नहीं करवा पाए तो उन्हें यह वादा करना पड़ेगा कि उसके बाद हिंदुओं पर जबरदस्ती इस्लाम कबूल का दबाव नहीं डाला जाएगा।
औरंगजेब ने पहले प्रलोभन और फिर अत्याचार करके उन्हें मुस्लिम धर्म अपनाने का दबाव डाला लेकिन महान गुरु ने हिंद का सिर नीचे नहीं होने दिया। तीनों गुरसिखों को खौफनाक यातनाएं देकर गुरु साहिब के सामने शहीद कर दिया गया । उसी दिन गुरु साहिब को भी चांदनी चौक में सिर धड़ से अलग कर शहीद कर दिया गया। जिस शिला पर गुरु तेग बहादुर साहिब को शहीद किया गया उस शिला को सरदार बघेल सिंह ने उखाडक़र बुंगा रामगढिय़ा श्री अमृतसर पहुंचाया था । यह स्थान तख्त श्री केसगढ़ साहिब से 500 मीटर और बस अड्डा से 400 मीटर और गुरुद्वारा भोरा साहिब के सामने स्थित है । गुरु जी ने अपने प्राणों की परवाह ना करते हुए दूसरों के लिए कुर्बानी दी थी। यही कारण है कि श्री गुरु तेग बहादुर जी को हिन्द की चादर कहा जाता है।