Sunday, November 24, 2024
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वेस्ट मटेरियल से तैयार होगी ग्रीन कांक्रीट,दो दिवसीय कोलोक्वियम में शोध छात्रों ने दी प्रभावी प्रस्तुति

by Newz Dex
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न्यूज डेक्स मध्यप्रदेश

भोपाल। अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन एवं नीति विश्लेषण संस्थान द्वारा आयोजित दो दिवसीय कोलोक्वियम के पहले दिन “प्राकृतिक संसाधन” पर केन्द्रित सत्र में शोध छात्रों ने कृषि, पशुपालन, पर्यावरण आदि पर प्रभावी प्रस्तुति दी। शासकीय पॉलीटेक्निक सेंधवा के व्याख्याता एवं सिविल इंजीनियर गौरव दानी ने बताया कि वे जैविक, ई-वेस्ट, ठोस अपशिष्ट आदि सभी तरह के वेस्ट मटेरियल से ग्रीन कांक्रीट बनाने की दिशा में शोध कर रहे हैं। ग्रीन मटेरियल पर्यावरण रक्षा के साथ किफायती भी होगा।

नीतेश बालाजी ठिकारे ने भी अपना शोध-पत्र प्रस्तुत करते हुए बताया कि वह भी 70 प्रतिशत सीमेंट में 30 प्रतिशत चावल का भूसा और कारखानों से निकलने वाली राख से कांक्रीट बनाने का कार्य कर रहे हैं। राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि संस्थान ग्वालियर के गणेश मालवीय और भारती परमार ने बताया कि देश में 500 मीट्रिक टन नरवाई निकलती है, जिसमें से लगभग 116 मीट्रिक टन जला दी जाती है, जिसका मिट्टी की उर्वरा शक्ति और पर्यावरण पर दुष्प्रभाव पड़ता है। उन्होंने ऐसे कई उपाय बताये, जिसमें किसान नरवाई का उपयोग करते हुए अपनी भूमि को पुन: उपजाऊ बना सकते हैं।

आईआईटी इंदौर के शिवम सिंह ने ‘एटमास्फेरिक रिवर्स’ पर केन्द्रित प्रस्तुतिकरण में बताया कि कई बड़ी ऐतिहासिक बाढ़ विभीषिकाएँ नदियों से जुड़ी हैं। उन्होंने आपदा से पहले वार्निंग सिस्टम विकास की दिशा में किये जा रहे प्रयासों की जानकारी दी। आईआईएफएम की ज्योत्सना ने केरल में क्लाईमेंट चेंज के परिप्रेक्ष्य में समुद्री तट क्षेत्र में प्रबंधन पर जानकारी दी। गुरुप्रीत चौहान ने ‘रोल ऑफ कल्चरेशन इन्क्लूडिंग सेल्फ रेगुलेटेड बिहेवियर टूवर्ड्स क्लाईमेट चेंज इन एमपी’ पर प्रस्तुतिकरण दिया। नानाजी देशमुख कृषि विश्वविद्यालय की रश्मि विश्वकर्मा ने क्लाईमेट चेंज के परिप्रेक्ष्य में पशुपालन और उत्पादन से संबंधित प्रस्तुतिकरण दिया। रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के अमित खरवड़े ने उपयोग के बाद निकले हुए गंदे पानी को पुन: सदुपयोग में लाने के संबंध में अपने प्रयास बताये। विशेषज्ञों में पूर्व प्रधान वन संरक्षक डॉ. रामप्रसाद, वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी एप्को डॉ. लोकेन्द्र ठक्कर, सीएसआईआर एम्प्री के डॉ. अशोकन प्रभु, प्रो. यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ अफ्रीका डॉ. पारुल और कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व अधिष्ठाता डॉ. अनिल कुमार शामिल थे।

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