सरस्वती के फिर से धरातल पर प्रवाहित होने से समाप्त होगी डार्क जोन की समस्या
संस्कृति और सभ्यता को सहेजने के होंगे प्रयास, पर्यटन की अपार संभावनाओं में होगी वृद्धि
इसरो सहित अन्य वैज्ञानिकों ने भी माना करीब 5 हजार वर्ष पूर्व हरियाणा से बहती थी सरस्वती नदी
प्रदेश सरकार ने वर्ष 2015 में लोगों को तथ्यों के साथ दी सरस्वती नदी की जानकारी
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष धुम्मन सिंह किरमच ने कहा कि विश्व की सबसे पवित्र एवं ज्ञान की देवी सरस्वती नदी का उदगम स्थल हरियाणा प्रदेश में आदि बद्री यमुनानगर में है। इस स्थल पर सरकार की तरफ से डैम, बैराज और सरस्वती सरोवर का निर्माण करने की परियोजना के लिए 800 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया गया है। इस परियोजना के तहत बाढ़ के पानी से प्रभावित तकरीबन 894 हेक्टेयर भूमि पर बरसात के समय आने वाले पानी का प्रबंध किया जाएगा।
बोर्ड के उपाध्यक्ष धुम्मन सिंह किरमच ने कहा कि पवित्र नदी सरस्वती सभ्यता, संस्कृति और शिक्षा की जननी और पालक रही है, इस पवित्र नदी को फिर से धरातल पर लाने के प्रयास सरकार द्वारा किए जा रहे है। वेदों की रचना और पवित्र ग्रंथ गीता के उपदेश भी इसी पवित्र नदी के किनारे पर जन्मे और इस नदी के बारे में जितनी भी शंकाए थी, उनका समाधान किया जा चुका है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह साबित हो चुका है कि हरियाणा की गोद से ही पवित्र नदी सरस्वती का प्रवाह करीब 5 से 7 हजार वर्ष पुराना रहा है और वैदिक काल में इसका उदगम स्थल आदि बद्री रहा है।
प्राचीन काल में सबसे बड़ी ओर पवित्र नदियों में सरस्वती नदी का नाम सबसे पहले लिया जाता है। उत्तर वैदिक व महाभारत काल में भी सरस्वती नदी के प्रवाहित होने के साक्ष्य मिले है और यह नदी समय बितने के साथ विलुप्त हो गई। शिवालिक पहाड़ियों से निकलकर हरियाणा के आदि बद्री में प्रवेश करने वाली इस नदी को तीर्थ स्थल के रूप में देखा जाता है। यह नदी आदि बद्री लेकर कुरुक्षेत्र, कैथल, सिरसा से होती हुई गुजरात के कच्छ तक पहुंचती है। इस नदी के किनारे बड़े जलाशय और तालाब आज भी पवित्र नदी के बहने के साक्ष्य के रुप में देखे जाते है। यदि हड़प्पा सभ्यता की 2600 बस्तियों को देखें तो पाते हैं कि वर्तमान पाकिस्तान में सिन्धु तट पर मात्र 265 बस्तियां थीं, जबकि शेष अधिकांश बस्तियां सरस्वती नदी के तट पर मिलती हैं।
उन्होंने कहा कि इसरो सहित 70 से ज्यादा शोध केन्द्र सरस्वती नदी को फिर से धरातल पर प्रवाहित करने के लिए काम कर रहे है। इस नदी के किनारे हड़प्पा संस्कृति के भी अवशेष मिले है। इन अवशेषों की कहानी से हरियाणा प्रदेश में सांस्कृति विरासत की तस्वीर नजर आती है। इस विलुप्त नदी का पता लगाने और शोध करने के लिए वर्ष 2015 में हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड की स्थापना की गई ताकि हरियाणा की संस्कृति और विरासत का संजोकर रखा जा सके। इसके लिए सरकार की तरफ से योजना को अंतिम रुप दिया गया।
इसरो से मिली परिसीमन और मानचित्रों के आधार पर सरकार ने आदि बद्री में डैम, बैराज के लिए एक परियोजना तैयार की है। इसके लिए 800 करोड़ रुपए का बजट भी तय किया है। इससे 894 हेक्टेयर भूमि पर बाढ़ के पानी का प्रबंध करने का काम किया जाएगा। इसके लिए 5 समझोतें भी हुए है। इस नदी के साथ लगने वाले 23 चैनलों का नाम भी सरस्वती के नाम से जाना जाता है। इस नदी को तीर्थ स्थल के रुप में भी महत्व दिया जाता है और इस योजना से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा तथा डार्क जोन की समस्या से भी निजात मिलेगी। युवा विद्वान भी उत्सुकता के साथ इस परियोजना की तरफ देख रहे है।