अंगूरी की बेबसी और लाजो के लटके-झटकों का लिया दर्शकों ने आनंद, दो कहानी का हुआ सफल मंचन
अमृता प्रीतम की अंगूरी ने किया भावुक, तो ईस्मत चुगताई की लाजो ने गुदगुदाया
अंगूरी पर असर कर गई जंगली बूटी, मिर्जा को चढ़ा लाजो का खुमार
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। बिन मिठाई खाए ही अंगूरी पर जंगली बूटी असर कर गई और वो रामतारा के मोह में मुग्ध हो गई। उसके भोलेपन ने जज़्बात की पवित्रता की अनकही मिसाल पेश करते हुए दर्शकों को भावुक कर दिया। मौका था हरियाणा कला परिषद की कला कीर्ति भवन में नाटक दो कहानियां के मंचन का। आजादी का अमृतमहोत्सव के दौरान विश्व रंगमंच दिवस के उपलक्ष्य में प्रारम्भ हुए नाट्य मेला में आठवां मंचन रास कला मंच सफीदों के कलाकारों द्वारा किया गया। जिसमें अमृता प्रीतम की कहानी जंगली बूटी और ईस्मत चुगताई की कहानी लाजो का मंचन किया गया। रवि मोहन रास के निर्देशन में तैयार नाटक मंचन के दौरान मुख्यअतिथि के रुप में संस्कार भारती कुरुक्षेत्र ईकाई की अध्यक्षा किरण गर्ग उपस्थित रही। वहीं विशिष्ट अतिथि नरेश गर्ग, शिवकुमार किरमच, नीरज सेठी उपस्थित रहे। मंच का संचालन मीडिया प्रभारी विकास शर्मा द्वारा किया गया।
नाट्य मेला का आठवां दिन दर्शकों के लिए विशेष रहा। दो महान लेखकों की कहानियों को अभिनय के माध्यम से मंच पर उतारते हुए कलाकार डा. मधूदीप सिंह और रवि मोहन रास ने कहानी सुनाने के साथ-साथ दिखाई भी। अमृता प्रीतम की कहानी जंगली बूटी अंगूरी नामक स्त्री के इर्द-गिर्द घुमती रही, जिसका विवाह बचपन में ही एक गरीब रसोईए प्रभाती के साथ हो गया था। अंगूरी जितनी खूबसूरत थी, प्रभाती उतना ही नीरस था। अंगूरी अक्सर अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए अमृता प्रीतम के पास जाया करती थी। एक दिन अमृता से बात करते हुए अंगूरी अपने गांव की लड़की की बता बताती है, जो जंगली बूटी खाने के कारण एक लड़के के प्रेम में बावली हो गई और गांव छोड़कर चली गई। सामाजिक रुढ़ियों में फंसी अंगूरी, जो प्रेम को जादू-टोना मानती है, एक दिन खुद उस प्रेम में पड़ जाती है। अंगूरी जब स्वयं को प्रेम में फंसा पाती है तो अमृता से बात करती है कि मैने ना तो किसी के हाथ की मिठाई खाई और ना ही किसी के हाथ का पान। उसने तो सिर्फ चौकीदार के हाथ से चाय पी थी। और इसी उधेड़बुन में अंगूरी बावरी हो जाती है। जादुई खुमार से लबालब जंगली बूटी में अंगूरी सभी को भावुक कर देती है।
वहीं दूसरी कहानी लाजो ने शुरु से लेकर अंत तक लोगों के चेहरे से मुस्कान नहीं हटने दी। हंसी के ठहाकों में रवि मोहन रास ने लाजो का किरदार निभाते हुए मिर्जा और लाजो के प्रेम-प्रंसग को दर्शकों तक पहुंचाया। लाजो के मंच पर आते ही दर्शकों की तालियां थमने का नाम ही नही ले रही थी। आजाद पंछी सी औरत लाजो को बदतमीजियां भी विरासत में मिली थी। उसका अल्हड़पन और दूसरों से नैन मटक्का यूं तो लोगों को रास न आता था, लेकिन जब भी मौका मिलता तो सब उसकी और तांक-झांक करना शुरु कर देते। लाजो एक दिन बूढ़े मिर्जा के घर बतौर नौकरानी रहने आ जाती है। मिर्जा के घर आकर लाजो का उधम मचाना मिर्जा के सीने पर सांप लोटने जैसा था। लाजो की अठखेलियां कहीं ना कहीं मिर्जा को अपनी ओर खींच रही थी। लोगों की नजरे लाजो पर पड़ती देख मिर्जा खुद उसपर मोहित हो जाते हैं और एक दिन उससे निकाह कर लेते हैं। हंसी के फव्वारे छोड़ती कहानी लाजो में रविमोहन के अभिनय और निर्देशन ने चार चांद लगाए। वहीं कहानियों का संगीत भी नाटक मंचन में अपनी अहम भूमिका निभाता दिखा। अन्य कलाकारों में कमल खटक, पवन भारद्वाज, अभिमन्यू, निशांत तथा शिवानी दूबे ने सहयोग दिया। नाटक के अंत में मुख्यअतिथि ने कलाकारों को स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया।