Friday, November 22, 2024
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स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए भारतवासियों ने हर मूल्य को चुकायाः प्रो. राघवेंद्र तंवर

by Newz Dex
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1857 में आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ पहली क्रांति का बिगुल बजाः प्रो. सोमनाथ सचदेवा

केयू के इतिहास विभाग द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के तहत् दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का हुआ शुभारंभ

न्यूज डेक्स संवाददाता

कुरुक्षेत्र। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग द्वारा आज़ादी का अमृत महोत्सव के तहत् रिविजटिंग फ्रीडम स्ट्रगल ऑफ इंडिया विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का शुभारंभ विश्वविद्यालय के सीनेट हॉल में हुआ। इस अवसर पर पद्मश्री प्रो. राघवेंद्र तंवर, चेयरमैन इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च, नई दिल्ली ने मुख्यातिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि भारत एक लम्बे समय तक अंग्रेजों के अधीन रहा और इस स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए भारतवासियों ने हर मूल्य को चुकाया है। इस स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए देश में कई तरह के आन्दोलन हुए और हर आन्दोलन को सफ़ल बनाने के लिए देशवासियों ने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया। इस दौरान कई लोगों की जानें भी गयीं और कई ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों से शहीद हो गये। इन अंग्रेजों से भारत ने ख़ुद को 15 अगस्त 1947 में आज़ाद कराया था।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद एक विचारधारा है जो देश के प्रति अटूट प्यार, राष्ट्रभावना और एक प्रकार की सोच हैं। जिसमें जो व्यक्ति अहम से ज्यादा राष्ट्र प्रेम की भावना में विश्वास रखता हो ऐसे व्यक्तियों की सोच को सामान्यतः राष्ट्रवादी व्यक्ति कहा जाता हैं अर्थात वह स्वहित से पहले राष्ट्रहित के बारे में सोचते हैं। राष्ट्रवादी विचारधारा या सोच राष्ट्र के प्रति अटूट प्रेम व विश्वास को दर्शाता है। भारत के राष्ट्रवाद में भारत की प्राचीन सोच व प्राचीन ग्रंथों का अहम् रोल है। भारत देश पालिटिकल लाईन से नहीं बना, न ही धर्म, जातपात से बना है, भारत देश स्वयं से बना है।

प्रो. तंवर ने कहा कि आजादी के लिए 126 के करीब आंदोलन हुए। आजादी का संघर्ष हिन्दू मुसलमानों ने एक साथ लड़ा था। 1947 में भारत को मिली स्वतंत्रता ब्रिटिश राज के खिलाफ भारत के लोगों के लंबे संघर्ष का परिणाम थी। स्वतंत्रता संग्राम में करीब 12 हजार 865 लोगों ने अपना बलिदान दिया और शहीद हुए जिनमें से 160 लोगों की आयु 20 वर्ष से भी कम थी। उन्हांेने बाजी राउत, कालीबाई, प्रफुल्ला चकी, कनकलता बरूआ, करतार सिंह सराबा आदि युवा शहीदों के बारे में बताया जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना बलिदान दिया। 

प्रो. तंवर ने कहा कि 20वीं सदी के शुरुआती दौर के कट्टरपंथी राष्ट्रवाद और स्वदेशी आंदोलनों ने लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल और बाल गंगाधर तिलक के साथ नए और जुझारू राष्ट्रीय नेतृत्व का उदय किया। दूसरी ओर, अभिनव भारत सोसाइटी, अन्नशीलन समिति, युगांतर समिति और मित्तर मेला जैसे विभिन्न क्रांतिकारी संगठनों के बैनर तले भारत के युवाओं ने अंग्रेजों के दमनकारी औपनिवेशिक राज्य के लिए सफलतापूर्वक खतरा पैदा कर दिया। इस चरण के क्रांतिकारियों ने अपनी गतिविधियों को चरम राष्ट्रवाद की विचारधारा पर आधारित किया।

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि 1857 में आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ पहली क्रान्ति का बिगुल बजा। इससे पहले भी विभिन्न आक्रान्ताओं के खिलाफ भारत ने संघर्ष किया है। 1906 के आसपास लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक व विपिन्द्र चन्द्र पाल ने आजादी के लिए संघर्ष किया। बंगाल के विभाजन के बाद देश में स्वदेशी आंदोलन की शुरूआत हुई और लोगों ने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया तथा भारतवर्ष में स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग 1918 तक हुआ। 

कुवि कुलपति ने कहा कि रोलेट एक्ट 1919 ने भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के लिए बनाया गया था। उन्होंने कहा कि 13 अप्रैल 1919 में जलियांवाला बाग में अंग्रेज हुक्मरान जनरल डायर ने हजारो निहत्थे हिंदुस्तानियों को अंधाधुंध गोलियों से भुनवा दिया था। इस प्रकरण ने एक चिंगारी का काम कर युवा क्रांतिकारियों के अंदर आजादी की नई अलख जगाने का काम किया। उन्होंने कहा कि 1920 में असहयोग आन्दोलन के द्वारा स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग पर बल दिया गया तथा उस समय में चरखा स्वदेशी एवं आत्मनिर्भरता का वाहक बन चुका था। 

कुवि कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में अनेकों ऐसे वीरों ने भी महत्वपूर्ण बलिदान दिया है जिनका इतिहास में उनका जिक्र तक नहीं है। उन्होंने कहा कि इतिहास में वीर सावरकर के जीवन के एक पक्ष को दिखाया गया है जबकि उन्हें दो बार काले पानी की सजा दी गई थी। कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि डॉ. अम्बेडकर के अनुसार मन से स्वतंत्र व्यक्ति ही वास्तविक रूप से स्वतंत्र होता है। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति ने भारत को विश्व स्तर पर ज्ञान की महाशक्ति बनने की झलक दिखाई है। उन्होंने कहा कि शोध में सामाजिक सार्थकता एवं वास्तविकता होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कर्म ऐसे हो जो बंधनों में न बांधे तथा शिक्षा ऐसी हो जो सभी बंधनों से मुक्त करे। उन्होंने नई शिक्षा नीति के अनुरूप अगले शैक्षणिक सत्र से कुवि के पीजी एवं संबंधित कॉलेजों में पाठ्यक्रमों संचालित करने की बात भी कही। 

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय, कोलकाता में इतिहास विभाग के हेड प्रोफेसर हितेन्द्र पटेल ने कहा कि इतिहासकार का कार्य बड़ा अप्रिय होता है। उसे अतीत को पकडे़ रखना, वर्तमान को देखते हुए भविष्य को ध्यान में रखना होता है। उन्होंने कहा कि जिस इतिहास को हमने पढ़ा है उसमें बहुत गैप है जिसकों भरने की जिम्मेवारी हमारी है। उन्होंने कहा कि अब न्यायपूर्ण इतिहास लिखने का समय है। उन्होंने कहा कि क्षेत्रवाद राष्ट्रवाद को कमजोर कर सकता है। इसलिए इस संदर्भ में व्यापक दृष्टि जरूरी है। उन्होंने कहा कि साहित्य की भूमिका इतिहास से भी ज्यादा है क्योंकि साहित्यकारों ने उस समय के इतिहास का स्पष्ट वर्णन अपनी रचनाओं में किया। 

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि पूर्व कुलसचिव एवं डीन सोशल साइंस प्रो. ज्ञानेश्वर खुराना ने कहा कि अमृत पीने का अधिकारी वही समाज होता है जिसमें विष पीने की क्षमता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य में स्व का भाव आत्मा, शाश्वता की अवधारणा सही और गलत की पहचान करने की क्षमता प्रदान करती है। उन्होंनें मुख्यातिथि पदमश्री प्रो. रघुवेन्द्र तंवर व प्रो. हितेन्द्र पटेल के व्याख्यान को एक-दूसरे का पूरक बताया। उन्होंने युवाओं से नैतिक, सांस्कृतिक विरासत के मूल्यों को शाश्वत करने की अपेक्षा की। इससे पूर्व इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो. एसके चहल ने संगोष्ठी के विषय में बताया व कहा कि हमारे देश का शानदार इतिहास रहा है। उन्होंने कहा कि विभाग द्वारा कुलपति के मार्गदर्शन एवं निर्देशन में आजादी का अमृत महोत्सव के तहत चार कार्यक्रम करवाए गए है।  उन्होंने बुद्ध वंदना की जिसके बाद कार्यक्रम की शुरूआत हुई।

कार्यक्रम में डॉ. गोपाल प्रसाद ने सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में इतिहास विभाग के छात्र प्रदीप ने देशभक्ति का गीत गुनगुनाया। इस मौके पर प्रो. राजपाल, प्रो. भगत सिंह, प्रो. सुभाष चन्द्र, प्रो. कृष्णा रंगा, प्रो. राजेश, डॉ. विजेन्द्र ढुल, डॉ. महासिंह पूनिया, डॉ. गुरचरण सिंह, डॉ. गुरप्रीत सिंह, डॉ. मोना गुलाटी, डॉ. कुसुमलता, डॉ. कुलदीप, डॉ. अनुराग व श्वेता कश्यप् सहित शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी मौजूद थे।

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