न्यूज डेक्स संवाददाता
रोहतक। “ज़माने के जिस दौर से हम इस वक्त गुज़र रहे हैं अगर आप उससे अनजान हैं तो मंटो के अफसाने पढ़िए। अगर आप इन अफसानों को बर्दाश्त नहीं कर सकते, तो इसका मतलब है कि यह ज़माना ही नाकाबिले बर्दाश्त है।… मैं एक आर्टिस्ट हूँ और ओछे जख्म तथा भद्दे घाव मुझे बर्दाश्त नहीं।….मैं इस सभ्य सोसायटी की चोली क्या उतारूंगा, जो है ही नंगी।” ये संवाद हैं सप्तक रंगमंडल और पठानिया वर्ल्ड कैम्पस द्वारा हर सप्ताह होने वाले संडे थियेटर के इस बार के नाटक ‘तआ’रुफ़-ए-मंटो’ के। नाटक में जाने माने कहानीकार सआदत हसन मंटो के जीवन, उनकी कहानियों और उनके किरदारों पर प्रकाश डालने के साथ-साथ उनकी कई कहानियों का मंचन किया गया, जिनमें मुख्य रूप से जिस्म बेचने को मजबूर औरत की मनःस्थिति तथा उसके बारे में लोगों की विकृत मानसिकता को दिखाया गया।
मुखावरण थिएटर ग्रुप, दिल्ली द्वारा प्रस्तुत यह नाटक ‘मंटो’ की 110वीं सालगिरह पर खेला गया। नाटक की मुख्य बात यह रही कि इसमें मंटो की कहानियों को आज के संदर्भ में जोड़ कर दिखाया गया, जिन्होंने कई अनकहे सवाल दर्शकों के दिमाग़ में छोड़े और उन्हें सोचने पर मजबूर किया। नाटक ने कोरोनाकाल के दौरान अस्पतालों के रवैये, साम्प्रदायिक उन्माद और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को ही नहीं छुआ, बल्कि वर्तमान राजनीति पर भी गहरे कटाक्ष किए। नाटक का अंत जिस वाक्य से हुआ, वह भी अपनेआप में अनूठा कहा जा सकता है। सूत्रधार ने नाटक खत्म करते हुए कहा ‘मंटो जिंदा है, मंटो ख़ैरियत से है, ख़ुदा उनकी कलम में और ज़हर भरे’ और हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
साहिल आहूजा द्वारा निर्देशित ‘तआ’रुफ़-ए-मंटो में अंकित लूथरा, प्रांजुल मिश्र, आशीष पांडे, प्रिया पांडे, लकी विल्सन, दीपक पांडे, शांभवी, आरोह, कमलदीप कौर ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं। नाटक में बिम्बों, प्रतीकों और शारीरिक अभिनय का अच्छा इस्तेमाल किया गया। बता दें कि ये कलाकार अब तक इस नाटक को 2500 से अधिक दर्शकों को दिखा चुके हैं। नाटक का मंचन आईएमए हाल में हुआ।इस अवसर पर प्रताप राठी, राघवेंद्र मलिक, अनिल बागड़ी, विश्वदीपक त्रिखा, डॉ. नकवी, सुभाष नगाड़ा, वीरेन्द्र फोगाट, अविनाश सैनी, तरुण पुष्प त्रिखा, सुजाता, सुरेंदर कृष्ण शर्मा, मनोज कुमार, अनंत, जगदीप, राहुल और श्रीभगवान शर्मा विशेष रूप से उपस्थित थे।