न्यू उत्थान थियेटर ग्रुप के वार्षिक उत्सव में रंगकर्मियों ने संवाद के जरिए की परिचर्चा
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र,27 सितंबर। रंगमच के क्षेत्र में अपनी अहम भूमिका निभा रहे न्यू उत्थान थियेटर ग्रुप ने अपने 11 वर्ष पूरे करने पर आॅनलाईन वार्षिक उत्सव मनाया। दो दिन के आयोजन में पहले दिन रंगमंच चर्चा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें प्रदेश के रंगनिर्देशकों ने आनलाईन संवाद के जरिये रंगमंच परिचर्चा की। परिचर्चा में हरियाणा कला परिषद के निदेशक व रंगकर्मी संजय भसीन, चण्डीगढ़ से रंगनिर्देशक व हरियाणा कला परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष सुदेश शर्मा तथा हरियाणा के जाने-माने रंगकर्मी रविमोहन रास वक्ता के रुप में रहे।
वहीं परिचर्चा के संचालक के रुप में डा0 मोहित गुप्ता ने अपनी भूमिका अदा की। वर्तमान में कोरोनावायरस से बचाव के लिए लॉकडाउन का पूरी तरह से पालन करने का संदेश देते हुए डा0 मोहित गुप्ता ने न्यू उत्थान थियेटर ग्रुप के 11 वर्षों के सफर को आनलाईन जुड़े दर्शकों से सांझा किया, वहीं परिचर्चा के तीनों कलाकारों का अभिवादन किया। रंगमंच के विषय में विभिन्न प्रकार के प्रश्नों और उनके हल ने परिचर्चा को पूर्ण कामयाबी प्रदान की।
कोरोना काल में रंगमंच जहां ठहर गया है और भविष्य में गति पकड़ने की सम्भावना भी नजर नहीं आ रही, इस संदर्भ में संजय भसीन से पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि हरियाणा कला परिषद कलाकारों के हित के लिए कार्य करती है, जिसके तहत कोरोना काल में कलाक्षेत्र के लिए आई भयानक स्थिति से उभरने का हल भी हरियाणा कला परिषद निकाल रही है। जहां कोरोना बचाव के कारण प्रत्यक्ष मंचन सम्भव नहीं हैं, लेकिन इसके बावजूद कला को पूर्ण जीवंतता देने के प्रयास में कला परिषद आनलाईन कार्यक्रमों के माध्यम से अपनी जिम्मेदारी निभा रही है।
इसी कड़ी में सुदेश शर्मा ने भी अपने विचारों को व्यक्त करते हुए कहा कि प्रदेश की परम्पराओं और जीवनशैली को सांग के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया जाता है, किंतु युवा पीढ़ी सांग से दूर होती जा रही है, ऐसे में रंगकर्मियों द्वारा नए प्रयोग करके सांग को लोगों तक पहुंचाने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए, ताकि हरियाणा की लोकनाट्य विधा को सदैव जिंदा रखा जा सके। आधुनिक युग में टीवी और सिनेमा की तरफ रुख करने वाले कलाकारों द्वारा रंगमंच से मुंह मोड़ लेने के विषय में रविमोहन ने स्पष्ट करते हुए बताया हरियाणा प्रदेश में रंगकर्मी को उसकी मेहनत अनुसार मेहनताना नहीं मिल पाता, जिसके कारण कलाकार टीवी या सिनेमा की ओर चले जाते हैं।
प्रत्येक रंगकर्मी की दो तरह की भूख होती है। जिसमें आत्मिक शांति की तृप्ति के लिए रंगकर्मी रंगमंच से जुड़ा रह सकता है, किंतु पेट की भूख को शांत करने के लिए आय का साधन ढूंढना स्वाभाविक है। वहीं दूसरी ओर इस परिचर्चा में शामिल सुदेश शर्मा ने बताया कि रंगकर्म में कौशल पूर्ण समायोजन कलाकारों में जरुर होनी चाहिए। निर्देशक का कल्पनाशील होना, रंगमंच के प्रति चिंतन और कलाकारों का समर्पण किसी भी प्रदेश के रंगमंच को गिरने नहीं दे सकता।
उन्होंने रंगमंच के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमें किसी भी दृष्टि में अपने प्रदेश या देश के रंगमंच को विदेशी रंगमंच की अपेक्षा छोटा नहीं समझना चाहिए। विदेशी रंगमंच के लिए प्रेरणा भारतीय रंगमंच ने ही दी है। अंत में संजय भसीन ने परिचर्चा के समापन पर बताया कि रंगमंच का इतिहास वैदिक काल से रहा है, सर्वप्रथम सुर-असुर संग्राम तथा अमृत मंथन आदि नाटक देवताओं द्वारा किए गए। ऐसे में प्रदेश के रंगकर्मियों का दायित्व बनता है कि आने वाली पीढ़ी को रंगमंच के प्रति जागरुक करते हुए रंगकर्म को बढ़ावा दिया जाए।
इसके अतिरिक्त रंगमंच का प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात अन्य प्रदेशों में या फिल्म जगत में जाने की अपेक्षा हरियाणा के रंगमंच को विस्तार देने में सहायक बनना चाहिए। अंत में आमंत्रित अतिथियों ने न्यू उत्थान थियेटर ग्रुप को 11वें वार्षिक उत्सव के लिए शुभकामनाएं दी तथा डा. मोहित गुप्ता ने सभी का आभार व्यक्त किया।