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मैं तो थी बंद कली सी, मधुकर ना बन जाते तुम… परिंदे तो आते हैं पेड़ पर, लेकिन शाखाओं में बसेरा नहीं है… कवि सम्मेलन से हुआ उत्थान उत्सव का समापन, कवियों ने किया काव्यपाठ न्यूज डेक्स संवाददाता कुरुक्षेत्र,28 सितंबर। न्यू उत्थान थियेटर ग्रुप के 11वें वार्षिक उत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित दो दिवसीय उत्थान उत्सव का समापन कवि सम्मेलन के साथ हुआ। इसमें कुरुक्षेत्र के कवियों द्वारा अपनी रचनाओं का पाठ किया गया। गौरतलब है कि न्यू उत्थान थियेटर ग्रुप वर्ष 2009 से निरंतर सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से कला और संस्कृति के विस्तार में सहायक है। इस ग्रुप द्वारा हर साल ग्रुप की वर्षगांठ पर आयोजित होने वाले उत्थान उत्सव में नाटकों, नृत्य कार्यक्रमों, गीत संगीत तथा कवि सम्मेलन जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से वार्षिक उत्सव मनाया जाता रहा है। किंतु इस वर्ष कोरोना महामारी के दौरान उत्थान उत्सव का आयोजन आनलाईन किया गया। जिसमें पहले दिन रंगमंच चर्चा कार्यक्रम आयोजित हुआ, वहीं दूसरे दिन कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। कवि सम्मेलन में अध्यक्षता श्रृंगार रस का काव्य पाठ करने के लिए प्रचलित डा0 बलवान द्वारा की गई। वहीं संचालक की भूमिका युवा कवि वीरेंद्र राठौर ने निभाई। कवि सम्मेलन में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से डा. पुरुषोत्तम अपराधी, शिवकुमार किरमच, नरेश सागवाल, आदेश कुमार राय ने अपनी रचनाओं को श्रोताओं तक पहुंचाया। कार्यक्रम से पूर्व संचालक वीरेंद्र राठौर ने न्यू उत्थान थियेटर ग्रुप को उत्सव की बधाई दी तथा कवि सम्मेलन के आयोजन के लिए अध्यक्ष नीरज सेठी तथा सांस्कृतिक प्रभारी विकास शर्मा का आभार जताया। कार्यक्रम में रचनाओं का पाठ करते हुए डा. बलवान ने वो चाहता है मुझे पर मेरा नहीं है, उस सूरज की रोशनी में सवेरा नहीं है, परिंदे तो आते हैं उस पेड़ पर लेकिन, उसकी शाखाओं में किसी का बसेरा नहीं है श्रोताओं की नजर की। लिखना पड़ना जो आता तुमको तो दिनकर ना बन जाते तुम, मैं तो थी बंद कली सी, मधुकर ना बन जाते तुम, गुनगुनाना जो आता तुमको, शकीरा ना बन जाती तुम, थोडा सा जो तप लेती तो हीरा ना बन जाती तुम जैसी हास्य कविता से डा. बलवान ने माहौल को खुशनूमां बनाया। वहीं डा. पुरुषोत्तम अपराधी ने होगा शहर रंगीत और शय में होगी दिलकशी, तितलियां पंखो के अपने रंग दिखाने चल पड़ी, जिंदगी फिर आंख में काजल लगाने चल पड़ी और जब भी हमको बज्म से निकाला जाएगा, जैसे काली दाल से पत्थर निकाला जाएगा, क्या जरुरत मारने की तीर शातिर हैं सभी, मारने चिड़िया यहां बाजों को पाला जाएगा को तरन्नूम में गुनगुनाया। वीरेंद्र राठौर ने बेहतरीन शायरी और काव्य पाठ के माध्यम से कार्यक्रम का बखूबी संचालन किया। देश के युवा सुनो, आवाज देश की बनो, मर मिटो तुम राष्ट्र पर सपना कोई ऐसा चुनो, सभी नफरत गिले शिकवे आओ कि भूल जाएं हम, अंधेरों से सनी बस्तियां आओ दीपक जलाएं हम आदि प्रेरणादायक रचनाओं से वीरेंद्र ने खूब समां बांधा। नरेश सागवाल ने कोरोना महामारी को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2020 में घटी अप्रिय घटनाओं को कविता के माध्यम से पेश किया। जब तै नया साल यू लाग्या, खस्ता हालत होगी म्हारी, साल टवंटी टवंटी मैं आगी एक ते एक बिमारी जैसी हरियाणवी बोली में कविता सुनाकर नरेश ने खूब वाहवाही लूटी। शिवकुमार किरमच ने भी कोरोना काल के भयावह मंजर को दिखाते हुए अपनी रचना का पाठ किया, वहीं आदेश कुमार ने अपनी रचना ना जिओ तुम किसी के दबाव में ये दुनिया तुम्हें दबा लेगी, तुम जिओ अपनी आदत से ये आदत तुम्हे कुछ बना देगी से सभी का मन मोहा। एक से बढ़कर एक बेहतरीन रचना के माध्यम से कवियों ने माहौल को तरोताजा बनाए रखा। अंत में न्यू उत्थान थियेटर ग्रुप के कलाकार साजन कालड़ा, मनीष डोगरा, विकास शर्मा, गौरव दीपक जांगड़ा व धर्मपाल ने सभी कवियों को सम्मानित किया। |