मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर को विनम्र श्रद्धांजलि आर्पित की
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र।आत्मविस्मृत हिन्दू समाज को स्वत्व का साक्षात्कार करा कर माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर गुरुजी ने उसे संगठित शक्तिशाली तथा आत्मविश्वास से परिपूर्ण बनाने के राष्ट्रकार्य के लिए अपने शरीर का कण-कण और जीवन का क्षण-क्षण समर्पित कर दिया। वह सैकड़ों युवाओं को राष्ट्र समर्पित जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ- श्रीप्रकाश मिश्र ने राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर की पुण्यतिथि के अवसर पर मातृभूमि सेवा मिशन आश्रम परिसर में आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किए। कार्यक्रम का शुभारंभ भारतमाता एवं माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर के चित्र पर पुष्पार्चन एवं दीपप्रज्जवलन से हुआ। मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा संचालित मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर को विनम्र श्रद्धांजलि आर्पित की।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के सजग प्रहरी थे। रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद और श्री अरविंद के दर्शन को शिरोधार्य करते हुए अपने जीवन को राष्ट्रीय निष्ठा के जागरण हेतु समर्पित करने वाले श्री गुरुजी ने समाज और राष्ट्र के निर्माण में अविस्मरणीय योगदान दिया। भारत वह देश है जहां संन्यासी जीवन के विविध रंग प्रदर्शित हुए हैं, जिन्होंने स्पष्ट किया है कि संन्यासी का जीवन स्वयं के लिए नहीं समाज और मानवता के लिए होता है। यहां संन्यासियों की सक्रिय सामाजिक भूमिका देखी गई है, जो इस बात की घोतक है कि संन्यासी स्वयं के राग-द्वेष से ऊपर उठकर अपने देश व समाज का शुभचिंतक होता है।
डॉ. मिश्र ने कहा कि जब गोलवलकर 1940 में संघ के द्वितीय सरसंघचालक बने, तब तक संघ का कार्य देश के हर प्रान्त और जिले तक नहीं पहुँचा था। लेकिन अपने दायित्व पर रहते हुए उन्होंने इस लक्ष्य को पूर्ण किया। कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण, उनका चिंतन, उनके सुख-दुःख में सहभागी होना यह गोलवलकर की दिनचर्या का अहम भाग बन गया था। उन्होंने अपने साथी कार्यकर्ताओं को उपदेश नहीं अपितु स्वयं के उद्धरण से प्रेरित किया। यह गोलवलकर की असीम साधना ही थी, जिसके कारण संघ इतने उथल-पुथल के बाद भी राष्ट्रजागरण का केंद्र-बिंदु बना और भारत की जनता का आकर्षण केंद्र ही नहीं बल्कि आशा का केंद्र भी बन पाया।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि श्री गुरुजी महर्षि अरविंद के इस वक्तव्य से प्रभावित थे कि हमें अपनी जगतजननी मां भगवती के लिए सत्वगुणी उपकरण बनने की अवश्यकता है, जो संपूर्ण सृष्टि में चेतनामय प्रेम का प्रसार कर सके। इस दृष्टि से उनका राष्ट्रवाद किसी अहंकार, शक्ति के उपयोग और दुर्बलों पर शासन का राष्ट्रवाद नहीं था। वह स्वामी विवेकानंद एवं महर्षि अरविंद के इस विचार से अभिभूत थे कि देश मात्र भूखंड का टुकड़ा या राजसत्ता का पर्याय नहीं है बल्कि यह हमें पोषित करने वाली माता है। यदि हम श्री गुरुजी के जीवन दर्शन को समझें तो वह हमसे अपने देश के सर्वश्रेष्ठ मानव संसाधन बनने का आग्रह करते हैं। हमारी परंपरा में व्यक्ति साध्य नहीं है बल्कि उसकी उत्कृष्टता अपने समाज और देश को सर्वश्रेष्ठ देकर जीवन जीने की है, जिसमें कृतज्ञता प्रमुख संस्कार है।
डॉ. मिश्र ने कहा कि माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर का मानना था कि संयम से आत्मशक्ति का विकास करना चाहिए। हीनता व दुर्बलता में इसे परिवर्तन नहीं होने देना चाहिए। इसलिए संगठित व शक्तिशाली होना वह समाज-राष्ट्र के लिए आवश्यक मानते थे। आदर्शवाद के साथ वह यथार्थवादी भी थे। श्री गुरुजी समय के अनुकूल व्यवस्थाएं निर्मित करने तथा अंधविश्वास पर आधारित परंपराओं को अस्वीकार करते थे। आज भी लाखों संघ स्वयंसेवक गोलवलकर को गुरुजी के नाम से पुकारते हैं।कार्यक्रम में मिशन सदस्यों सहित अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहे।