न्यूज डेक्स उत्तर प्रदेश
लखनऊ। संस्कार भारती के संस्थापक आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक एवं पद्मश्री बाबा योगेंद्र का निधन हो गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक संस्कार भारती के संस्थापक पद्मश्री बाबा योगेन्द्र जी का शरीर 10 जून 2022, शुक्रवार को लखनऊ के डॉ. राममनोहर लोहिया अस्पताल में प्रातः 8:00 बजे शरीर शांत हुआ।बाबा योगेंद्र के निधन पर उत्तर प्रदेश प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ने गहरा अफ़सोस जताया है। सीएम योगी ने बाबा योगेंद्र के निधन पर शोक जताते हुए ट्वीट में लिखा कि संस्कार भारती के संस्थापक असंख्य कला साधकों के प्रेरणास्रोत, कला ऋषि, ‘पद्म श्री’ बाबा योगेंद्र जी का निधन अत्यंत दुःखद समाचार है। प्रभु श्री राम से प्रार्थना है कि दिवंगत पुण्यात्मा को अपने श्री चरणों में स्थान व उनके असंख्य प्रशंसकों को यह दुःख सहने की शक्ति दें। देश-दुनिया में बाबा योगेंद्र के कार्यों की सराहना करने वाले लोग हैं,इनमें घटना की सूचना के बाद से शोक व्याप्त है।
संस्कार भारती से जुड़े नंदनंदन गर्ग के अनुसार बाबा योगेंद्र कला के लिए समर्पित थे। इनका पूरा संघर्षमय रहा। 7 जनवरी, 1924 को बस्ती, उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध वकील बाबू विजय बहादुर श्रीवास्तव के घर में जन्मे योगेंद्र जी के सिर से दो वर्ष की अवस्था में ही मां का साया उठ गया। फिर उन्हें पड़ोस के एक परिवार में बेच दिया गया। इसके पीछे यह मान्यता थी कि इससे बच्चा दीर्घायु होगा। उस पड़ोसी माँ ने ही अगले दस साल तक उन्हें पाला। वकील साहब कांग्रेस और आर्यसमाज से जुड़े थे।
नानाजी देशमुख ने बनाया था संघ का स्वयंसेवक
जब मोहल्ले में संघ की शाखा लगने लगी, तो उन्होंने योगेन्द्र को भी वहाँ जाने के लिए कहा। छात्र जीवन में उनका सम्पर्क गोरखपुर में संघ के प्रचारक नानाजी देशमुख से हुआ। योगेन्द्र जी यद्यपि सायं शाखा में जाते थे; पर नानाजी प्रतिदिन प्रातः उन्हें जगाने आते थे, जिससे वे पढ़ सकें। एक बार तो तेज बुखार की स्थिति में नानाजी उन्हें कन्धे पर लादकर डेढ़ कि.मी. पैदल चलकर पडरौना गये और उनका इलाज कराया। इसका प्रभाव योगेन्द्र जी पर इतना पड़ा कि उन्होंने शिक्षा पूर्ण कर स्वयं को संघ कार्य के लिए ही समर्पित करने का निश्चय कर लिया।
1942 में लखनऊ में प्रथम वर्ष ‘संघ शिक्षा वर्ग’ का प्रशिक्षण करने के बाद 1945 में श्री योगेंद्र प्रचारक बने। संघ शिक्षा वर्ग तृतीय वर्ष करने के बाद सबसे पहले बस्ती का तहसील प्रचारक बनाया गया। इसके बाद महराजगंज व पड़रौना में तहसील प्रचारक रहा। इसके अलावा बस्ती, प्रयागराज, बहराईच, बरेली, बदायूं,हरदोई और सीतापुर में जिला प्रचारक रहा। 1975 में जब आपातकाल लगा उस समय मैं सीतापुर का विभाग प्रचारक था। देश-विभाजन को उन्होंने बहुत नजदीक से देखा था। संघ शिक्षा वर्ग में उन्होंने इस पर एक प्रदर्शनी बनाई। जिसने भी यह प्रदर्शनी देखी, वह अपनी आँखें पोंछने को मजबूर हो गया। फिर तो ऐसी प्रदर्शिनियों का सिलसिला चल पड़ा। शिवाजी, धर्म गंगा, जनता की पुकार, जलता कश्मीर, संकट में गोमाता, 1857 के स्वाधीनता संग्राम की अमर गाथा, विदेशी षड्यन्त्र, माँ की पुकार…आदि ने संवेदनशील मनों को झकझोर दिया। ‘भारत की विश्व को देन’ नामक प्रदर्शिनी को विदेशों में भी प्रशंसा मिली।
अन्तःकरण के शब्द को जब संघ नेतृत्व ने स्वर दिया
शीर्ष नेतृत्व ने योगेन्द्र जी की इस प्रतिभा को देखकर 1981 ई0 में ‘संस्कार भारती’ नामक संगठन का निर्माण कर उसका कार्यभार उन्हें सौंप दिया। योगेन्द्र जी के अथक परिश्रम से यह आज सामाजिक दायित्वबोध एवं राष्ट्रप्रेम से युक्त कला-साधकों की अग्रणी संस्था बन गयी चुकी है।