Monday, November 25, 2024
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हिंद की चादर नौवें गुरु तेग बहादुर जी की 400 वीं जयंती पर केयू में वेबिनार

by Newz Dex
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न्यूज डेक्स संवाददाता

कुरुक्षेत्र, 27 जुलाई। हिन्द की चादर नौवें सिक्ख गुरु, गुरु तेग बहादुर जी की 400 वीं जयंती के अवसर पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पंजाबी विभाग द्वारा सोमवार को ‘त्याग तों बलिदान तक्क दा सफरः गुरू तेग बहादुर जी’ विषय पर वेबिनार का आयोजन किया गया। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. नीता खन्ना ने वेबिनार मुख्य वक्ताओं डॉ. कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री, कुलपति, हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय व पंजाबी यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति डॉ. जसपाल सिंह का स्वागत किया।कुलपति डॉ. नीता खन्ना ने गुरु तेग बहादुर जी की 400 वीं जयंती की बधाई देते हुए कहा कि यह कार्यक्रम विश्वविद्यालय में पूरे वर्ष भर होने वाले कार्यक्रमों के लिए आधार बनेगा। उन्होंने कहा कि गुरूओं की वाणी पूरी दुनिया में समरसता और भाईचारे का संदेश दे रही है। सभी सिक्ख गुरू भारतीय परिवेश में भक्ति आंदोलन के प्रेरणा स्रोत रहे हैं।  गुरू तेग बहादुर ने समाज को जबरन तोड़ने वाली ताकतों के खिलाफ  समाज में एकता और भाईचारे की मिसाल पेश कर सामाजिक तबदीली के सूत्रधार बने।उन्होंने लोगों को सामाजिक बुराईयों और अंधविश्वास से दूर रहने की प्रेरणा दी। कुलपति ने कहा कि उनके प्रयासों के कारण भारत के लोग मुगलों के अत्याचारों के खिलाफ एकजुट हो सके। उनकी वाणी आज भी हमारा मागदर्शन कर रही है।कार्यक्रम के मुख्य वक्ता हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री ने कहा कि जिस प्रकार तेज बल का प्रतीक व उसी प्रकार त्याग बलिदान का प्रतीक है। ‘शस्त्रे च शास्त्रे कौशलम’ अर्थात् शस्त्र और शास्त्र दोनों ही की जिसमें निपुणता हो वहीं महापुरूष है। भारतीय परम्परा गुरूओं की परम्परा रहीं हैं संवाद की परम्परा रही है। गुरूनानक देव जी से लेकर गुरू गोबिन्द सिंह जी तक सभी गुरू साहिबान ने भारतीय संस्कृति की प्रभुता, अखण्डता, धार्मिक व मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए किए गए प्रयत्नों के लिए भारतीय जनमानस सदैव ऋ़णी रहेगा।उन्होंने कहा कि गुरु तेग बहादुर के बचपन का नाम त्यागमल था क्योंकि वे त्याग की मूर्ति थे लेकिन उनके शोर्य, तेज को देखकर उनका नाम तेज बहादुर पड़ गया। उन्होंने बताया कि सिक्खों के आठवें गुरु के बाद नौवें गुरु की तलाश मुश्किल थी। इसके लिए मक्खन लबाना 500 सोने की मोहरे लेकर नौवें गुरु की तलाश में निकल पडे़। गुरु तेग बहादुर अपनी तपस्या में लीन थे। गुरु तेग बहादुर ने जब मक्खन लबाना को उनका संकल्प याद करवाया तो तभी मक्खन गुफा के बाहर आकर चिल्लाया गुरु लादो रे, गुरु लादो रे।  उन्होंने कहा कि गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान ने देश में नई चेतना का संचार किया। उन्होंने समाज में फैली निराशा को दूर करने का काम किया। उनके बलिदान से देश में निरंकुश शासन के प्रति आग की चिंगारी फैली। उन्होंने कहा कि वे बहुत वर्षों तक बाबा बकाला में साधनारत रहे। औरंगजेब की सेना ने गुरु तेग बहादुर को अपना मन्तव्य छोड़ने को कहा लेकिन उन्होंने अन्याय का प्रतिकार करने व धर्म की रक्षा करने के लिए बलिदान का मार्ग चुना। वे त्रिकालदर्शी थे उन्हें पता था कि उनके इस बलिदान से देश में निराशा नहीं फैलेगी अपितु लोग इससे प्रेरित होकर अन्याय का प्रतिकार करने में सक्षम होंगे। डॉ. अग्निहोत्री ने कहा कि विश्व के इतिहास में ऐसे आत्म बलिदान का उदाहरण कहीं ओर देखने को नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि गुरु को समझने के लिए उसके पदचिह्नों पर चलना जरूरी है। वे अंहकार, लोभ-लालच से दूर थे।  कार्यक्रम के दूसरे मुख्य वक्ता पंजाबी यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति डॉ. जसपाल सिंह ने कहा कि महापुरूष गुरु तेग बहादुर के 400वीं जयन्ती के अवसर उनके बलिदान को याद करना बडे़ गर्व की बात है। उन्होंने कहा कि गुरु की बाणी को पढ़कर मनोबल बढ़ जाता है। गुरु तेग बहादुर की शहादत ने समाज को एक अलग मुकाम दिया। अन्याय से लड़ने के लिए लोगों को मानसिक तौर पर तैयार करने का काम किया। आज हमें उनकी बाणी को समझने की आवश्यकता है। गुरु तेग बहादुर जी ने कहा है कि जिस प्रकार फूल में खुशबु निहित है, दर्पण में प्रतिबिम्ब मौजूद हैं। उसी प्रकार वो ईश्वर हमारे भीतर ही मौजूद है। प्रो. जसपाल ने बताया कि उनकी बाणी में त्याग पर ज्यादा बल दिया है तथा उसमें बैराग की प्रधानता है। उन्होंने कहा कि जिस बैराग की बात गुरु तेग बहादुर ने अपनी बाणी में की है उसका मतलब जिम्मेवारियों से भागना कतई नहीं है। फर्जों की अदायगी से मुंह मोड़ना नहीं है। संसार में रहते हुए कार्यों को करते हुए निर्लेप रहना व मानव जाति के तौर पर जिम्मेवारी निभाना ही वास्तविक जीवन है। उन्होंने कहा कि गुरु तेग बहादुर ने अपनी बाणी में मन को समझाते हुए कहा है कि मन रे गहे न गुरु उपदेश। उन्होंने कहा कि शहादन जिस्म की नहीं जहन की प्रक्रिया है। डीन भाषा व कला संकाय व पंजाबी विभाग के अध्यक्ष प्रो. ब्रजेश साहनी ने वेबिनार के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि हमें गुरू साहिबान के जीवन मूल्यों व शिक्षाओं को अपने जीवन में चरितार्थ करने के लिए उनकी जन्म शताब्दियों को शैक्षणिक स्तर पर बढ़-चढकर मनाया जाना चाहिए। इस तरह से हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को गुरूओं की शिक्षाओं के साथ जोड़ सकते हैं। इस वेबिनार का संचालन पंजाबी विभाग की असिस्टैंट प्रोफेसर डॉ. परमजीत कौर सिद्धू ने किया। वेबिनार के अंत में पंजाबी के असिस्टैंट प्रोफेसर डॉ. कुलदीप सिंह ने वेबिनार से जुड़ने वाले मुख्य वक्ताओं, कुलपति, देश-विदेश के भिन्न-भिन्न विश्वविद्यालयों के शिक्षकों, शोधार्थियों व विद्यार्थियों का आभार व्यक्त किया। इस वेबिनार में कनाड़ा, अमेरिका, इंग्लैंड, बुल्गारिया, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और जापान आदि देशो से लोगों ने भाग लिया।

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