श्रावण मास के प्रथम सोमवार के अवसर पर मातृभूमि सेवा मिशन के तत्वाधान में शिव भक्तों ने महाकालेश्वर मंदिर में किया रुद्राभिषेक
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। सम्पूर्ण चराचर जगत बिन्दु नाद स्वरूप है। बिन्दु देव है एवं नाद शिव इन दोनों का संयुक्त रूप ही शिवलिंग है। बिन्दु रूपी उमा देवी माता है तथा नाद स्वरूप भगवान शिव पिता हैं। जो इनकी पूजा सेवा करता है उस पुत्र पर इन दोनों माता-पिता की अधिकाधिक कृपा बढ़ती रहती है। वह पूजक पर कृपा कर उसे अतिरिक्त ऐश्वर्य प्रदान करते हैं। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक श्रीप्रकाश मिश्र ने श्रावण मास के प्रथम सोमवार को महाकालेश्वर मंदिर में मिशन द्वारा आयोजित भगवान शिव के रुद्राभिषेक कार्यक्रम में व्यक्त किए। भगवान शिव का विधिवत संकल्प, पूजन एवं रुद्राभिषेक वेदपाठी पंडित नरेश ने कराया तथा अभिषेक कार्यक्रम ज्योतिषाचार्य सतीश कौशिक की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। रुद्राभिषेक कार्यक्रम में विश्व मंगल की कामना करते हुए ब्रम्हचारियो ने शिवलिंग पर अक्षत पुष्प अर्पित किए।
इस अवसर पर डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि आंतरिक आनंद की प्राप्ति के लिए शिवलिंग को माता-पिता के स्वरूप मानकर उसकी सदैव पूजा करनी चाहिए। भगवान शिव प्रत्येक मनुष्य के अंत:करण में स्थित अव्यक्त आंतरिक अधिष्ठान तथा प्रकृति मनुष्य की सुव्यक्त आंतरिक अधिष्ठान है। नम: शिवाय: पंचतत्वमक मंत्र है इसे शिव पंचक्षरी मंत्र कहते हैं। इस पंचक्षरी मंत्र के जप से ही मनुष्य सम्पूर्ण सिद्धियों को प्राप्त कर सकता है।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि श्रावण माह में करुणा, तप, मंत्र साधना आदि पर विशेष बल दिया जाता है। श्रद्धा एवं भक्ति का यह श्रावण मास अध्यात्म का अनूठा प्रयोग है। पीछे मुडक़र स्वयं को देखने, जीवन को पवित्र एवं साधनामय बनाने का ईमानदार प्रयत्न है। वर्तमान की आंख से अतीत और भविष्य को देखते हुए कल क्या थे और कल क्या होना है इसका विवेकी निर्णय लेकर एक नये सफर की शुरुआत की जाती है। श्रावण में मेघ अपना नाद सुनाते हैं, प्रकृति का अपना राग उत्पन्न होता है और मानव में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है। सम्पूर्ण प्रकृति एवं पर्यावरण नहाया हुआ होता है, प्रकृति का सौन्दर्य जीवंत हो उठता है।
कल-कल करते झरनों, नदियों एवं मेघ का दिव्य नाद से धरती की गोद में नयी कोपलें उत्पन्न होती है। आचार्य सतीश कौशिक ने कहा कि आज जरूरत है, रोग से निरोगता की ओर, श्रद्धा से समर्पण की ओर अग्रसर होने की, आध्यात्मिकता से आत्मीयता की ओर बढऩे की और शिव-साधना के साथ शिवत्व को धारण करने की। संपूर्ण संसार में यही एक ऐसा उत्सव, अवसर या पर्व है जिसमें आत्मरत होकर व्यक्ति आत्मार्थी बनता है व अलौकिक, आध्यात्मिक आनंद के शिखर पर आरोहण करता हुआ मोक्षगामी होने का सद्प्रयास करता है। इस अवसर पर महाकालेश्वर मंदिर में शिवभक्तों ने शिवलिंग पर जलाभिषेक कर पूजा अर्चना करते हुए विश्व मंगल, पर्यावरण एवं प्रकृति सरंक्षण का संकल्प लिया. कार्यक्रम में अनेक शिवभक्त एवं गणमान्य जन उपस्थित रहे।