Friday, November 22, 2024
Home Kurukshetra News भारत के राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभालने के अवसर पर द्रौपदी मुर्मु का सम्बोधन 

भारत के राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभालने के अवसर पर द्रौपदी मुर्मु का सम्बोधन 

by Newz Dex
0 comment

न्यूज डेक्स इंडिया

दिल्ली।भारत के राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभालने के अवसर पर द्रौपदी मुर्मु ने सम्बोधन की शुरुआत जोहार और नमस्कार से की। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर निर्वाचित करने के लिए सभी सांसदों और सभी विधानसभा सदस्यों का आभार जताते हुए कहा कि आपका मत देश के करोड़ों नागरिकों के विश्वास की अभिव्यक्ति है।  मैं भारत के समस्त नागरिकों की आशा-आकांक्षा और अधिकारों की प्रतीक इस पवित्र संसद से सभी देशवासियों का पूरी विनम्रता से अभिनंदन करती हूं। आपकी आत्मीयता, आपका विश्वास और आपका सहयोग, मेरे लिए इस नए दायित्व को निभाने में मेरी बहुत बड़ी ताकत होंगे। मुझे राष्ट्रपति के रूप में देश ने एक ऐसे महत्वपूर्ण कालखंड में चुना है जब हम अपनी आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं।  आज से कुछ दिन बाद ही देश अपनी स्वाधीनता के 75 वर्ष पूरे करेगा।  ये भी एक संयोग है कि जब देश अपनी आजादी के 50वें वर्ष का पर्व मना रहा था तभी मेरे राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई थी।  और आज आजादी के 75वें वर्ष में मुझे ये नया दायित्व मिला है। ऐसे ऐतिहासिक समय में जब भारत अगले 25 वर्षों के विजन को हासिल करने के लिए पूरी ऊर्जा से जुटा हुआ है, मुझे ये जिम्मेदारी मिलना मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य है।  मैं देश की ऐसी पहली राष्ट्रपति भी हूँ जिसका जन्म आज़ाद भारत में हुआ है।  हमारे स्वाधीनता सेनानियों ने आजाद हिंदुस्तान के हम नागरिकों से जो अपेक्षाएं की थीं, उनकी पूर्ति के लिए इस अमृतकाल में हमें तेज गति से काम करना है।  इन 25 वर्षों में अमृतकाल की सिद्धि का रास्ता दो पटरियों पर आगे बढ़ेगा

 सबका प्रयास और सबका कर्तव्य। भारत के उज्ज्वल भविष्य की नई विकास यात्रा, हमें सबके प्रयास से करनी है, कर्तव्य पथ पर चलते हुए करनी है। कल यानि 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस भी है। ये दिन, भारत की सेनाओं के शौर्य और संयम, दोनों का ही प्रतीक है। मैं आज, देश की सेनाओं को तथा देश के समस्त नागरिकों को कारगिल विजय दिवस की अग्रिम शुभकामनाएं देती हूं।

देवियों और सज्जनों,

मैंने अपनी जीवन यात्रा पूर्वी भारत में ओडिशा के एक छोटे से आदिवासी गांव से शुरू की थी। मैं जिस पृष्ठभूमि से आती हूँ, वहां मेरे लिये प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करना भी एक सपने जैसा ही था।  लेकिन अनेक बाधाओं के बावजूद मेरा संकल्प दृढ़ रहा और मैं कॉलेज जाने वाली अपने गांव की पहली बेटी बनी।  मैं जनजातीय समाज से हूँ, और वार्ड कौन्सिलर से लेकर भारत की राष्ट्रपति बनने तक का अवसर मुझे मिला है। यह लोकतंत्र की जननी भारतवर्ष की महानता है। ये हमारे लोकतंत्र की ही शक्ति है कि उसमें एक गरीब घर में पैदा हुई बेटी, दूर-सुदूर आदिवासी क्षेत्र में पैदा हुई बेटी, भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंच सकती है। 

राष्ट्रपति के पद तक पहुँचना, मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, ये भारत के प्रत्येक गरीब की उपलब्धि है।  मेरा निर्वाचन इस बात का सबूत है कि भारत में गरीब सपने देख भी सकता है और उन्हें पूरा भी कर सकता है। और ये मेरे लिए बहुत संतोष की बात है कि जो सदियों से वंचित रहे, जो विकास के लाभ से दूर रहे, वे गरीब, दलित, पिछड़े तथा आदिवासी मुझ में अपना प्रतिबिंब देख रहे हैं।  मेरे इस निर्वाचन में देश के गरीब का आशीर्वाद शामिल है, देश की करोड़ों महिलाओं और बेटियों के सपनों और सामर्थ्य की झलक है।मेरे इस निर्वाचन में, पुरानी लीक से हटकर नए रास्तों पर चलने वाले भारत के आज के युवाओं का साहस भी शामिल है।  ऐसे प्रगतिशील भारत का नेतृत्व करते हुए आज मैं खुद को गौरवान्वित महसूस कर रही हूँ।  मैं आज समस्त देशवासियों को, विशेषकर भारत के युवाओं को तथा भारत की महिलाओं को ये विश्वास दिलाती हूं कि इस पद पर कार्य करते हुए मेरे लिए उनके हित सर्वोपरि होंगे।

मेरे सामने भारत के राष्ट्रपति पद की ऐसी महान विरासत है जिसने विश्व में भारतीय लोकतन्त्र की प्रतिष्ठा को निरंतर मजबूत किया है। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद से लेकर श्री राम नाथ कोविन्द जी तक, अनेक विभूतियों ने इस पद को सुशोभित किया है। इस पद के साथ साथ देश ने इस महान परंपरा के प्रतिनिधित्व का दायित्व भी मुझे सौंपा है।  संविधान के आलोक में, मैं पूरी निष्ठा से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करूंगी।  मेरे लिए भारत के लोकतांत्रिक-सांस्कृतिक आदर्श और सभी देशवासी हमेशा मेरी ऊर्जा के स्रोत रहेंगे। हमारे स्वाधीनता संग्राम ने एक राष्ट्र के तौर पर भारत की नई यात्रा की रूपरेखा तैयार की थी। 

हमारा स्वाधीनता संग्राम उन संघर्षों और बलिदानों की अविरल धारा था जिसने आज़ाद भारत के लिए कितने ही आदर्शों और संभावनाओं को सींचा था।पूज्य बापू ने हमें स्वराज, स्वदेशी, स्वच्छता और सत्याग्रह द्वारा भारत के सांस्कृतिक आदर्शों की स्थापना का मार्ग दिखाया था। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, नेहरू जी, सरदार पटेल, बाबा साहेब आंबेडकर, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे अनगिनत स्वाधीनता सेनानियों ने हमें राष्ट्र के स्वाभिमान को सर्वोपरि रखने की शिक्षा दी थी।रानी लक्ष्मीबाई, रानी वेलु नचियार, रानी गाइदिन्ल्यू और रानी चेन्नम्मा जैसी अनेकों वीरांगनाओं ने राष्ट्ररक्षा और राष्ट्रनिर्माण में नारीशक्ति की भूमिका को नई ऊंचाई दी थी।  संथाल क्रांति, पाइका क्रांति से लेकर कोल क्रांति और भील क्रांति ने स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी योगदान को और सशक्त किया था। सामाजिक उत्थान एवं देश-प्रेम के लिए ‘धरती आबा’ भगवान् बिरसा मुंडा जी के बलिदान से हमें प्रेरणा मिली थी। मुझे खुशी है कि आजादी की लड़ाई में जनजातीय समुदाय के योगदान को समर्पित अनेक म्यूजियम देशभर में बनवाए जा रहे हैं।

एक संसदीय लोकतंत्र के रूप में 75 वर्षों में भारत ने प्रगति के संकल्प को सहभागिता एवं सर्व-सम्मति से आगे बढ़ाया है। विविधताओं से भरे अपने देश में हम अनेक भाषा, धर्म, संप्रदाय, खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाजों को अपनाते हुए ‘एक भारत – श्रेष्ठ भारत’ के निर्माण में सक्रिय हैं।आजादी के 75वें वर्ष के अवसर पर आया ये अमृतकाल भारत के लिए नए संकल्पों का कालखंड है। आज मैं इस नए युग के स्वागत में अपने देश को नई सोच के साथ तत्पर और तैयार देख रही हूँ। भारत आज हर क्षेत्र में विकास का नया अध्याय जोड़ रहा है। कोरोना महामारी के वैश्विक संकट का सामना करने में भारत ने जिस तरह का सामर्थ्य दिखाया है, उसने पूरे विश्व में भारत की साख बढ़ाई है। हम हिंदुस्तानियों ने अपने प्रयासों से न सिर्फ इस वैश्विक चुनौती का सामना किया बल्कि दुनिया के सामने नए मापदंड भी स्थापित किए।कुछ ही दिन पहले भारत ने कोरोना वैक्सीन की 200 करोड़ डोज़ लगाने का कीर्तिमान बनाया है। इस पूरी लड़ाई में भारत के लोगों ने जिस संयम, साहस और सहयोग का परिचय दिया, वो एक समाज के रूप में हमारी बढ़ती हुई शक्ति और संवेदनशीलता का प्रतीक है।

भारत ने इन मुश्किल हालात में न केवल खुद को संभाला बल्कि दुनिया की मदद भी की।कोरोना महामारी से बने माहौल में, आज दुनिया भारत को नए विश्वास से देख रही है। दुनिया की आर्थिक स्थिरता के लिए, सप्लाई चेन की सुगमता के लिए, और वैश्विक शांति के लिए दुनिया को भारत से बहुत उम्मीदें हैं। आगामी महीनों में भारत अपनी अध्यक्षता में G-20 ग्रुप की मेजबानी भी करने जा रहा है। इसमें दुनिया के बीस बड़े देश भारत की अध्यक्षता में वैश्विक विषयों पर मंथन करेंगे। मुझे विश्वास है भारत में होने वाले इस मंथन से जो निष्कर्ष और नीतियाँ निर्धारित होंगी, उनसे आने वाले दशकों की दिशा तय होगी।

दशकों पहले मुझे रायरंगपुर में श्री ऑरोबिंदो इंटीग्रल स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्य करने का अवसर मिला था।कुछ ही दिनों बाद श्री ऑरोबिंदो की 150वीं जन्मजयंती मनाई जाएगी।शिक्षा के बारे में श्री ऑरोबिंदो के विचारों ने मुझे निरंतर प्रेरित किया है।जनप्रतिनिधि के रूप में विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए और फिर राज्यपाल के रूप में भी मेरा शिक्षण संस्थानों के साथ सक्रिय जुड़ाव रहा है। मैंने देश के युवाओं के उत्साह और आत्मबल को करीब से देखा है। हम सभी के श्रद्धेय अटल जी कहा करते थे कि देश के युवा जब आगे बढ़ते हैं तो वे सिर्फ अपना ही भाग्य नहीं बनाते बल्कि देश का भी भाग्य बनाते हैं। आज हम इसे सच होते देख रहे हैं।Vocal For Local से लेकर Digital India तक हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा आज का भारत विश्व के साथ कदम से कदम मिला कर ‘औद्योगिक क्रांति फोर पॉइंट ओ’  के लिए पूरी तरह तैयार है। 

रिकॉर्ड संख्या में बन रहे स्टार्ट-अप्स में, नए-नए इनोवेशन में, दूर-सुदूर क्षेत्रों में डिजिटल टेक्नोलॉजी की स्वीकार्यता में भारत के युवाओं की बड़ी भूमिका है। बीते वर्षों में भारत ने जिस तरह महिला सशक्तिकरण के लिए निर्णय लिए हैं, नीतियां बनाई हैं, उससे भी देश में एक नई शक्ति का संचार हुआ है। मैं चाहती हूं कि हमारी सभी बहनें व बेटियां अधिक से अधिक सशक्त हों तथा वे देश के हर क्षेत्र में अपना योगदान बढ़ाती रहें।मैं अपने देश के युवाओं से कहना चाहती हूं कि आप न केवल अपने भविष्य का निर्माण कर रहे हैं बल्कि भविष्य के भारत की नींव भी रख रहे हैं।  देश के राष्ट्रपति के तौर पर मेरा हमेशा आपको पूरा सहयोग रहेगा।

विकास और प्रगतिशीलता का अर्थ निरंतर आगे बढ़ना होता है, लेकिन साथ ही अपने अतीत का ज्ञान भी उतना ही आवश्यक है। आज जब विश्व sustainable planet की बात कर रहा है तो उसमें भारत की प्राचीन परंपराओं, हमारे अतीत की sustainable lifestyle की भूमिका और बढ़ जाती है। मेरा जन्म तो उस जनजातीय परंपरा में हुआ है जिसने हजारों वर्षों से प्रकृति के साथ ताल-मेल बनाकर जीवन को आगे बढ़ाया है। मैंने जंगल और जलाशयों के महत्व को अपने जीवन में महसूस किया है। हम प्रकृति से जरूरी संसाधन लेते हैं और उतनी ही श्रद्धा से प्रकृति की सेवा भी करते हैं। यही संवेदनशीलता आज वैश्विक अनिवार्यता बन गई है। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि भारत पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में विश्व का मार्गदर्शन कर रहा है। 

मैंने अपने अब तक के जीवन में जन-सेवा में ही जीवन की सार्थकता को अनुभव किया है। श्री जगन्नाथ क्षेत्र के एक प्रख्यात कवि भीम भोई जी की कविता की एक पंक्ति है-  “मो जीवन पछे नर्के पड़ी थाउ, जगत उद्धार हेउ”। अर्थात, अपने जीवन के हित-अहित से बड़ा जगत कल्याण के लिए कार्य करना होता है। जगत कल्याण की इसी भावना के साथ, मैं आप सब के विश्वास पर खरा उतरने के लिए पूरी निष्ठा व लगन से काम करने के लिए सदैव तत्पर रहूंगी। आइए, हम सभी एक जुट होकर समर्पित भाव से कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ें तथा वैभवशाली व आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करें। राष्ट्रपति ने अपने संबोधन के अंत में जय हिंद का उद्घोष किया।

धन्यवाद,जय हिन्द!

You may also like

Leave a Comment

NewZdex is an online platform to read new , National and international news will be avavible at news portal

Edtior's Picks

Latest Articles

Are you sure want to unlock this post?
Unlock left : 0
Are you sure want to cancel subscription?
-
00:00
00:00
Update Required Flash plugin
-
00:00
00:00