Friday, November 22, 2024
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 राज्यपाल और डॉ. विनय सहस्त्रबुद्धे ने किया डॉ. राजेश कुमार व्यास की पुस्तक का लोकार्पण

by Newz Dex
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कलाकारों की उपस्थिति में हुआ ‘कला-मन’ का लोकार्पण

कलाओं की गहराई में उनकी रोचक व्याख्या करने वाले लेखक हैं डॉ. व्यास

न्यूज डेक्स राजस्थान

जयपुर। राज्यपाल कलराज मिश्र और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिेषद् के अध्यक्ष डॉ. विनय सहस्त्रबुद्धे ने शनिवार को राजभवन में संस्कृतिकर्मी, कवि,  कला आलोचक और राजभवन में संयुक्त निदेषक के पद पर कार्यरत डॉ. राजेश कुमार व्यास की पुस्तक ‘कला-मन’ का लोकार्पण किया। राज्यपाल मिश्र ने लोकार्पण समारोह में कहा कि डॉ. राजेश कुमार व्यास कलाओं की गहराई में जाकर उनकी व्याख्या इस रोचक ढंग से करते हैं कि, लगता है हम शब्दों में कलाओं का आस्वाद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि संगीत, नृत्य, नाट्य आदि कलाओं पर व्यास की अपनी मौलिक स्थापनाएं हैं और वह भारतीय कला दृष्टि के इस समय के विरल कला मर्मज्ञ हैं। 

मिश्र ने कहा कि डॉ. राजश कुमार व्यास भाषा के अपने सहज और कलात्मक सौंदर्य में पढ़ने वालों को लुभाते हैं। उनके लिखे के जरिए संगीत, नृत्य, नाट्य और चित्रकलाओं से हमारी और अधिक निकटता होती है।  डॉ. सहस्त्रबुद्धे ने व्यास को उनकी मौलिक कला पुस्तक के लिए बधाई देते हुए कहा कि कलाओं की प्रस्तुतियों के साथ उनकी व्याख्या भी महत्वपूर्ण होती है। इस दृष्टि से व्यास की पुस्तक महत्वपूर्ण है।

लेखक डॉ. राजेष कुमार व्यास ने कहा कि कलाकारों की उपस्थिति में कलाओं से जुड़ी पुस्तक का लोकार्पण सुखद है। उन्होंने कहा कि संगीत, नृत्य, नाट्य, चित्रकला, छायांकन आदि कलाएं सदा ही मन को संपन्न करती रही है, इस संपन्नता के उजास से ही ‘कला-मन’ का सृजन हुआ है। इस अवसर पर राज्यपाल के प्रमुख सचिव श्री सुबीर कुमार, प्रमुख विषेषाधिकारी श्री गोविन्द राम जायसवाल एवं प्रदेष के प्रतिनिधि कलाकार उपस्थित थे।

‘कला-मन’ पुस्तक – 

कला मर्मज्ञ डॉ. राजेष कुमार व्यास की पुस्तक ‘कला-मन’ वैचारिक निबंधों की पुस्तक है। प्रभात प्रकाषन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाषित इस पुस्तक में संगीत, नृत्य, नाट्य, चित्रकला तथा अन्य प्रदर्षनकारी कलाओं से जुड़े महत्वपूर्ण वैचारिक निंबंध संकलित हैं। भारतीय कलाओं की मौलिक स्थापनाएं लिए इस पुस्तक में कलाओं की सूक्ष्म विषेषताओं के साथ उनसे जुड़े चिंतन और महती आख्यान भी हैं। कलाओं पर अपनी तरह की यह पहली ऐसी पुस्तक है, जिसमें पष्चिम की बजाय भारतीय कला दृष्टि के साथ कलाओं के अन्तःसंबंधों, कलाओं से जुड़े भारतीय चिंतन, शास्त्र और लोक कलाओं की समृद्ध परम्परा पर गहन विमर्ष और रसिकता के साथ लेखक ने लालित्य भरा रोचक कला लेखन किया है।

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