संस्कृति बोध परियोजना-अखिल भारतीय कार्यशाला का शुभारंभ
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के महामंत्री अवनीश भटनागर ने कहा कि संस्कृति के संवाहक के रूप में भाषा से बड़ा कोई संवाहक नहीं हो सकता। अतः पुस्तकों में भाषा की शुद्धता नितान्त आवश्यक है। अवनीश भटनागर विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा आयोजित तीन दिवसीय अखिल भारतीय कार्यशाला के शुभारंभ पर देशभर से आए लेखकों एवं संस्कृति बोध परियोजना से जुड़े प्रान्त प्रमुखों को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उनके साथ विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी भी रहे। कार्यशाला में संस्थान के सचिव वासुदेव प्रजापति, सहसचिव डॉ. पंकज शर्मा, कोषाध्यक्ष डॉ. ज्वाला प्रसाद, शोध निदेशक डॉ. हिम्मत सिंह सिन्हा भी विशेष रूप से उपस्थित रहे।
अतिथियों का परिचय कराते हुए संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने तीन दिवसीय कार्यशाला की रूपरेखा प्रस्तुत की और पुस्तकों में संशोधन के निमित्त आवश्यक जानकारी दी। उन्होंने कहा कि संस्कृति बोध अभियान के कारण पाठकों का व्याप बुद्धिजीवी वर्ग में बढ़ा है, अतः सतर्कता आवश्यक है। संशोधन बिना कटिंग के साफ व स्वच्छ लिखें और ओवरराइटिंग न करें। संशोधन के समय यह अवश्य ध्यान रखें कि पुस्तक के पृष्ठ न बढ़ें। कक्षा के स्तर के अनुसार भाषा शैली, तथ्य और उनका विवरण अवश्य दें। संस्कृति बोध परियोजना के अखिल भारतीय विषय संयोजक दुर्ग सिंह राजपुरोहित ने आए हुए विद्वानों का परिचय लेकर कार्य अनुसार समूह निर्माण कराया।
अवनीश भटनागर ने कहा कि प्रकाशन की शुद्धता को ध्यान में रखते हुए पुस्तक संशोधन के समय शब्दों और वाक्य रचना में हिन्दी की शुद्धता का विशेष रूप से ध्यान रखना होगा। साथ ही विशेष बात लिखते समय संदर्भ सहित दी जाए तो पुस्तक की प्रामाणिकता भी बढ़ती है। उन्होंने रामचरितमानस से ‘‘रामरमापति कर धनु लेहु…..’’ का प्रसंग देकर सभी की जिज्ञासा को शांत किया। माता से मांगने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए, अतः संस्कृत को माता का रूप देकर इसमें से शब्द लें। आज पंचमाक्षर का प्रयोग कम होता जा रहा है जिसे हिन्दी भाषा की शुद्धता बनाए रखने के लिए अधिक बल देने की आवश्यकता है। कार्यशाला में अखिल भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा की कक्षा 4 से 12 तक की बोधमाला पुस्तकों में संशोधन किया जाना है। प्रातःकालीन सत्र में संस्थान के सचिव वासुदेव प्रजापति ने पुस्तक संशोधन करते समय क्या-क्या सावधानियां बरतनी हैं, इसे विस्तार से समझाया।
इन विषयों पर किया जाना है संशोधन
कक्षा 4 से 12 तक की बोधमाला रूपी संस्कृति ज्ञान परीक्षा की पुस्तकें हैं जिनमें मातृभूमि भारत, वसुधैव कुटुम्बकम्, संस्कारों की पावन परम्परा, हमारा गौरवशाली इतिहास, भारतीय विज्ञान की उज्ज्वल परम्परा, सामान्य ज्ञान, हमारे राष्ट्रनायक। कार्यशाला में मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, असम सहित अन्य राज्यों से आए 36 विद्वान विषय-विशेषज्ञ प्रतिभागिता कर रहे हैं।