स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद एवं स्वामी सदानंद सरस्वती को शंकराचार्य बनाए जाने से धर्म को मिलेगी नई दिशा एवं मार्गदर्शन
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। देशभर में धर्म, अध्यात्म, योग, गौ संरक्षण, शिक्षा एवं विज्ञान की संचालित संस्थाओं के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी ने जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के प्रतिनिधि शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को ज्योतिष पीठ का नया शंकराचार्य तथा द्वारका शारदा पीठ का उत्तराधिकारी स्वामी सदानंद सरस्वती को नया शंकराचार्य बनाये जाने पर अन्य संत महापुरुषों के साथ नमन किया। उन्होंने कहा कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती एवं स्वामी सदानंद सरस्वती की नियुक्ति से धर्म को जहां नई दिशा एवं मार्गदर्शन मिलेगा। वहीं धर्म की रक्षा भी होगी। उन्होंने बताया कि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के उत्तराधिकारी घोषित किए गए दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद दोनों मेधावी हैं, वेद, पुराण और वेदांत दर्शन के ज्ञाता हैं और शास्त्रार्थ में निपुण हैं।
इसके साथ ही दोनों का ही काशी से काफी करीबी और अटूट संबंध भी है। स्वामी सदानंद सरस्वती की प्रारंभिक शिक्षा बरगी व संस्कृत की शिक्षा ज्योतिरीश्वर ऋषिकुल संस्कृत विद्यालय झौंतेश्वर में हुई। व्याकरण, न्याय, वेद, वेदांत की शिक्षा उन्होंने काशी में प्राप्त की। वह करीब 14 वर्ष की आयु में शंकराचार्य आश्रम में आए। गुरु चरणों में अटूट श्रद्धा भक्ति को देखते हुए शंकराचार्य ने उन्हें नैष्ठिक ब्रह्मचारी की दीक्षा प्रयाग कुंभ में सन 1977 में दी। शंकराचार्य ने सदानंद ब्रह्मचारी का नाम देकर अपनी शक्तियां आशीर्वाद रूप में प्रदान की। 15 अप्रैल 2003 को काशी में शंकराचार्य द्वारा दंड संन्यास की दीक्षा देकर ब्रह्मचारी सदानंद को पूर्ण स्वामी सदानंद सरस्वती के रूप में धर्म प्रचार, धर्मादेश देने की आज्ञा प्रदान की।
ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी ने बताया कि धर्म रक्षार्थ सदा आवाज उठाने के लिए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जाने जाते हैं। गंगा अविरलता के लिए आंदोलन और गणेश प्रतिमा विसर्जन रोकने पर सड़क पर उतरकर -बरसती लाठियों से भी नहीं डिगे थे आंदोलनकारी संत। द्वारका शारदा व ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के देह त्याग से काशी दुखी तो है, लेकिन उनके उत्तराधिकारी के तौर पर ज्योतिष्पीठ की जिम्मेदारी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का नाम आने के बाद काशीवासियों की आंखों के सामने फिल्म रील की तरह घूम रहा है उनका धर्म रक्षार्थ आंदोलन।इसमें लोगों को उनका गंगा के लिए अन्न जल त्याग तप के साथ ही गणेश प्रतिमा विसर्जन रोके जाने पर उनका गोदौलिया चौराहे पर धरने के दौरान लाठियां खाना भी याद आ रहा। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के प्रतिनिधि शिष्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए आंदोलन तो कई किए लेकिन इन दोनों ने उन्हें राष्ट्रीय ही नहीं वैश्विक ख्याति दी।