Friday, November 22, 2024
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एकल नाट्य समारोह में हुआ ‘डेढ़ इंच ऊपर’ और ‘किस्सागोई’ का मंचन

by Newz Dex
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न्यूज डेक्स संवाददाता

रोहतक। स्थानीय आईएमए सभागार में चल रहे एकल नाट्य समारोह के पांचवे व अंतिम दिन हरियाणा इंस्टीट्यूट ऑफ परफोर्मिंग आर्ट्स (हिपा) द्वारा निर्मल वर्मा के प्रसिद्ध नाटक ‘डेढ़ इंच ऊपर’ का मंचन हुआ। ललित खन्ना अभिनीत इस नाटक का निर्देशन विश्वदीपक त्रिखा द्वारा किया गया। ‘डेढ़ इंच ऊपर’ इंसान के अकेलेपन, वैचारिक द्वंद्व और रिश्तों में पैदा होने वाले अविश्वास से उपजी निराशा की कहानी है। नाटक पुरुषों के जीवन में स्त्री के महत्व को भी रेखांकित करता है। बानगी के तौर पर नाटक का एक संवाद देख सकते हैं कि “आप उसे घर कहते हैं, वह तो महज़ ईंट गारे का एक मकान है ज़नाब, उसे घर बनाने का हुनर तो एक औरत में ही होता है।” नाट्य संध्या के दूसरे भाग में विश्वदीपक त्रिखा ने ‘किस्सागोई’ की प्रस्तुति दी, जिसमें उन्होंने एक नाट्यकर्मी के जीवन में आने वाले उतार-चढ़ावों को बेहद रोचक एवं भावपूर्ण अंदाज़ में प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की शुरुआत रंगकर्मी और शिक्षाविद अलकेश दलाल ने दीप प्रज्वलित करके की।

‘नाटक डेढ़ इंच ऊपर’ में एक व्यक्ति बार में बैठा अनजान लोगों को अपने जीवन की कहानी सुनाता है। भीड़भाड़ के बीच भी वह खुद को बेहद अकेला महसूस करता है। वह अपनी जिंदगी की घटनाएं परत दर परत दर्शकों से शेयर करने लगता है। असल में, उसकी पीड़ा और अकेलेपन का मुख्य कारण उसकी पत्नी है, जिसे वह बहुत प्यार करता था और उसे भरोसा था कि वह उसके बारे में सब कुछ जनता है। क्योंकि उसकी पत्नी उससे कुछ भी नहीं छुपाती। लेकिन एक दिन उसकी पत्नी को पुलिस पकड़ ले जाती है और बाद में उसकी हत्या कर देती है। पुलिस से उसे पता लगता कि वह सरकार के खिलाफ षड्यंत्र में शामिल थी और भूमिगत विरोधियों की नेता थी। पुलिस समझती है कि उसे पत्नी के सब राज मालूम होंगे, इसलिए वह उसे भी टॉर्चर करती है। लेकिन उसे पुलिस द्वारा दी गई प्रताड़ना की इतनी पीड़ा नहीं थी, जितनी इस बात से थी कि वह 18 साल से जिस पत्नी के साथ रह रहा था, उसने उसे अपनी ज़िंदगी के इतने बड़े राज की भनक तक न लगने दी। उसे उसकी किसी भी हरकत से इस बात का एहसास तक न हुआ। इसको लेकर वह अपने आप को ठगा सा महसूस करता है। कहानी इसी सच के आस पास घूमती है।

किस्सागोई में त्रिखा ने दिखाया कि एक कलाकार के जीवन में किस तरह नई-नई कहानियां जन्म लेती हैं और इनसे उनका जीवन किस तरह प्रभावित होता है। यह भी कि कलाकार के घर वाले और आसपास के लोग उसके बारे में क्या धारणाएं बना लेते हैं। इनमें से कई तो बिल्कुल निराधार होती हैं, लेकिन इससे समाज में उनकी छद्म और नकारात्मक छवि बन जाती है, जो कभी-कभी उसके लिए तकलीफदेह भी होती है। अपने आसपास के अनुभवों को संजोकर त्रिखा एक से एक मज़ेदार किस्से सुनाते हैं और दर्शकों को एक अलग ही दुनिया की सैर करवा देते हैं। मंचन के दौरान अलकेश दलाल, कपिल सहगल, नलिनी त्रिखा, वाईपी छाबड़ा, सतनाम सिंह, इंदरजीत भयाना, राजेन्द्र चिटकारा, आर के रोहिल्ला, कृष्ण नाटक, विष्णु मित्र, शशिकांत, श्रीभगवान शर्मा, रविन्द्र सैनी, पंकज शर्मा, अंकुर सैनी, आकाश, पवन कुमार, शक्ति सरोवर त्रिखा, तरुण पुष्प, अविनाश सैनी, यतिन वधवा, दीपक, राहुल, सहित अनेक रंगकर्मी और नाट्य प्रेमी उपस्थित रहे। 

गौरतलब है कि एकल नाट्य समारोह का आयोजन हिंदी पखवाड़े के उपलक्ष्य में हरियाणा इंस्टिट्यूट ऑफ परफोर्मिंग आर्ट्स (हिपा) द्वारा पठानिया वर्ल्ड कैम्पस, हरियाणा साहित्य अकादमी, उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, पटियाला और उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, इलाहाबाद के सहयोग से किया गया। रोहतक रंगमंच के इतिहास में इस तरह के यह पहला आयोजन रहा, जिसका पूरा श्रेय रंगप्रसारक विश्वदीपक त्रिखा और अन्य स्थानीय रंगकर्मियों को जाता है। समारोह का उद्घाटन उपायुक्त यशपाल यादव ने किया तथा गुरुग्राम से आए वरिष्ठ रंगकर्मी महेश वशिष्ठ सहित अनेक स्थानीय कलाप्रेमियों ने इस में शिरकत की।

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