हर घर तक सरस्वती नदी के जल को 15 अगस्त 2023 तक पहुंचाने के लक्ष्य को पूरा करने का किया जाएगा प्रयास
आरएसएस के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य इंद्रेश कुमार, एचएसएससी के पूर्व चेयरमैन भारत भूषण भारती, बोर्ड के उपाध्यक्ष धुमन सिंह किरमच ने किया सेमीनार का शुभारंभ
सरस्वती सिंधु सभ्यता विषय पर हुआ मंथन
न्यूज डेक्स संवाददाता
पिहोवा।राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के राष्टï्रीय कार्यकारिणी सदस्य इंद्रेश कुमार ने कहा कि हरियाणा की माटी से हजारों साल पहले बहने वाली पवित्र सरस्वती नदी के किनारे ही वेदों और गं्रथों की रचना हुई। इन वेदों और ग्रंथों से पूरे विश्व को ज्ञान और विज्ञान का पाठ पढऩे को मिला। इस नदी को संस्कृति और सभ्यताओं की जननी भी कहा जाता है। इस पवित्र नदी को फिर से धरातल पर लाने और इस नदी के किनारे प्राचीन काल में बसने वाली सभ्यताओं पर शोध करने का प्रयास लगातार सरकार द्वारा किया जा रहा है। इस शोध से युवा पीढ़ी को देश की प्राचीन संस्कृति और सभ्यता से आत्मसात करने का एक अवसर मिलेगा। अहम पहलू यह है कि 15 अगस्त तक पवित्र सरस्वती नदी के जल को हर घर तक पहुंचाने के लक्ष्य को पूरा करने का प्रयास किया जाएगा। इसकी रुपरेखा सरस्वती बोर्ड की तरफ से तैयार की जा रही है।
आरएसएस राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य इंद्रेश कुमार मंगलवार को पिहोवा डीएवी कालेज के सभागार में हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय सरस्वती नदी शोध केंद्र व डीएवी कालेज के तत्वाधान में सरस्वती सिंधु सभ्यता पर आयोजित एक दिवसीय सेमीनार के उदघाटन सत्र में बोल रहे थे। इससे पहले आरएसएस राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य इंद्रेश कुमार, एचएसएससी के पूर्व चेयरमैन भारत भूषण भारती, बोर्ड के उपाध्यक्ष धुमन सिंह किरमच, आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति डा. बलदेव धीमान, एसडीएम सोनू राम, डीएवी कालेज के प्रिंसीपल कामदेव झा, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय सरस्वती शोध केंद्र के निदेशक प्रोफेसर डा. एआर चौधरी, शोधकर्ता डा. दीपा, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पूर्व कुलसचिव डा. हवा सिंह ने विधिवत रुप से सरस्वती सिंधु सभ्यता के सेमीनार का दीप प्रज्जवलित करके शुभाारंभ किया। इस सेमीनार में विभिन्न विश्वविद्यालयों और कालेजों के 15 से ज्यादा शोधार्थियों ने भी सरस्वती सिंधु सभ्यता पर मंथन किया।
आरएसएस राष्टï्रीय कार्यकारिणी सदस्य इंद्रेश कुमार ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल के साथ-साथ बोर्ड की टीम का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार के प्रयासों से पवित्र सरस्वती नदी की धारा का फिर से प्रवाह करने तथा नदी के किनारे स्थित सभ्यताओं और प्राचीन पर्यटन स्थलों को विकसित करने के साथ-साथ प्राचीन सभ्यताओं पर शोध करने के अनूठे प्रयास शुरु किए है। इन प्रयासों से आने वाले समय में सार्थक परिणाम देखने को मिलेंगे। उन्होंने पवित्र सरस्वती नदी के प्राचीन इतिहास के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वेदों और ग्रंथों की रचना इस पवित्र नदी के किनारे हुई। यह ग्रंथ विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ है। इन ग्रंथों से पूरे विश्व को शिक्षा, संस्कृति और संस्कारों का ज्ञान मिल रहा है। इस नदी के किनारे ही ज्ञान और विज्ञान का पाठ एक साथ पढऩे को मिला। इस ज्ञान और विज्ञान तथा वेदों के कारण आज देश का अस्तित्व बचा हुआ है। इसलिए इन तमाम विषयों को जहन में रखते हुए सरकार ने सरस्वती सिंधु सभ्यता विषय पर सेमीनार करने का निर्णय लिया।
एचएसएससी के पूर्व चेयरमैन भारत भूषण भारती ने कहा कि पिहोवा एक प्राचीन और पवित्र तीर्थ नगरी है, इस धरा पर सरस्वती तीर्थ स्थल की भी स्थापना की गई है। इस तीर्थ स्थल पर हर वर्ष लाखों लोग दर्शन करने के लिए आते है। इस धरा पर सरस्वती नदी का प्रवाह होना कुरुक्षेत्र के नागरिकों के लिए एक गौरव और सौभाग्य का विषय है। इस पवित्र स्थल पर सरस्वती नदी की खोज के लिए स्वर्गीय दर्शन लाल जैन भी पहुंचे थे और उस समय से ही सरस्वती नदी को धरातल पर लाने का प्रयास शुरू किया गया था और इसके लिए बकायदा एक प्रोजेक्ट भी तैयार किया गया तथा इस प्रोजेक्ट के अनुसार ही सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड की तरफ से कार्य किया जा रहा है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल के प्रयासों से ही सरस्वती नदी को लेकर कई तरह के बड़े प्रोजेक्ट तैयार किए गए है। इन सभी प्रोजेक्ट पर निरंतर काम किया जा रहा है।
हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष धुमन सिंह किरमच ने कहा कि बोर्ड की तरफ से सरस्वती नदी के किनारे प्राचीन काल में बसी सभ्यताओं व संस्कृति पर शोध किया जाएगा। इस शोध को करने का आगाज प्रदेश सरकार की तरफ से शुरू किया जा रहा है। इस शोध कार्य में युवा पीढ़ी को प्राथमिकता दी जाएगी। यह शोध कार्य और प्राचीन संस्कृति पर मंथन करने का कार्य मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा पहल करने पर ही किया जा रहा है। हरियाणा की सबसे प्राचीन नदी सरस्वती नदी के किनारे पर ही वेदों की रचना की गई है। इस नदी के किनारे प्राचीन काल से मंदिर, ऐतिहासिक स्थलों को स्थापित किया गया और ऋषि मुनियों ने पूरे विश्व को शिक्षा व संस्कारों का ज्ञान देने का काम किया। लेकिन समय के काल के साथ यह नदियां विलुप्त हो गई। परंतु आज भी इस नदी के किनारे देश व प्रदेश का इतिहास छिपा हुआ है। इस इतिहास को जानना बहुत जरूरी है और युवा पीढ़ी को इस संस्कृति व सभ्यता का ज्ञान होना जरूरी है। इस नदी के किनारे आदिबद्री, कुरुक्षेत्र में भगवानपुरा, बिहोली, पिहोवा सरस्वती तीर्थ, बालू, बनावली, कुनाल, राखीगढ़ी सहित अन्य प्रदेशों में प्राचीन साइट है। इन सभी साइट की खुदाई से इतिहास का खुलासा हो चुका है। इस कार्यक्रम में कुलपति डा. बलदेव धीमान, निदेशक डा. एआर चौधरी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कॉलेज के प्रिंसिपल डा. कामदेव झा ने मेहमानों का स्वागत किया।