‘प्राचीन भारत में व्यापार और अर्थव्यवस्था का अध्ययन और प्रलेखन’ विषय पर कार्य हेतु संस्थान में बना भारतीय ज्ञान प्रणाली प्रभाग (आई.के.एस.) का केंद्र
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा भारतीय ज्ञान परम्परा (आई.के.एस.) के अंतर्गत प्रस्तुत शोध प्रकल्प ‘प्राचीन भारत में व्यापार और अर्थव्यवस्था का अध्ययन और प्रलेखन’ को भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा स्वीकृत कर लिया गया है। यह जानकारी देते हुए विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने बताया कि शिक्षा मंत्रालय के आई.के.एस. प्रभाग की स्थापना ए.आई.सी.टी.ई. में की गई थी, जो भारतीय ज्ञान परम्परा के समस्त पक्षों पर अंतर्विषयक एवं संघीय अंतर्विषयक अनुसंधान का अभिवर्द्धन करने तथा आगामी शोध एवं सामाजिक अनुप्रयोगों के लिए आई.के.एस. से सम्बद्ध ज्ञान का संरक्षण एवं प्रसार करने हेतु प्रयासरत है।
उन्होंने बताया कि भारतीय ज्ञान प्रणाली प्रभाग (आई.के.एस.) ‘वसुधैव कुटम्बकम’ के उदार भाव से ओतप्रोत एकमात्र भारतीय पद्धति है जो समस्त विश्व के लिए कल्याणकारी है। इसका प्रमुख उद्देश्य विद्यार्थी पीढि़यों के लिए ऐसी प्रशिक्षण प्रक्रिया का निर्माण करना है कि वे समस्त विश्व का परिचय भारतीय पद्धतियों से करा सकें। यदि हम इस शताब्दी में स्वयं को विश्वगुरु के रूप में प्रस्तुत चाहते हैं तो अत्यन्त आवश्यक है कि हम अपनी प्रारंभिक धरोहर को जानें एवं विभिन्न कार्यों के निष्पादन की भारतीय पद्धति से देश ही नहीं, समस्त विश्व को अवगत कराएं।
डॉ. रामेन्द्र सिंह ने बताया कि विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान इससे पूर्व भी समय-समय पर संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के कार्यशाला प्रकल्प को देशभर में सफलतापूर्वक कर चुका है। इसके अतिरिक्त संस्कृति मंत्रालय द्वारा प्रायोजित पं. दीनदयाल उपाध्याय निबंध लेखन प्रतियोगिता प्रकल्प को भी संस्थान द्वारा सफलतापूर्वक सम्पन्न किया गया है, जिसके अंतर्गत देशभर के विद्यालयों में पं. दीनदयाल उपाध्याय जन्मशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में निबंध प्रतियोगिताएं आयोजित करवाई गईं और पुरस्कार राशि भी वितरित की गई। विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा संस्कृति बोध परियोजना तथा साहित्य के माध्यम से संपूर्ण देश में विद्यार्थी एवं शिक्षकों तथा आम समाज के मन में भारत का गौरव जगाने का कार्य निरन्तर किया जा रहा है। उन्होंने इस परियोजना के जुड़े सभी विद्वानों एवं सदस्यों का आभार व्यक्त किया।