न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत की कर्मस्थली और देश के हजारों युवाओं के सपनों को साकार करने वाला गुरुकुल कुरुक्षेत्र अब ‘देश की धरोहर’ में शामिल हुआ है। यह गुरुकुल परिवार के लिए बड़ी उपलब्धि है, जिसे लेकर आचार्य देवव्रत ने न केवल खुशी व्यक्त की बल्कि गुरुकुल प्रबंधक समिति के प्रधान राजकुमार गर्ग, मुख्य अधिष्ठाता राधाकृष्ण आर्य, निदेशक कर्नल अरूण दत्ता, प्राचार्य सूबे प्रताप, व्यवस्थापक रामनिवास आर्य को दूरभाष पर शुभकामनाएं दीं। निदेशक कर्नल अरुण दत्ता ने बताया कि देशभर के स्कूलों में मौजूद सुविधाओं, छात्रों के आचरण, परीक्षा-परिणामों और छात्रों से ली जाने वाली फीस को ध्यान में रखते हुए विश्व विख्यात संस्था ‘एजुकेशन वर्ल्ड’ रैकिंग जारी करती है।
एजुकेशन वर्ल्ड द्वारा पिछले पांच वर्षों से गुरुकुल कुरुक्षेत्र को हरियाणा का नंबर वन आवासीय विद्यालय घोषित किया जा रहा है मगर इस बार उससे भी एक कदम आगे बढ़ते हुए गुरुकुल कुरुक्षेत्र को ‘देश की धरोहर’ श्रेणी में भी शामिल किया गया है जो गुरुकुल परिवार के लिए गर्व की बात है। ‘देश की धरोहर’ श्रेणी की बात करें तो एजुकेशन वर्ल्ड ने देशभर के उन सभी विद्यालयों का सर्वेक्षण किया जो 90 वर्ष या उससे अधिक समय से शिक्षा के माध्यम से समाज को एक नई दिशा देने का पुनीत कार्य कर रहे हैं। इस श्रेणी में गुरुकुल कुरुक्षेत्र को सबसे अधिक अंक मिले क्योंकि स्वामी श्रद्धानन्द जी द्वारा स्थापित यह संस्थान पिछले 110 वर्षों से छात्रों का सर्वांगीण विकास कर रहा है। गुरुकुल में आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ प्राकृतिक चिकित्सा, प्राकृतिक खेती, आर्ष महाविद्यालय के माध्यम से समाज में जागृति लाने का एक श्रेष्ठ कार्य भी किया जा रहा है। शिक्षा की दृष्टिगत गुरुकुल कुरुक्षेत्र हरियाणा में प्रथम और देश में नौवें स्थान पर है। वीरवार को गुरुग्राम के होटल लीला में आयोजित एक भव्य समारोह में निदेशक कर्नल अरुण दत्ता को एजुकेशन वर्ल्ड द्वारा प्रमाण-पत्र व शील्ड देकर सम्मानित किया गया।
गौरतलब है कि गुरुकुल कुरुक्षेत्र की स्थापना थानेसर के लाला ज्योतिप्रसाद के सहयोग और आर्य समाज के निर्भीक संन्यासी स्वामी श्रद्धानन्द जी द्वारा 13 अप्रैल 1912 में हुई थी। लगभग 110 वर्ष पुराना यह गुरुकुल हमेशा से ऐसा नहीं था, बीच में एक ऐसा दौर भी आया जब गुरुकुल में न तो कोई बच्चा पढ़ाई के लिए आता था और न ही गुरुकुल की आय का कोई साधन बचा था। गुरुकुल की जमीनों पर लोगों ने अवैध कब्जे कर लिये थे और यह गुरुकुल अपने अस्तित्व को बचाने के लिए सघर्ष कर रहा था। तभी वर्ष 1981 में आचार्य देवव्रत ने गुरुकुल में प्राचार्य का कार्यभार संभाला। यहां की बदहाली को दूर करने के लिए आचार्य देवव्रत ने दृढ़ इच्छाशक्ति से काम लिया। गांव-गांव प्रचार करते और लोगों को अपने बच्चों को गुरुकुल में भेजने के लिए मनाते। साथ ही लोगों से गुरुकुल में सहयोग का भी निवेदन करते। उनके इस प्रयास का लोगों पर गहरा असर हुआ और गुरुकुल में छात्रों की संख्या बढ़ने लगी। समय के साथ आचार्य ने गुरुकुल की एक-एक ईंट को परिवर्तित करते हुए यहां आधुनिक भवनों की श्रृंखला खड़ी कर दी। छात्रों के लिए आवश्यक सभी सुविधाएं गुरुकुल में उपलब्ध करवाई।
वर्तमान में एनडीए, आईआईटी, मेडिकल आदि की पूरी तैयारी गुरुकुल में करवाई जाती है। छात्रों शुद्ध दूध उपलब्ध करवाने के लिए अत्याधुनिक गोशाला, हॉर्स राइडिंग, शूटिंग रेंज के अलावा वातानुकूलित लाइब्रेरी, कम्प्यूटर लैब, लैंग्वेज लेब, फिजिक्स, केमेस्ट्री, बायो लैब, विशाल भोजनालय गुरुकुल कैम्पस में है। कुल मिलाकर, आचार्य देवव्रत जी ने अपनी 35 वर्षों की साधना से गुरुकुल कुरुक्षेत्र को उस मुकाम पर पहुंचाया जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था, उसकी दृढ़ इच्छाशक्ति और दूरदर्शी सोच का प्रतिफल है कि आज गुरुकुल में प्रवेश के लिए 10 से 12 हजार छात्र प्रतिवर्ष आते हैं। गुरुकुल का यह वर्तमान स्वरूप आचार्य श्री देवव्रत जी के कठोर परिश्रम से ही संभव हो पाया है।