जयराम विद्यापीठ में किया गया मंत्रोच्चारण के साथ तुलादान
धर्मनगरी कुरुक्षेत्र की धरती पर है तुला दान का विशेष महत्व
भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं में भी बताया गया है तुला दान का विशेष महत्व
जयराम विद्यापीठ में हुआ यज्ञ एवं अखंड भंडारे का आयोजन
न्यूज़ डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र, 25 अक्तूबर
देश के विभिन्न राज्यों में संचालित जयराम संस्थाओं के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी की प्रेरणा से दीपावली के अगले दिन वर्ष के अंतिम सूर्यग्रहण के अवसर पर जयराम संस्कृत महाविद्यालय के आचार्य प. राजेश प्रसाद लेखवार ने विद्वान ब्राह्मणों एवं ब्रह्मचारियों के साथ मुख्य यज्ञशाला में नियमित हवन यज्ञ एवं मंत्रोच्चारण के साथ सर्वकल्याण व देशहित में सुख समृद्धि के लिए पाठ किया। इस मौके पर अखंड भंडारे में श्रद्धालुओं ने भोजन व प्रसाद ग्रहण किया। जयराम संस्थाओं के मीडिया प्रभारी राजेश सिंगला ने बताया कि परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी की प्रेरणा से के.के. कौशिक, रमेश वर्मा, अंजू वर्मा, दिवाकर कौशिक, अभिनव, विकास शर्मा, रेनू शर्मा, भूपेंद्र शर्मा, सुनीता शर्मा, भारत भूषण सिंगला, महिपाल, सुनील वर्मा, सुभाष वर्मा, सुनील लाम्बा, कपिल शर्मा, अर्चना, अखिल शर्मा, राजेश लेखवार, चांदी राम, बाबू राम, चेतन गुप्ता, सुभाष गर्ग, पवन गोयल, केशव, तरुण बंसल व विशाल बंसल इत्यादि यजमानों ने अपने परिवारों के साथ तुला दान किया। तुला दान में सप्तानाजा दान किया गया। आचार्य लेखवार ने बताया कि सूर्यग्रहण के अवसर पर भगवान श्री कृष्ण के श्री मुख से उत्पन्न हुई गीता की जन्मस्थली कुरुक्षेत्र में तो तुला दान का विशेष महत्व है। उन्होंने बताया कि भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं में तुला दान का कई जन्मों के पुण्य का महत्व बताया गया है। आचार्य लेखवार के अनुसार सूर्य ग्रहण के अवसर पर तुला दान को महादान माना जाता है। इस तुला दान को हवन के बाद ब्राह्मण पौराणिक मंत्रों का उच्चारण करते हैं, वे लोकपालों का आह्वान करते हैं। उन्होंने बताया कि दान करने वाला अपनी क्षमता अनुसार धातु व अनाज इत्यादि का दान देता है। जितना दान सामान्य पुरोहितों को दिया जाता है, उसका दोगुणा यज्ञ कराने वाले को दिया जाता है। आचार्य लेखवार के अनुसार तुला (तराजू) के रूप में यजमान भगवान विष्णु का स्मरण करता है, फिर वह तुला की परिक्रमा करके एक पलड़े पर चढ़ जाता है, दूसरे पलड़े पर ब्राह्मण लोग दान सामग्री रख देते हैं। तराजू के दोनों पलड़े जब बराबर हो जाते हैं, तब पृथ्वी का आह्वान किया जाता है। दान देने वाला तराजू के पलड़े से उतर जाता है, फिर दान सामग्री का आधा भाग गुरु को और दूसरा भाग ब्राह्मण को उनके हाथ में जल गिराते हुए देता है। उन्होंने बताया कि प्राचीनकाल में राजाओं के साथ मंत्री भी यह दान करते थे। इसके साथ गांव दान भी किया जाता था। इस दान से दान देने वाले को विष्णु लोक में स्थान मिलने की बात कही गई है। उन्होंने बताया कि प्रजापति ब्रह्मा ने सभी तीर्थों को तोला था। शेष भगवान के कहने से तीर्थों को तोलने का इन्तजाम किया गया था, इसका उद्देश्य तीर्थों की पुण्य गरिमा का पता लगाना था। ब्रह्मा ने तराजू के एक पलड़े पर सभी तीर्थ, सातों सागर और सारी धरती रख दी थी। जयराम विद्यापीठ में अखण्ड भण्डारे में के के कौशिक, श्रवण गुप्ता, राजेन्द्र सिंघल, के के गर्ग, टेक सिंह लौहार माजरा, खरैती लाल सिंगला, कुलवंत सैनी, राजेश सिंगला, रोहित कौशिक, सतबीर कौशिक इत्यादि ने नियमित सेवा दी।