अध्यात्म की दृष्टि से अपनी सच्चाई को जान गए तो नहीं होगा डिप्रेशन
जीते जी अपनी ब्रह्म स्वरूपता में जागृति ही मोक्ष है
न्यूज़ डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान में श्रीमद्भगवद्गीता प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम के ग्यारहवें दिन जिज्ञासा समाधान का सत्र रहा। विधिवत रूप से कक्षा का शुभारंभ माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। इस अवसर पर संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह, कृष्ण कुमार भंडारी, कु.वि. परीक्षा नियंत्रक डॉ हुकम सिंह, जयभगवान सिंगला, श्रीमती विष्णु कान्ता भंडारी सहित अनेक जिज्ञासु उपस्थित रहे।
संस्थान के निदेशक डॉ रामेंद्र सिंह ने डॉ. शाश्वतानंद गिरि के प्राकट्य दिवस पर कहा कि संस्कृति भवन में सुअवसर का यह पावन संयोग बना है कि ऐसी पूज्य महाविभूति जो शाश्वत हैं और अपनी वाणी से भी हम सबको शाश्वत ज्ञानार्जन प्रदान कर रहे हैं, इस हेतु हम उनके अत्यंत अनुग्रहीत हैं। उन्होंने विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान और तरंग माध्यम से उपस्थित सभी जिज्ञासुओं की ओर से डॉ. शाश्वतानंद गिरि जी का माल्यार्पण कर सम्मान स्वरूप श्रीफल, स्मृति चिन्ह और साहित्य भेंट किया और जीवेम् शरदः शतम् की कामना की।
डॉ. शाश्वतानंद गिरी ने श्रीमद्भगवद्गीता के श्रोताओं की अनेक जिज्ञासाओं का समाधान किया। इसमें चंद्रायन का क्या होना, डिप्रेशन के कारण और उपाय, हमारे समाज का मूल्यों की दृष्टि से अधः पतन होना, क्या हम सच्चाई के रास्ते से भटक रहे हैं? इत्यादि जिज्ञासाओं का उन्होंने सटीक उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक वास्तविकता माने आपकी समग्र स्थिति। उसमें सूक्ष्म शरीर, स्थूल शरीर, कारण शरीर और आत्म चैतन्य भी है। जिसे समष्टि दृष्टि से ब्रह्म कहते हैं उसी को व्यष्टि दृष्टि से अध्यात्म कहते हैं। यदि अध्यात्म की दृष्टि से अपनी सच्चाई को जान गए तो फिर अर्जुन से भी 100 गुना विकट स्थिति हो जाए तो भी डिप्रेशन नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि दुनिया की कोई ऐसी स्थिति-परिस्थिति नहीं है जो कितनी भी नकारात्मक दिखाई पड़े लेकिन उसमें कहीं ना कहीं सकारात्मकता अवश्य आती है क्योंकि सत् और असत् दोनों का अधिष्ठान तो परमात्मा ही है। डूबते को तिनके का सहारा तो मिलने ही वाला है लेकिन आपके पास बुद्धि चाहिए जो सकारात्मक निर्णय ले सके। इस तरह से वह डिप्रेशन से निकल जाएगा।
उन्होंने कहा कि दर्शनशास्त्र से सिद्ध, परमार्थ तत्व से अनुमोदित हमारे यहां संस्कृति है। लेकिन पूरे समाज में सभी लोग ब्रह्मज्ञानी नहीं हो सकते और मनुष्य हमेशा दोहरा होता ही है। दो दिशाएं एक साथ उसके जीवन की नियति है क्योंकि पशु और मनुष्य में अंतर है।
उन्होंने कहा कि कई हजार सालों में हमने संस्कृति और सभ्यता विकसित की है। स्त्री में मर्यादित स्त्रीत्व और पुरुष में सुसंस्कृत आध्यात्मिक मूल्यपरक पुरुषत्व विकसित करने में हमें हजारों वर्ष लग गए हैं। ‘‘मैं व्यक्ति नहीं हूँ राष्ट्र हूँ’’ यह सोच लेकर हमें 24 घंटे सतर्क रहना पड़ेगा। इस प्रकार की प्रक्रियता जब हमारे अंदर होगी तब अपने आप इस देश में भी बदल हो सकती है। मोक्ष की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि जीते जी अपनी ब्रह्म स्वरूपता में जागृति ही मोक्ष है। प्रज्ञावान होना ही मोक्ष है।
मन को वश में करने की जिज्ञासा के समाधान पर उन्होंने कहा कि ध्यान में बैठेंगे तो मन जाएगा परन्तु निश्चित रूप से मन लौटकर आएगा। भले ही मन को अभी स्पष्ट नहीं हुआ परन्तु एक स्वाभाविक सजातीयता रहती है कि यह मेरे लिए सही रास्ता मिल रहा था। जैसे मन को चंचल करने का अभ्यास किया है, उसी प्रकार मन को ध्यान के माध्यम से एकाग्र करने का प्रयास करें।
उन्होंने कहा कि हमारे तीन रूप हैं, व्यावहारिक रूप, आध्यात्मिक रूप और भगवान व हमारे बीच का जीव रूप। तीनों रूपों में राम का ही अनुकरण करें। भौतिक रूप में राम के आचरण का अनुकरण करें। आधिदैविक दृष्टि से राम की पूजा करें और आध्यात्मिक दृष्टि से राम ही आपका आत्मा है, उसका अनुसंधान करें। अपने को जान लेने से अच्छा काम कोई दूसरा नहीं है