यदि आप केंद्रित रहते हैं तो अपेक्षाओं का दबाव खत्म हो सकता है
दिमाग के तरोताजा होने पर सबसे कम रोचक या सबसे कठिन विषयों को लेना चाहिए
परीक्षा में नकल करना आपको जीवन में कभी सफल नहीं बनाएगा
ज्यादातर लोग औसत और साधारण होते हैं लेकिन सामान्य लोग जब असामान्य काम करते हैं, तो ऊंचाई पर चले जाते हैं और एवरेज के मानदंड को तोड़ देते हैं
न्यूज़ डेक्स इंडिया
नई दिल्ली ।
भगवान ने हमें स्वतंत्र इच्छा एवं एक स्वतंत्र व्यक्तित्व दिया है और हमें हमेशा अपने गैजेट्स के गुलाम बनने के बारे में सचेत रहना चाहिए
परीक्षा जीवन का अंत नहीं है और परिणामों के बारे में अधिक सोचना दैनिक जीवन का विषय नहीं होना चाहिए
हमें परीक्षा के तनाव को कम करना चाहिए और इसे उत्सव में बदलना चाहिए
परीक्षा पे चर्चा (पीपीसी) के छठे संस्करण में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के साथ बातचीत की। उन्होंने बातचीत से पहले कार्यक्रम स्थल पर प्रदर्शित छात्रों के प्रदर्शन को भी देखा। परीक्षा पे चर्चा की परिकल्पना प्रधानमंत्री द्वारा की गई है जिसमें छात्र, अभिभावक और शिक्षक उनके साथ जीवन और परीक्षा से संबंधित विभिन्न विषयों पर बातचीत करते हैं। परीक्षा पे चर्चा के आयोजन में इस वर्ष 155 देशों से लगभग 38.80 लाख पंजीकरण हुए हैं।
सभा को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि यह पहली बार है कि परीक्षा पे चर्चा गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान हो रही है। श्री मोदी ने कहा कि अन्य राज्यों से नई दिल्ली आने वालों को भी गणतंत्र दिवस की झलक मिली। श्री मोदी ने अपने लिए परीक्षा पे चर्चा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, उन लाखों सवालों की ओर इशारा किया जो कार्यक्रम के हिस्से के रूप में सामने आए। उन्होंने कहा, “परीक्षा पे चर्चा मेरी भी परीक्षा है। कोटि-कोटि विद्यार्थी मेरी परीक्षा लेते हैं और इससे मुझे खुशी मिलती है। यह देखना मेरा सौभाग्य है कि मेरे देश का युवा मन क्या सोचता है।” प्रधानमंत्री ने कहा, “ये सवाल मेरे लिए खजाने की तरह हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि वे इन सभी प्रश्नों का संकलन करना चाहते हैं जिनका आने वाले वर्षों में सामाजिक वैज्ञानिकों द्वारा विश्लेषण किया जा सके और हमें ऐसे डायनैमिक टाइम में युवा छात्रों के दिमाग के बारे में एक विस्तृत थीसिस मिल सके।
निराशा से निपटना
तमिलनाडु के मदुरै से केंद्रीय विद्यालय की छात्रा अश्विनी, दिल्ली के पीतमपुरा स्थित केवी से नवतेज और पटना से नवीन बालिका स्कूल से प्रियंका कुमारी के खराब अंक के मामले में पारिवारिक निराशा के बारे में एक प्रश्न का समाधान बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि परिवार के लोगों को बहुत अपेक्षाएं होना बहुत स्वाभाविक है और उसमें कुछ गलत भी नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि हालांकि अगर परिवार के लोग अपेक्षाएं सोशल स्टेट्स के कारण कर रहे हैं तो वह चिंता का विषय है। श्री मोदी ने हर सफलता के साथ प्रदर्शन के बढ़ते मानकों और बढ़ती अपेक्षाओं के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा कि आसपास की उम्मीदों के जाल में फंसना अच्छा नहीं है और व्यक्ति को अपने भीतर देखना चाहिए तथा उम्मीद को अपनी क्षमताओं, जरूरतों, इरादों और प्राथमिकताओं से जोड़ना चाहिए। क्रिकेट के उस खेल का उदाहरण देते हुए जहां भीड़ चौके-छक्के लगाने के लिए कहती है, प्रधानमंत्री ने कहा कि एक बल्लेबाज जो बल्लेबाजी करने जाता है, दर्शकों में इतने लोगों के एक छक्के या चौके के लिए अनुरोध करने के बाद भी वह बेफिक्र रहता है। प्रधानमंत्री ने क्रिकेट के मैदान पर बल्लेबाज के फोकस और छात्रों के दिमाग के बीच की कड़ी के बारे में चर्चा करते हुए कहा, “जिस तरह क्रिकेटर का ध्यान लोगों के चिल्लाने पर नहीं, बल्कि अपने खेल पर फोकस होता है। इसी तरह आप भी दबावों के दबाव में न रहें।” प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर आप केन्द्रित रहते हैं तो अपेक्षाओं का दबाव खत्म हो सकता है। उन्होंने अभिभावकों से आग्रह किया कि वे अपने बच्चों पर उम्मीदों का बोझ न डालें और छात्रों से कहा कि वे हमेशा अपनी क्षमता के अनुसार खुद का मूल्यांकन करें। हालांकि, उन्होंने छात्रों से कहा कि वे दबावों का विश्लेषण करें और देखें कि क्या वे अपनी क्षमता के साथ न्याय कर रहे हैं। ऐसे में इन उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन को बढ़ावा मिल सकता है।
परीक्षा की तैयारी और समय-प्रबंधन
परीक्षा की तैयारी कहां से शुरू करें और तनावपूर्ण स्थिति के कारण भूलने की स्थिति के बारे में डलहौजी के केवी की कक्षा 11वीं की छात्रा आरुषि ठाकुर के प्रश्नों का समाधान करते हुए और कृष्णा पब्लिक स्कूल, रायपुर से अदिति दीवान से परीक्षा के दौरान समय प्रबंधन के बारे में प्रश्नों का समाधान करते हुए, प्रधानमंत्री ने परीक्षा के साथ या उसके बिना सामान्य जीवन में समय प्रबंधन के महत्व पर बल देते हुए कहा, “सिर्फ परीक्षा के लिए ही नहीं, वैसे भी जीवन में टाइम मैनेजमेंट के प्रति हमें जागरूक रहना चाहिए।” उन्होंने कहा कि काम कभी नहीं थकता, बल्कि काम नहीं करना इंसान को थका देता है। उन्होंने छात्रों से कहा कि वे अपने द्वारा की जाने वाली विभिन्न चीजों के लिए समय आवंटन को नोट कर लें। उन्होंने कहा कि यह एक सामान्य प्रवृत्ति है कि व्यक्ति अपनी पसंद की चीजों को अधिक समय देता है। उन्होंने कहा कि किसी भी विषय के लिए समय आवंटित करते समय दिमाग के तरोताजा होने पर सबसे कम रोचक या सबसे कठिन विषय लेना चाहिए। प्रधानमंत्री ने पूछा कि क्या छात्रों ने घर पर काम करने वाली माताओं के समय प्रबंधन कौशल का अवलोकन किया है जो हर काम को समय पर करती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वे अपना सारा काम करके मुश्किल से थकती हैं लेकिन बचे हुए समय में कुछ रचनात्मक कार्यों में संलग्न होने का समय भी निकाल लेती हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि अपनी माताओं को देखकर छात्र समय के सूक्ष्म प्रबंधन के महत्व को समझ सकते हैं और इस प्रकार प्रत्येक विषय के लिए विशेष घंटे समर्पित कर सकते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, “आपको अपना समय अधिक से अधिक लाभ के लिए बांटना चाहिए।”
परीक्षा में अनुचित साधन और शार्टकट
बस्तर के स्वामी आत्मानंद सरकारी स्कूल के 9वीं कक्षा के छात्र रुपेश कश्यप ने परीक्षा में अनुचित साधनों से बचने के तरीकों के बारे में पूछा। कोणार्क पुरी ओडिशा के तन्मय बिस्वाल ने भी परीक्षा में नकल को खत्म करने के बारे में पूछा। प्रधानमंत्री ने प्रसन्नता व्यक्त की कि छात्रों ने परीक्षा के दौरान कदाचार से निपटने के तरीके खोजने का विषय उठाया और नैतिकता में आए नकारात्मक बदलाव की ओर इशारा किया जहां एक छात्र परीक्षा में नकल करते समय पर्यवेक्षक को मूर्ख बनाने में गर्व महसूस करता है। प्रधानमंत्री ने कहा, “यह एक बहुत ही खतरनाक प्रवृत्ति है।” प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने पूरे समाज से इसके बारे में विचार करने के लिए कहा। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ स्कूल या शिक्षक जो ट्यूशन कक्षाएं चलाते हैं, अनुचित साधनों का प्रयास करते हैं, ताकि उनके छात्र परीक्षा में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकें। उन्होंने छात्रों से यह भी कहा कि वे तरीके खोजने और नकल सामग्री तैयार करने में समय बर्बाद करने से बचें और उस समय को सीखने में व्यतीत करें। प्रधानमंत्री ने कहा, “दूसरी बात, इस बदलते समय में, जब हमारे आसपास का जीवन बदल रहा है, आपको कदम-कदम पर परीक्षा का सामना करना पड़ता है।” उन्होंने कहा कि ऐसे लोग केवल कुछ परीक्षाओं को ही पास कर पाते हैं, लेकिन अंततः जीवन में असफल हो जाते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, “परीक्षा में नकल करने से जीवन सफल नहीं हो सकता। आप एक या दो परीक्षा पास कर सकते हैं, लेकिन यह जीवन में संदिग्ध बना रहेगा।” प्रधानमंत्री ने मेहनती छात्रों से कहा कि वे धोखेबाजों की अस्थायी सफलता से निराश न हों और कहा कि कड़ी मेहनत से उन्हें अपने जीवन में हमेशा लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा, “आपके भीतर की जो ताकत है, वही ताकत आपको आगे ले जाएगी। परीक्षा तो आती है, जाती है, लेकिन हमें जिंदगी जी भर के जीनी है। इसलिए हमें शॉर्टकट की ओर नहीं जाना चाहिए।” प्रधानमंत्री ने एक रेलवे स्टेशन पर फुट ओवरब्रिज को पार करने के बजाय रेल पटरियों पर रास्ता बनाकर प्लेटफार्मों को पार करने वाले लोगों का उदाहरण देते हुए कहा कि शॉर्टकट आपको कहीं नहीं ले जाएगा और कहा, “शॉर्टकट आपको हानि ही पहुंचायेगा।”
कड़ी मेहनत बनाम स्मार्ट वर्किंग
केरल के कोझिकोड के एक छात्र ने कड़ी मेहनत बनाम स्मार्ट वर्क की आवश्यकता और महत्व के बारे में पूछा। प्रधानमंत्री ने स्मार्ट वर्क का उदाहरण देते हुए प्यासे कौए की कहानी पर प्रकाश डाला, जिसने अपनी प्यास बुझाने के लिए घड़े में पत्थर फेंके। उन्होंने बारीकी से विश्लेषण करने और काम को समझने की आवश्यकता पर जोर दिया और कड़ी मेहनत, स्मार्ट तरीके से काम करने की कहानी से नैतिकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “हर काम की पहले अच्छी तरह से जांच की जानी चाहिए”। उन्होंने एक स्मार्ट वर्किंग मैकेनिक का उदाहरण दिया जिसने दो सौ रुपये में दो मिनट के भीतर एक जीप को ठीक कर दिया और कहा कि यह काम का अनुभव है जो काम करने में लगने वाले समय के बजाय मायने रखता है। प्रधानमंत्री ने कहा, “कड़ी मेहनत से सब कुछ हासिल नहीं किया जा सकता।” इसी प्रकार खेलों में भी विशिष्ट प्रशिक्षण महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने कहा कि हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि क्या किया जाना चाहिए। व्यक्ति को बुद्धिमानी के साथ उन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कड़ी मेहनत करनी चाहिए।
क्षमता की पहचान
जवाहर नवोदय विद्यालय, गुरुग्राम की 10वीं कक्षा की छात्रा जोविता पात्रा ने एक औसत छात्र के रूप में परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने के बारे में पूछा। प्रधानमंत्री ने स्वयं का वास्तविक आकलन करने की आवश्यकता की सराहना की। प्रधानमंत्री ने कहा, एक बार जब यह एहसास हो जाए, तो छात्र द्वारा उचित लक्ष्य और कौशल निर्धारित किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि अपनी क्षमता को जानने से व्यक्ति बहुत सक्षम हो जाता है। उन्होंने अभिभावकों से अपने बच्चों का सही आकलन करने को कहा। उन्होंने कहा कि ज्यादातर लोग औसत और सामान्य होते हैं लेकिन सामान्य लोग जब असामान्य काम करते हैं, तो ऊंचाई पर चले जाते हैं और एवरेज के मानदंड को तोड़ देते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत को एक नई उम्मीद के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने उस समय को याद किया जब भारतीय अर्थशास्त्रियों और यहां तक कि प्रधानमंत्री को भी कुशल अर्थशास्त्रियों के रूप में नहीं देखा जाता था लेकिन आज भारत दुनिया के तुलनात्मक अर्थशास्त्र में चमकता हुआ दिख रहा है। उन्होंने कहा, “हमें कभी भी इस दबाव में नहीं होना चाहिए कि हम औसत हैं और अगर हम औसत हैं तो भी हममें कुछ असाधारण होगा, आपको बस इतना करना है कि इसे पहचानना और विकसित करना है।”
आलोचना से निपटना
सेंट जोसेफ सेकेंडरी स्कूल, चंडीगढ़ के छात्र मन्नत बाजवा, अहमदाबाद के 12वीं कक्षा के छात्र कुमकुम प्रतापभाई सोलंकी और व्हाइटफील्ड ग्लोबल स्कूल, बैंगलोर के 12वीं कक्षा के छात्र आकाश दरिरा ने प्रधानमंत्री से नकारात्मक विचार रखने वाले लोगों से निपटने, उसके प्रति राय कायम करने और यह उन्हें कैसे प्रभावित करता है, इसके बारे में पूछा और दक्षिण सिक्किम के डीएवी पब्लिक स्कूल के 11वीं कक्षा के छात्र अष्टमी सेन ने भी मीडिया के आलोचनात्मक दृष्टिकोण से निपटने के बारे में इसी तरह का सवाल उठाया। प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि वे इस सिद्धांत में विश्वास करते हैं कि समृद्ध लोकतंत्र के लिए आलोचना एक शुद्धि यज्ञ है। आलोचना एक समृद्ध लोकतंत्र की पूर्व-शर्त है। प्रतिक्रिया की आवश्यकता पर जोर देते हुए, प्रधानमंत्री ने एक प्रोग्रामर का उदाहरण दिया, जो सुधार के लिए ओपन सोर्स पर अपना कोड डालता है, और कंपनियां जो अपने उत्पादों को बाजार में बिक्री के लिए रखती हैं, ग्राहकों से उत्पादों की खामियों को खोजने के लिए कहती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कौन आपके काम की आलोचना कर रहा है। उन्होंने कहा कि आजकल माता-पिता रचनात्मक आलोचना के बजाय अपने बच्चों की क्षमता में बाधा डालने वाले बन गए हैं और उनसे इस आदत को छोड़ने का आग्रह किया क्योंकि बच्चों का जीवन प्रतिबंधात्मक तरीके से नहीं बदलेगा। प्रधानमंत्री ने संसद सत्र के उन दृश्यों पर भी प्रकाश डाला, जब सत्र को किसी खास विषय पर संबोधित कर रहा कोई सदस्य विपक्ष के सदस्यों द्वारा टोके जाने के बाद भी विचलित नहीं होता। दूसरे, प्रधानमंत्री ने एक आलोचक होने के नाते श्रम और अनुसंधान के महत्व पर भी प्रकाश डाला, “आलोचना करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है, एनालिसिस करना पड़ता है। ज्यादातर लोग आरोप लगाते हैं, आलोचना नहीं करते।” प्रधानमंत्री ने कहा, “आरोपों और आलोचनाओं के बीच एक बड़ा अंतर है।” उन्होंने सभी से आग्रह किया कि आलोचना को आरोप समझने की गलती न करें।
क्षमता की पहचान
जवाहर नवोदय विद्यालय, गुरुग्राम की 10वीं कक्षा की छात्रा जोविता पात्रा ने एक औसत छात्र के रूप में परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने के बारे में पूछा। प्रधानमंत्री ने स्वयं का वास्तविक आकलन करने की आवश्यकता की सराहना की। प्रधानमंत्री ने कहा, एक बार जब यह एहसास हो जाए, तो छात्र द्वारा उचित लक्ष्य और कौशल निर्धारित किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि अपनी क्षमता को जानने से व्यक्ति बहुत सक्षम हो जाता है। उन्होंने अभिभावकों से अपने बच्चों का सही आकलन करने को कहा। उन्होंने कहा कि ज्यादातर लोग औसत और सामान्य होते हैं लेकिन सामान्य लोग जब असामान्य काम करते हैं, तो ऊंचाई पर चले जाते हैं और एवरेज के मानदंड को तोड़ देते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत को एक नई उम्मीद के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने उस समय को याद किया जब भारतीय अर्थशास्त्रियों और यहां तक कि प्रधानमंत्री को भी कुशल अर्थशास्त्रियों के रूप में नहीं देखा जाता था लेकिन आज भारत दुनिया के तुलनात्मक अर्थशास्त्र में चमकता हुआ दिख रहा है। उन्होंने कहा, “हमें कभी भी इस दबाव में नहीं होना चाहिए कि हम औसत हैं और अगर हम औसत हैं तो भी हममें कुछ असाधारण होगा, आपको बस इतना करना है कि इसे पहचानना और विकसित करना है।”
आलोचना से निपटना
सेंट जोसेफ सेकेंडरी स्कूल, चंडीगढ़ के छात्र मन्नत बाजवा, अहमदाबाद के 12वीं कक्षा के छात्र कुमकुम प्रतापभाई सोलंकी और व्हाइटफील्ड ग्लोबल स्कूल, बैंगलोर के 12वीं कक्षा के छात्र आकाश दरिरा ने प्रधानमंत्री से नकारात्मक विचार रखने वाले लोगों से निपटने, उसके प्रति राय कायम करने और यह उन्हें कैसे प्रभावित करता है, इसके बारे में पूछा और दक्षिण सिक्किम के डीएवी पब्लिक स्कूल के 11वीं कक्षा के छात्र अष्टमी सेन ने भी मीडिया के आलोचनात्मक दृष्टिकोण से निपटने के बारे में इसी तरह का सवाल उठाया। प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि वे इस सिद्धांत में विश्वास करते हैं कि समृद्ध लोकतंत्र के लिए आलोचना एक शुद्धि यज्ञ है। आलोचना एक समृद्ध लोकतंत्र की पूर्व-शर्त है। प्रतिक्रिया की आवश्यकता पर जोर देते हुए, प्रधानमंत्री ने एक प्रोग्रामर का उदाहरण दिया, जो सुधार के लिए ओपन सोर्स पर अपना कोड डालता है, और कंपनियां जो अपने उत्पादों को बाजार में बिक्री के लिए रखती हैं, ग्राहकों से उत्पादों की खामियों को खोजने के लिए कहती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कौन आपके काम की आलोचना कर रहा है। उन्होंने कहा कि आजकल माता-पिता रचनात्मक आलोचना के बजाय अपने बच्चों की क्षमता में बाधा डालने वाले बन गए हैं और उनसे इस आदत को छोड़ने का आग्रह किया क्योंकि बच्चों का जीवन प्रतिबंधात्मक तरीके से नहीं बदलेगा। प्रधानमंत्री ने संसद सत्र के उन दृश्यों पर भी प्रकाश डाला, जब सत्र को किसी खास विषय पर संबोधित कर रहा कोई सदस्य विपक्ष के सदस्यों द्वारा टोके जाने के बाद भी विचलित नहीं होता। दूसरे, प्रधानमंत्री ने एक आलोचक होने के नाते श्रम और अनुसंधान के महत्व पर भी प्रकाश डाला, “आलोचना करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है, एनालिसिस करना पड़ता है। ज्यादातर लोग आरोप लगाते हैं, आलोचना नहीं करते।” प्रधानमंत्री ने कहा, “आरोपों और आलोचनाओं के बीच एक बड़ा अंतर है।” उन्होंने सभी से आग्रह किया कि आलोचना को आरोप समझने की गलती न करें।
गेमिंग और ऑनलाइन लत
भोपाल से दीपेश अहिरवार, दसवीं कक्षा के छात्र आदिताभ ने इंडिया टीवी के माध्यम से अपना प्रश्न पूछा, कामाक्षी ने रिपब्लिक टीवी के माध्यम से अपना प्रश्न पूछा, और जी टीवी के माध्यम से मनन मित्तल ने ऑनलाइन गेम व सोशल मीडिया की लत और परिणाम में असर डालने के बारे में प्रश्न पूछे। प्रधानमंत्री ने कहा कि पहला निर्णय यह तय करना है कि आप स्मार्ट हैं या आपका गैजेट स्मार्ट है। समस्या तब शुरू होती है जब आप गैजेट को अपने से ज्यादा स्मार्ट समझने लगते हैं। किसी की स्मार्टनेस स्मार्ट गैजेट को स्मार्ट तरीके से उपयोग करने में सक्षम बनाती है और उन्हें उत्पादकता में मदद करने वाले उपकरणों के रूप में व्यवहार करती है। प्रधानमंत्री ने कहा, “स्क्रीन पर औसत समय का बढ़ना एक चिंताजनक प्रवृत्ति है।” उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि एक अध्ययन के अनुसार, एक भारतीय के लिए स्क्रीन पर होने का औसत समय छह घंटे तक है। ऐसे में गैजेट हमें गुलाम बना लेता है। प्रधानमंत्री ने कहा, “ईश्वर ने हमें स्वतंत्र इच्छा और एक स्वतंत्र व्यक्तित्व दिया है और हमें हमेशा अपने गैजेट्स का गुलाम बनने के बारे में सचेत रहना चाहिए।” उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए कहा कि बहुत सक्रिय होने के बावजूद उन्हें मोबाइल फोन के साथ कम ही देखा जाता है। उन्होंने कहा कि वह ऐसी गतिविधियों के लिए एक निश्चित समय रखते हैं। तकनीक से परहेज नहीं करना चाहिए बल्कि खुद को जरूरत के हिसाब से उपयोगी चीजों तक सीमित रखना चाहिए। उन्होंने छात्रों के बीच पहाड़े को दोहराने के लिए क्षमता के नुकसान का उदाहरण भी दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें अपने मूल उपहारों को खोए बिना अपनी क्षमताओं में सुधार करने की जरूरत है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस दौर में अपनी क्रिएटिविटी को बचाए रखने के लिए टेस्टिंग और लर्निंग करते रहना चाहिए। प्रधानमंत्री ने नियमित अंतराल पर ‘टेक्नोलॉजी फास्टिंग’ का सुझाव दिया। उन्होंने हर घर में एक ‘प्रौद्योगिकी मुक्त क्षेत्र’ के रूप में एक सीमांकित क्षेत्र का भी सुझाव दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि इससे जीवन का आनंद बढ़ेगा और आप गैजेट्स की गुलामी के चंगुल से बाहर आएंगे।
परीक्षा के बाद तनाव
जम्मू के गवर्नमेंट मॉडल हाई सेकेंडरी स्कूल, जम्मू के 10वीं कक्षा के छात्र निदाह के सवालों का समाधान करते हुए, कड़ी मेहनत के बाद भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिलने के तनाव को दूर करने और शहीद नायक राजेंद्र सिंह राजकीय स्कूल, पलवल, हरियाणा के कक्षा के छात्र प्रशांत के बारे में यह पूछे जाने पर कि तनाव परिणामों को कैसे प्रभावित करता है, प्रधानमंत्री ने कहा कि परीक्षा के बाद तनाव का मुख्य कारण इस सच्चाई को स्वीकार नहीं करना है कि परीक्षा अच्छी हुई या नहीं। प्रधानमंत्री ने छात्रों के बीच तनाव पैदा करने वाले कारक के रूप में प्रतिस्पर्धा पर भी प्रकाश डाला और सुझाव दिया कि छात्रों को अपनी आंतरिक क्षमताओं को मजबूत करते हुए स्वयं और अपने परिवेश से जीना व सीखना चाहिए। जीवन के प्रति दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि परीक्षा जीवन का अंत नहीं है और परिणामों के बारे में अधिक सोचना दैनिक जीवन का विषय नहीं होना चाहिए।
नई भाषाओं को सीखने के लाभ
तेलंगाना के जवाहर नवोदय विद्यालय रंगारेड्डी की कक्षा 9वीं की छात्रा आर. अक्षरासिरी और राजकीय माध्यमिक विद्यालय, भोपाल की 12वीं कक्षा की छात्रा रितिका के प्रश्नों का उत्तर देते हुए कि कोई और भाषा कैसे सीख सकता है और इससे उन्हें कैसे लाभ हो सकता है, प्रधानमंत्री ने भारत की सांस्कृतिक विविधता और समृद्ध विरासत के बारे में कहा कि यह बड़े गर्व की बात है कि भारत सैकड़ों भाषाओं और हजारों बोलियों का देश है। उन्होंने कहा कि नई भाषा सीखना एक नया संगीत वाद्ययंत्र सीखने के समान है। प्रधानमंत्री ने कहा, “एक क्षेत्रीय भाषा सीखने का प्रयास करके, आप न केवल भाषा की अभिव्यक्ति बनने के बारे में सीख रहे हैं बल्कि क्षेत्र से जुड़े इतिहास और विरासत के द्वार भी खोल रहे हैं।” प्रधानमंत्री ने कहा कि दैनिक दिनचर्या पर बोझ के बिना एक नई भाषा सीखने पर जोर देना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि दो हजार साल पहले बनाए गए देश के एक स्मारक पर नागरिक गर्व महसूस करते हैं, ठीक उसी तरह, देश को तमिल भाषा पर समान रूप से गर्व करना चाहिए, जो पृथ्वी पर सबसे पुरानी भाषा के रूप में जानी जाती है। प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र संगठनों के अपने पिछले संबोधन को याद किया और इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे उन्होंने विशेष रूप से तमिल के बारे में तथ्य सामने लाए, क्योंकि वह दुनिया को उस देश के लिए गर्व के बारे में बताना चाहते थे, जो सबसे पुरानी भाषा का स्थान है। प्रधानमंत्री ने उत्तर भारत के उन लोगों के बारे में बताया, जो दक्षिण भारत के व्यंजनों का सेवन करते हैं। प्रधानमंत्री ने मातृभाषा के अलावा भारत से कम से कम एक क्षेत्रीय भाषा जानने की आवश्यकता पर बल दिया और इस बात पर प्रकाश डाला कि जब आप उनसे बात करते हैं तो भाषा जानने वाले लोगों के चेहरे कैसे चमकते हैं। प्रधानमंत्री ने गुजरात में प्रवासी श्रमिक की 8 वर्षीय बेटी का उदाहरण दिया, जो बंगाली, मलयालम, मराठी और गुजरात जैसी कई अलग-अलग भाषाएं बोलती है। पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन को याद करते हुए, प्रधानमंत्री ने अपनी विरासत, पंच प्रणों (पांच प्रतिज्ञाओं) में से एक पर गर्व करने पर प्रकाश डाला और कहा कि प्रत्येक भारतीय को भारत की भाषाओं पर गर्व करना चाहिए। .
छात्रों को प्रेरित करने में शिक्षकों की भूमिका
कटक, ओडिशा की शिक्षिका सुनन्या त्रिपाठी ने प्रधानमंत्री से छात्रों को प्रेरित करने और कक्षाओं को रोचक व अनुशासित बनाने के बारे में पूछा। प्रधानमंत्री ने प्रश्न के उत्तर में कहा कि शिक्षकों को लचीला होना चाहिए और विषय व पाठ्यक्रम के बारे में बहुत कठोर नहीं होना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि शिक्षकों को छात्रों के साथ तालमेल स्थापित करना चाहिए। शिक्षकों को हमेशा छात्रों में जिज्ञासा को बढ़ावा देना चाहिए क्योंकि यह उनकी बड़ी ताकत है। उन्होंने कहा कि आज भी छात्र अपने शिक्षकों को बहुत महत्व देते हैं। इसलिए प्रधानमंत्री ने कहा कि शिक्षकों को कुछ कहने के लिए समय लगाना चाहिए। अनुशासन स्थापित करने के तरीकों के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि शिक्षकों को कमजोर छात्रों को अपमानित करने के बजाय होशियार छात्रों को प्रश्न पूछकर पुरस्कृत करना चाहिए। इसी प्रकार, छात्रों के साथ अनुशासन के मुद्दों पर संवाद स्थापित करके उनके अहंकार को ठेस पहुंचाने के बजाय उनके व्यवहार को सही दिशा में निर्देशित किया जा सकता है। प्रधानमंत्री ने कहा, “मेरा मानना है कि हमें अनुशासन स्थापित करने के लिए शारीरिक दंड का रास्ता नहीं अपनाना चाहिए, हमें संवाद और तालमेल चुनना चाहिए।”
छात्रों का व्यवहार
समाज में छात्रों के व्यवहार के बारे में नई दिल्ली की एक अभिभावक श्रीमती सुमन मिश्रा के प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि माता-पिता को समाज में छात्रों के व्यवहार के दायरे को सीमित नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा, “हमें बच्चों को विस्तार देने का अवसर देना चाहिए, उन्हें बंधनों में नहीं बांधना चाहिए। अपने बच्चों को समाज के विभिन्न वर्गों में जाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। समाज में छात्र के विकास के लिए एक समग्र दृष्टिकोण होना चाहिए।” उन्होंने अपनी खुद की सलाह को याद किया कि छात्रों को अपनी परीक्षा के बाद बाहर यात्रा करने और अपने अनुभव रिकॉर्ड करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्हें इस तरह आजाद करने से उन्हें काफी कुछ सीखने को मिलेगा। 12वीं की परीक्षा के बाद उन्हें अपने राज्यों से बाहर जाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्होंने माता-पिता से कहा कि वे अपने बच्चों को नए अनुभवों के लिए प्रेरित करते रहें। उन्होंने माता-पिता को अपनी स्थिति के अनुसार बच्चों के मूड और उनकी परिस्थिति के बारे में सतर्क रहने के लिए भी कहा। उन्होंने कहा कि ऐसा तब होता है जब माता-पिता खुद को बच्चों यानी भगवान के उपहार के संरक्षक के रूप में मानते हैं।
संबोधन का समापन करते हुए, प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर उपस्थित सभी को धन्यवाद दिया और माता-पिता, शिक्षकों और अभिभावकों से परीक्षा के दौरान बनाए जा रहे तनावपूर्ण माहौल को अधिकतम सीमा तक कम करने का आग्रह किया। नतीजतन, परीक्षा छात्रों के जीवन को उत्साह से भरकर एक उत्सव में बदल जाएगी, और यही उत्साह छात्रों की उत्कृष्टता की गारंटी देगा।