28
कुरुक्षेत्र । सोसाइटी फॉर प्रमोशन ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इन इंडिया (एसपीएसटीआई) ने ऑनलाइन विशेष व्याख्यान का आयोजन किया। इस व्याख्यान में मनुष्य की आंतों और भोजन को लेकर वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों द्वारा विस्तार से चर्चा की गई। एसपीएसटीआई के शनिवार को लोकप्रिय व्याख्यानों की श्रृंखला में 5वां व्याख्यान दिया गया। इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबियल टेक्नोलॉजी चंडीगढ़ के युवा और दूरदर्शी निदेशक प्रो. संजीव खोसला ने व्याख्यान में चर्चा की। उन्होंने वोकल-फॉर-लोकल संदेश को आंत माइक्रोबायोटा से बताया। मनुष्य की आंत के बैक्टीरिया स्थानीय भोजन के लिए अपना रहे हैं। पोषक तत्वों से भरे बिस्किट जैसे पौष्टिक आहार के स्थान पर स्थानीय भोजन को अपनाकर दीर्घकालिक आधार पर कुपोषण का मुकाबला किया जा सकता है। प्रो. संजीव खोसला ने आंत माइक्रोबायोटा की जानकारी और बताया कि यह निष्कर्ष यूएस-बांग्लादेश के संयुक्त अध्ययन से निकला है। उन्होंने श्रृंखला में 5वां व्याख्यान – विज़न ऑफ़ इंस्टीट्यूशंस इन नॉर्थ वेस्ट इंडिया इन रन अप टू इंडिया के अंतर्गत दिया। व्याख्यान का शीर्षक “सीएसआईआर-इमटेक के लिए विजन” था। इस ऑनलाइन व्याख्यान में विज्ञान अकादमियों के चंडीगढ़ चैप्टर, यंग एकेडमी ऑफ साइंस और पंजाब स्टेट काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी कार्यक्रम के सह-मेजबान थे। संस्थान की चर्चा करते हुए डा. खोसला ने चार दशक लंबे विकास और योगदान की जानकारी भी दी। चर्चा हुई कि पहले निदेशक वी. सी. वोहरा की दूरदर्शिता से आई.एम.टी.ई.सी.एच. को आणविक सूक्ष्म जीव विज्ञान, संक्रामक रोग, माइक्रोबियल टाइप कल्चर कलेक्शन, अनुसंधान के लिए एक माइक्रोबियल रिपॉजिटरी, बायोकेमिकल जैसे विषयों को विकसित करने का योगदान है। इंजीनियरिंग और किण्वन (औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी में एक प्रमुख क्षेत्र में अग्रणी, फार्मा द्वारा आवश्यक), जैव सूचना विज्ञान और बड़ा डेटा। आज एमटीसीसी एक राष्ट्रीय सुविधा है, जो 40,000 से अधिक प्रजातियों का आवास है और नियामक प्राधिकरणों से जुड़ा हुआ है। माइक्रोबियल समुदायों में अनुसंधान (मानव समुदायों के समान) ने विभिन्न वातावरणों में रोगाणुओं के व्यवहार में अंतर्दृष्टि प्रकट की है। मानव माइक्रोबायोटा, जिसमें सभी वायरस, बैक्टीरिया, कवक और इसी तरह शामिल हैं, ने हमारे शरीर में विभिन्न ऊतकों को उपनिवेशित किया है। यह हमारे साथ सहवास करते हैं और हमारे जैसा ही भोजन करते हैं। यहां एआई-एमएल (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग) आधारित अध्ययनों से मेजबान और माइक्रोबायोटा के बीच बातचीत की प्रकृति में और अधिक अंतर्दृष्टि प्राप्त होने की संभावना है। खेती में माइक्रोबायोम के अध्ययन से बेहतर जैव उर्वरक, जैव-कीटनाशक, मल्चिंग और मिट्टी का वातन प्राप्त हुआ है। आई.एम.टी.सी.एच. के संक्रामक रोग खंड ने तपेदिक और लीशमैनिया पर ध्यान केंद्रित किया है और कोविड एंटीवायरल यौगिक स्क्रीनिंग में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस की उपलब्धियों में स्थान का गौरव इसके वायु शोधन यूवी उपकरण को जाता है जिसका उपयोग वंदे भारत ट्रेनों और कई अन्य स्थानों पर किया जा रहा है। संस्थान ने बुनियादी अनुसंधान के साथ-साथ सेवाएं और समाधान प्रदान करने के लिए राष्ट्र को उत्कृष्ट सेवा प्रदान की है।
इस मौके पर प्रो. अरुण के. ग्रोवर, उपाध्यक्ष, एसपीएसटीआई और प्रो. किया धर्मवीर महासचिव ने सत्र का संचालन किया। प्रोफेसर आनंद बचावत आईआईएसईआर, मोहाली और प्रोफेसर आर के कोहली, वीसी, एमिटी यूनिवर्सिटी, मोहाली वक्तव्य देने वालों में शामिल रहे।
मनुष्य की आंत के बैक्टीरिया एवं भोजन के विषय पर हुई चर्चा
सोसाइटी फॉर प्रमोशन ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इन इंडिया के ऑनलाइन विशेष व्याख्यान का आयोजन
न्यूज़ डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र । सोसाइटी फॉर प्रमोशन ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इन इंडिया (एसपीएसटीआई) ने ऑनलाइन विशेष व्याख्यान का आयोजन किया। इस व्याख्यान में मनुष्य की आंतों और भोजन को लेकर वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों द्वारा विस्तार से चर्चा की गई। एसपीएसटीआई के शनिवार को लोकप्रिय व्याख्यानों की श्रृंखला में 5वां व्याख्यान दिया गया। इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबियल टेक्नोलॉजी चंडीगढ़ के युवा और दूरदर्शी निदेशक प्रो. संजीव खोसला ने व्याख्यान में चर्चा की। उन्होंने वोकल-फॉर-लोकल संदेश को आंत माइक्रोबायोटा से बताया। मनुष्य की आंत के बैक्टीरिया स्थानीय भोजन के लिए अपना रहे हैं। पोषक तत्वों से भरे बिस्किट जैसे पौष्टिक आहार के स्थान पर स्थानीय भोजन को अपनाकर दीर्घकालिक आधार पर कुपोषण का मुकाबला किया जा सकता है। प्रो. संजीव खोसला ने आंत माइक्रोबायोटा की जानकारी और बताया कि यह निष्कर्ष यूएस-बांग्लादेश के संयुक्त अध्ययन से निकला है। उन्होंने श्रृंखला में 5वां व्याख्यान – विज़न ऑफ़ इंस्टीट्यूशंस इन नॉर्थ वेस्ट इंडिया इन रन अप टू इंडिया के अंतर्गत दिया। व्याख्यान का शीर्षक “सीएसआईआर-इमटेक के लिए विजन” था। इस ऑनलाइन व्याख्यान में विज्ञान अकादमियों के चंडीगढ़ चैप्टर, यंग एकेडमी ऑफ साइंस और पंजाब स्टेट काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी कार्यक्रम के सह-मेजबान थे। संस्थान की चर्चा करते हुए डा. खोसला ने चार दशक लंबे विकास और योगदान की जानकारी भी दी। चर्चा हुई कि पहले निदेशक वी. सी. वोहरा की दूरदर्शिता से आई.एम.टी.ई.सी.एच. को आणविक सूक्ष्म जीव विज्ञान, संक्रामक रोग, माइक्रोबियल टाइप कल्चर कलेक्शन, अनुसंधान के लिए एक माइक्रोबियल रिपॉजिटरी, बायोकेमिकल जैसे विषयों को विकसित करने का योगदान है। इंजीनियरिंग और किण्वन (औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी में एक प्रमुख क्षेत्र में अग्रणी, फार्मा द्वारा आवश्यक), जैव सूचना विज्ञान और बड़ा डेटा। आज एमटीसीसी एक राष्ट्रीय सुविधा है, जो 40,000 से अधिक प्रजातियों का आवास है और नियामक प्राधिकरणों से जुड़ा हुआ है। माइक्रोबियल समुदायों में अनुसंधान (मानव समुदायों के समान) ने विभिन्न वातावरणों में रोगाणुओं के व्यवहार में अंतर्दृष्टि प्रकट की है। मानव माइक्रोबायोटा, जिसमें सभी वायरस, बैक्टीरिया, कवक और इसी तरह शामिल हैं, ने हमारे शरीर में विभिन्न ऊतकों को उपनिवेशित किया है। यह हमारे साथ सहवास करते हैं और हमारे जैसा ही भोजन करते हैं। यहां एआई-एमएल (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग) आधारित अध्ययनों से मेजबान और माइक्रोबायोटा के बीच बातचीत की प्रकृति में और अधिक अंतर्दृष्टि प्राप्त होने की संभावना है। खेती में माइक्रोबायोम के अध्ययन से बेहतर जैव उर्वरक, जैव-कीटनाशक, मल्चिंग और मिट्टी का वातन प्राप्त हुआ है। आई.एम.टी.सी.एच. के संक्रामक रोग खंड ने तपेदिक और लीशमैनिया पर ध्यान केंद्रित किया है और कोविड एंटीवायरल यौगिक स्क्रीनिंग में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस की उपलब्धियों में स्थान का गौरव इसके वायु शोधन यूवी उपकरण को जाता है जिसका उपयोग वंदे भारत ट्रेनों और कई अन्य स्थानों पर किया जा रहा है। संस्थान ने बुनियादी अनुसंधान के साथ-साथ सेवाएं और समाधान प्रदान करने के लिए राष्ट्र को उत्कृष्ट सेवा प्रदान की है।
इस मौके पर प्रो. अरुण के. ग्रोवर, उपाध्यक्ष, एसपीएसटीआई और प्रो. किया धर्मवीर महासचिव ने सत्र का संचालन किया। प्रोफेसर आनंद बचावत आईआईएसईआर, मोहाली और प्रोफेसर आर के कोहली, वीसी, एमिटी यूनिवर्सिटी, मोहाली वक्तव्य देने वालों में शामिल रहे।