डॉ. प्रदीप गोयल/ न्यूज डेक्स संवाददाता
शाहाबाद। ब्रह्माकुमारीज़ के विख्यात मोटिवेशनल वक्ता माउंट आबू से आए प्रो. बीके ओंकार चंद ने कहा कि रिश्तों को सुंदर बनाने के लिए दूसरों को बदलने बारे नहीं सोचना है क्यों कि जितना हम दूसरों को बदलने की कोशिश करते हैं उतना रिश्ता और अधिक उलझता जाता है और वो व्यक्ति हमसे दूर होता है। हम पहले खुद को बदलने की जिम्मेवारी लें। पहले यह देखना होगा कि ऐसी कौन सी बातें हैं जिनकी वजह से हमारे नजदीकी व सबसे प्यारे लोग ही कई बार हमारे दर्द का कारण बन जाते हैं। ये बात पक्की कर ले कि हम दूसरों को राय दे सकते हैं, समझा सकते हैं, मार्गदर्शन दे सकते हैं, प्रेरित कर सकते हैं पर वह हमारी बात माने या ना माने यह उसकी मर्जी है। हम जबरदस्ती किसी को कंट्रोल नहीं किया जा सकता। जिस व्यक्ति का अपने बोल पर, हाथों पर और मन पर नियंत्रण नहीं है वह दूसरों को कैसे कंट्रोल कर सकता है।हम सब की आत्मा इस संसार में एक यात्रा पर है। सब के यहाँ अलग-अलग संस्कार हैं। इसलिए कोई भी यहां पर गलत नहीं है। हमारा रिश्ता तब कमजोर होता है जब हम सोचते हैं कि मैं सही हूं और सामने वाला गलत है।
ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के अटारी कॉनोली स्थित सेवा केंद्र में खुशियाँ आपके द्वार विषय पर आयोजित 11 दिवसीय राजयोग मैडिटेशन शिविर के तीसरे दिवस पर संबंधों में मधुरता विषय पर बीके ओंकार चंद ने कहा कि लोग सच बोलने के लिए तैयार हैं पर क्या हम सच सुनने के लिए तैयार हैं। जब कोई हमसे सच बोलता है तो हम गुस्से से बात करते हैं और झूठ बोलता है तो खुश हो जाते हैं। इसलिए लोगों ने तुम्हारे साथ झूठ बोलना शुरु कर दिया. रिश्तों को ठीक करने के लिए सामने वाला व्यक्ति जो है, जैसा है उसे स्वीकार करना चाहिए। हमारे द्वारा कही गई अच्छी से अच्छी बात अथवा राय भी लोगों को सुनने में इसलिए अच्छी नहीं लगती क्योंकि हम राय देने से पहले ही उनके बारे में गलत विचार मन में ले आते हैं कि यह व्यक्ति तो गलत है, बुरा है। पहले दूसरे की आदतों को सम्मान दें, उन्हें स्वीकार करें और शुभ भावना रखते हुए फिर उन्हें समझाएं तब वो बदलने के लिए तैयार हो सकते हैं।
संबंधों को मधुर बनाने के टिप्स देते हुए बी के ओंकार भाई ने आगे कहा कि हम कभी यह अपेक्षा नहीं करें कि जो अच्छे गुण, संस्कार या विशेषताएं हमारे में है वो दूसरों में भी होनी चाहिए। जब हमें अपनी विशेषताएं दूसरों में ना मिले तो उन्हें देखकर हमें परेशान नहीं होना है और ना ही अपनी अच्छी विशेषताओं को छोड़ना है. दूसरों की बुराई को कॉपी करके अपने में नहीं लाना है। जिनके साथ हम रहे हैं उनके लिए अच्छा सोचें, उनके संस्कारों को स्वीकार करें और प्यार से उनके साथ तालमेल करके चलें। जो हमारे साथ अच्छा व्यवहार नहीं करें तो समझना चाहिए की वो व्यक्ति अंदर से बहुत दर्द में है इसलिए उसे मुझे और अधिक प्यार और शक्ति देनी होगी ताकि उसका दर्द समाप्त हो। इस मौके पर कृष्ण कुमार मलिक, सचिव मार्केट कमेटी, धनपत राय अग्रवाल, यशपाल वधवा, निशा ठकराल, फकीर चंद ढिल्लों, डा योगेश महेंद्रू, मंजू नारंग, बलदेव गाबा भी उपस्थित थे।
ब्रह्माकुमारीज़ सेवाकेंद्र की संचालिका बी के नीति बहनजी ने कहा कि खुशी को खत्म करने के 100 बहाने, 100 कारण, 100 बातें हो सकती हैं लेकिन अपनी खुशी को कायम रखने के लिए सिर्फ एक आप ही जिम्मेदार हैं। खुशी एक खजाना है और एक दवा भी है। समय के अनुसार परिस्थियां भी बदल जाती हैं। भूतकाल की घटनाएं आपको तनाव नहीं देती हैं। पूरे जीवन में कई घटनाएं होती हैं, लेकिन समय के अनुसार उन्हें हम भूलकर आगे बढ़ते हैं। हम केवल वर्तमान में अच्छे से अच्छा जीवन जीने की साेचें तो तनाव दूर हो जाएगा और भविष्य सर्वश्रेष्ठ होगा।