डॉ. प्रदीप गोयल/न्यूज डेक्स संवाददाता
शाहाबाद। ब्रह्माकुमारीज़ के अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय माउंट आबू से पधारे विख्यात मोटिवेशनल वक्ता प्रो. बीके ओंकार चंद ने बताया कि जैसा आप सोचेंगे वैसा बन जायेंगे। मन स्वयं का मित्र भी है और शत्रु भी। हम दूसरों के लिए जैसा सोचते हैं दूसरे भी हमारे लिए वैसा ही सोचते हैं। आत्मचिंतन के आधार से हमें आत्मा के साथ गुणों को महसूस करना है। हमें जानना होगा कि मैं हाथ, पैर, नाक, कान व शरीर नहीं बल्कि शरीर को चलाने वाली चैतन्य शक्ति शुद्ध पवित्र ज्योतिस्वरूप आत्मा हूँ । यह गल्त मान्यता है कि मैं बीमार हूँ या मुझे डायबिटिज है बल्कि हकीकत यह है कि मैं नहीं मेरा शरीर बीमार है। जब हम मैं और मेरे के सूक्ष्म अन्तर को समझ जाएंगें तो चिन्ता, दुख, भय स्वत: खत्म हो जाएगा। आत्मा की तीन सूक्ष्म शक्तियां हैं – मन, बुद्धि, और संस्कार। राजयोग हमें मन को मित्र बनाने की कला सिखाता है। राजयोग हमें अंतर जगत की यात्रा भी कराता है।
‘आत्म दर्शन एवम आत्मानुभूति’ विषय पर अपने उदगार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि जैसे शरीर को पांच तत्व चाहिए उसी तरह आत्मा को भी सात गुण- जैसे शान्ति, सुख, प्रेम, शक्ति, ज्ञान, पवित्रता और आनन्द चाहिए। आत्मा की तीन शक्तियां मन, बुद्धि व संस्कार हैं। हर आत्मा में पांच प्रकार के संस्कार होते हैं। पहली प्रकार के शुद्ध और पवित्र संस्कार जिन्हें लेकर आत्मा, परमात्मा के पास से लेकर इस दुनिया में आती है। दूसरें हैं पूर्व जन्मों के संस्कार, तीसरे हैं खानदानी संस्कार और चौथे हैं जो हम इस जन्म में निर्मित करते हैं। पांचवें वे संस्कार हैं जो हम खुद अपनी इच्छा से बनाते हैं।
ओंकार चंद ने कहा कि आत्मानुभूति के लिए हम यही चिन्तन मन में करें कि मैं देह नहीं हूं बल्कि शरीर को चलाने वाली, हर संकल्प की रचना करने वाली, हर भावना को महसूस करने वाली, मैं चैतन्य शक्ति ज्योत स्वरूप आत्मा हूँ। मैं अजर अमर अविनाशी हूं। मैं भृकुटी के मध्य अति सूक्ष्म चमकता हुआ सितारा हूँ। मैं आत्मा सर्व कर्मेंद्रियों की मालिक हूँ। मैं आत्मा असली स्वरूप में बहुत शुद्ध पवित्र हूं, मुझ आत्मा का स्वधर्म शांति है। इस अवसर पर बार एसोसिएशन के प्रधान गुरप्रीत बाछल, उपप्रधान सुशील शर्मा, पूर्व जनरल सेक्टरी नितीश शर्मा, बक्शीश सैनी, शगुन सरस्वाल, गौतम बठला, प्रवीण त्यागी, राजकुमार कश्यप, लच्छीराम, राजेश सीडाना, रमेश अहूजा, रामकृष्ण हसीजा सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
ब्रह्माकुमारीज़ सेवाकेंद्र की संचालिका बी के नीति बहन ने कहा कि हमारे सोचने, बोलने और करने से जो शक्ति पैदा होती है, वह हमारा कर्म बनाती है। मैं किसी व्यक्ति से कैसे बात करूं यह मेरा कर्म है। और कोई व्यक्ति मुझसे कैसे बात करेगा यह मेरा भाग्य है। आप किसी पर विश्वास करें ये आपका कर्म। वो आप पर विश्वास करे या धोखा दे वह आपका भाग्य है। अब दिनभर में जो शक्ति हमारे पास लोगों के व्यवहार, परिस्थिति के रूप में आती है, यह हमारे कर्म का फल है, हमारा भाग्य है। समझने की बात यह है कि सब कुछ जो हमारे पास बाहर से आ रहा है, वह उसी का रिटर्न है जो एनर्जी हमने बाहर भेजी थी।