भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति की साख व सम्मान को बढ़ाने का है उचित समय- प्रो. सोमनाथ सचदेवा
न्यूज़ डेक्स इंडिया
कुरुक्षेत्र । श्रीकृष्णा आयुष विश्वविद्यालय की शनिवार को कोर्ट की बैठक आयोजित की गई। जिसकी अध्यक्षता कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा द्वारा की गई। कुलसचिव डॉ. नरेश कुमार ने उपस्थित कोर्ट के सभी सम्मानित सदस्यों का स्वागत किया। पहली कोर्ट की मीटिंग में वार्षिक रिपोर्ट और साल 2023-24 के अनुमानित बजट से सम्बन्धित दो एजेंडे रखे गए। जिसे कोर्ट के सभी सदस्यों ने ध्वनि मत से पास कर दिया। कुलसचिव डॉ. नरेश कुमार ने कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा के निर्देशानुसार वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत की। जिसमें उन्होंने अभी तक की विश्वविद्यालय की उपलब्धियां, छात्रहित और जनहित में किये कार्यों का विस्तृत ब्योरा प्रस्तुत किया और भविष्य में विश्वविद्यालय के लक्ष्यों के बारे में बताते हुए कहा कि आयुष विवि के आयुर्वेदिक अस्पताल में योगा और नेचुरोपैथी, होम्योपैथी व नाड़ी परीक्षण को लेकर जल्द ही ओपीडी शुरू की जाएगी। इसके साथ ही पिछले पांच साल में प्रदेश सरकार द्वारा आवंटित बजट और विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा बजट का कितना व्यय किया गया इसकी जानकारी दी गई। उन्होंने बताया कि वर्ष 2023-24 के लिए फाइनेंस कमेटी की बैठक में 2 सो 1 करोड़ 19.20 लाख रुपए का बजट पास हो चुका है। जिसमें से अभी 49 करोड़ 99 लाख की मंजूरी मिली है। शेष स्पलिमेन्टरी बजट के लिए सरकार से मांग की जाएगी। कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने सभी सम्मानित सदस्यों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि हम सभी का सौभाग्य है कि हम विश्व के पहले आयुष विश्वविद्यालय का अभिन्न अंग हैं। यह संस्थान पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के अंदर विश्व में नए कीर्तिमान स्थापित कर सकता है। इसके लिए सभी को पूर्ण विश्वास और एक साथ कदमताल मिलाकर चलना होगा। आयुष विश्वविद्यालय पांच चिकित्सा पद्धतियों से मिलकर बना है, आयुर्वेद, योगा एवं नेचुरलपैथी, यूनानी, सिद्धा और होम्योपैथी। जल्द ही आयुर्वेद के अलावा चार और विभाग जल्द ही शुरू किये जाएंगे। इसके साथ जो सबसे बड़ा और मुख्य कार्य है आयुष विवि का फत्तूपुर गांव में बनने वाला नया कैंपस है। इसके लिए पहले उसकी रूपरेखा बनाने की आवश्यकता है। ताकि जल्द से जल्द नए कैंपस का निर्माण कार्य शुरु हो सके। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति पर विश्वविद्यालय में कुछ कार्य पहले से जारी हैं। बाकि आयामों पर भी जल्द कार्य होगा। यह सभी कार्य विश्वविद्यालय परिवार के पूर्ण सहयोग से ही संभव हो सकते हैं। इससे भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति की साख व सम्मान में बढ़ोतरी होग। इसके लिए यह समय भी अनुकूल है। इसके साथ ही बैठक में नाड़ी परीक्षण केंद्र, शल्य चिकित्सा, आयुर्वेदिक औषधियों की गुणवत्ता और जांच के लिए लेब, आयुर्वेद के 14 पीजी डिपार्टमेंट की दक्षता बढ़ाने और विश्वविद्यालय की फार्मेसी को विकसित करने आदि विषयों पर चर्चा हुई।