बौद्ध पूर्णिमा के उपलक्ष्य में मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा अहिंसा संवाद कार्यक्रम संपन्न
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। गौतम बुद्ध एक प्रकाशस्तंभ है, उनका लोकहितकारी चिन्तन एवं कर्म कालजयी है और युग-युगों तक समाज का मार्गदर्शन करता है। बुद्ध पूर्णिमा को उनकी जयंती मनाई जाती है और उनका निर्वाण दिवस भी बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। यानी यही वह दिन था जब बुद्ध ने जन्म लिया, शरीर का त्याग किया था और मोक्ष प्राप्त किया। बुद्ध पूर्णिमा न केवल बौध धर्म के अनुयायियों के लिए बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति के लिये एक महत्वपूर्ण दिन है। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा बुद्ध पूर्णिमा के उपलक्ष्य में आयोजित अहिंसा संवाद कार्यक्रम में व्यक्त किये।
कार्यक्रम का शुभारम्भ मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थिओं द्वारा अहिसा पाठ एवं दीप प्रज्जवलन से हुआ। इस अवसर पर एक अंतर विद्यालयी चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यर्थियों के मध्य हुआ। चित्रकला प्रतियोगिता में अष्टम कक्षा के प्रथम, सप्तम कक्षा आशुतोष द्वितीय एवं पांचवी कक्षा के सर्वज्ञ ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। सभी विजेताओं को मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा पुरस्कृत किया गया। डा. श्रीप्रकाश ने कहा
संसार की विरोधाभासी प्रकृति के बीच आत्मबल हमें आत्मिक शांति की राह दिखाता है। बुद्ध के संदेश हमें इसी राह पर ले जाते हैं। गौतम बुद्ध की शिक्षाएं आत्मिक उन्नति से लेकर सामाजिक हितों तक के संदर्भ में हर युग में सार्थक हैं। बुद्ध विष्णु के दशावतार हैं और शांति के विश्व देव भी। डा. श्रीप्रकाश ने कहा सत्य-असत्य, शुभ-अशुभ, अतीत-वर्तमान-भविष्य, ये ऐसे शब्द हैं जिनसे हम सदा ही जूझते हैं। इन शब्दों के बीच सदा ही द्वंद्व रहा है। कटु सत्य यह भी है कि हम आज तक इन शब्दों की कसौटी पर खरे नहीं उतरे। बुद्ध पूर्णिमा इन्हीं सवालों का उत्तर मांगती है। यह केवल इसलिए नहीं कि इस दिन बौद्ध धर्म के सूत्रधार और संचालक भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था, बल्कि इसलिए भी कि इसी से जीवन का संदेश मिलता है।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा महात्मा बुद्ध ने एक क्रान्तिकारी और सुधारवादी आन्दोलन चलाया। समााजिक क्रांति के संदर्भ में उनका जो अवदान है, उसे उजागर करना वर्तमान युग की बड़ी अपेक्षा है। ऐसा करके ही हम एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकेंगे। बुद्ध ने समतामूलक समाज का उपदेश दिया। जहां राग, द्वेष होता है, वहां विषमता पनपती है। इस दृष्टि से सभी समस्याओं का उत्स है-राग और द्वेष। व्यक्ति अपने स्वार्थों का पोषण करने, अहं को प्रदर्शित करने, दूसरों को नीचा दिखाने, सत्ता और सम्पत्ति हथियाने के लिए विषमता के गलियारे में भटकता रहता है। कार्यक्रम का समापन शांतिपाठ से हुआ। कार्यक्रम में वीरेंद्र कुमार, बाबूराम सहित विद्यालय के शिक्षक, विद्यार्थी एवं गणमान्य जन उपस्थित रहे।