मातृभूमि सेवा मिशन आश्रम परिसर में मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा महाराणा प्रताप जयंती पर शौर्य संवाद कार्यक्रम सम्पन्न
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। महाराणा प्रताप का नाम लेते ही नस-नस में बिजलियाँ-सी कौंध जाती हों; धमनियों में उत्साह, शौर्य और पराक्रम का रक्त प्रवाहित होने लगता है। मस्तक गर्व और स्वाभिमान से ऊँचा हो उठता हो। ऐसे परम प्रतापी महाराणा प्रताप का सम्पूर्ण जीवन मातृभूमि भारत की एकता, अखंडता एवं रक्षा के लिए समर्पित था। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने महाराणा प्रताप की जयंती पर मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा आयोजित शिक्षा संवाद कार्यक्रम वीर व्यक्त किए। कार्यक्रम का शुभारम्भ मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने महाराणा प्रताप के चित्र दीप प्रज्ज्वलन एवं पुष्प अर्पित कर किया।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, श्रीकृष्ण से लेकर महाराणा प्रताप और शिवाजी के जीवन चरित्र को शिक्षा के पाठड्ढक्रमों में स्थान देने की महत्ती जरूरत है। महाराणाप्रताप ने समाज में सामाजिक समरसता का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए वनों में रहने वाले भील समाज को अपनी सेना का अभिन्न अंग बनाया। हल्दीघाटी का युद्ध साक्षी है कि राणा प्रताप ने मुगलों के छक्के छुड़ा दिए थे।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि महाराणा प्रताप के पीछे आ रही पूरी विरासत ही सामाजिक समरसता से युत्त थी। महाराणा प्रताप सम्राट थे, लेकिन उनका लालन पालन वनवासी बंधुओं के बीच ही हुआ। प्रताप ने पूरा जीवन इन्हीं लोगों के बीच बिताया। युद्ध के दौरान सेना में सभी समाज के लोगों की सहभागिता रही। कभी ऊंच या निम्नता का भाव नहीं आया।प्रताप के मन में समानता का भाव था। आज मिथ्या अभिमान पाले जातियों में बंटे समाज के लिए महाराणा प्रताप का जीवनआज भी प्रासंगिक और अनुकरणीय है।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा इतिहास में महाराणा का नाम इसलिए भी स्वर्णाक्षरों में अंकित होना चाहिए कि युद्ध-कौशल के अतिरिक्त उनका सामाजिक-सांगठनिक कौशल भी अनुपमेय था। उन्होंने भीलों के साथ मिलकर ऐसा सामाजिक गठजोड़ बनाया था, जिसे भेद पाना तत्कालीन साम्राज्यवादी ताकतों के लिए असंभव था। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के बच्चों ने महाराणा प्रताप के जीवन से सम्बन्धित प्रेरक प्रसंग प्रस्तुत किये। कार्यक्रम में विद्यालय के शिक्षक, विद्यार्थी सहित अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहें। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रीय गीत वन्देमातरम से हुआ।