हमारा वैचारिक अधिष्ठान ही हमारा मूल : डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी ने कहा कि हमारा वैचारिक अधिष्ठान हमारा मूल है। हमें उसे पकड़े रहेंगे यही मौलिक है अन्य सब घटक हैं। डॉ. गोस्वामी पुस्तक पुनर्लेखन राष्ट्रीय कार्यशाला के समापन अवसर पर देशभर से आए प्रतिभागियों को संबोधित कर रहे थे। उनके साथ मंचासीन विद्या भारती के संगठन मंत्री गोविंद चंद्र मोहंत, विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय महामंत्री अवनीश भटनागर, विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी, सचिव वासुदेव प्रजापति रहे। कार्यशाला में संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह एवं संस्कृति बोध परियोजना के विषय संयोजक दुर्ग सिंह राजपुरोहित सहित देशभर के आठ प्रदेशों से 27 प्रतिनिधियों ने सहभागिता की।
डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी ने आगे कहा कि हमारा विचार पुष्ट हो, हमारे पास विचारों का अभाव नहीं है। हमारे वैचारिक अधिष्ठान से युक्त यह कक्षा 3 से 12 तक की पुस्तकें जब देशभर के 20 लाख बालकों तक जाएंगी तो राष्ट्रवादी संगठन क्या सोचते हैं, ये पुस्तकें दर्शाएंगी। उन्होंने लेखन टोली को प्रेरित करते हुए कहा कि लेखन की प्रेरणा हमें अनुभव, ज्ञान से मिलती है जिसे हम अपने शब्दों के माध्यम से रखते हैं। हमारा चिंतन निरन्तर चलता रहता है और हम उसे अपने लेखन के माध्यम से दूसरे तक पहुंचाने का महती प्रयास करते हैं। उन्होंने बोध का अर्थ समझाते हुए कहा कि लेखन वह हो जो अच्छी तरह अभिव्यक्त करे, सामने बैठे पात्र के अनुरूप करे एवं दूसरे को समझा सकें। पाठ्यक्रम तैयार करते हुए भाव एवं भाषा की दृष्टि को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए और विद्यार्थी के स्तर को देखते हुए लेखन कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मनुष्य सद्गुणों की निरन्तर आराधना करे, यह सद्गुण जितने अधिक हमारे भीतर आएं और अवगुण जितना अधिक बाहर जाएं, उतना ही अच्छा है।
विद्या भारती के संगठन मंत्री गोविंद चंद्र मोहंत ने कहा कि हमें संस्कृति बोध परियोजना के अन्तर्गत पुस्तकों के पुनर्लेखन का अवसर प्राप्त हुआ है। इसके माध्यम से हमें संस्कृति को पुनर्स्थापित करना है। इसमें संस्कृति ज्ञान परीक्षा की इन बोधमाला पुस्तकों का अत्यंत महत्व है। हमें समाज में अपनी संस्कृति को प्रभावी बनाना है। हमारे बच्चे एवं आगामी पीढ़ी इस विचार को स्वीकार करेगी तो निश्चित ही हमारे लेखन व चिंतन को सफलता मिलेगी। हमें सभी विषयों को प्रामाणिकता के साथ रखना चाहिए। भारतीय ज्ञान परम्परा को समझने के लिए हमारी बोधमाला पुस्तकें समाज में अवश्य जानी चाहिएं। कार्यशाला के समापन पर संस्थान के सचिव वासुदेव प्रजापति ने सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति और आई.के.एस. (भारतीय ज्ञान परम्परा) को ध्यान में रखकर विषय तय किए
विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने बताया कि संस्कृति बोध परियोजना के अन्तर्गत बोधमाला पुस्तकों में भारतीय संस्कृति से सरोकार रखने वाले सभी विषयों को समाहित करते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के परिप्रेक्ष्य में पुस्तकों का लेखन किया जाएगा। प्रथम चरण में पाठ्यक्रम का निर्माण किया गया है और कक्षा 3 से 12 तक के लिए विषयानुसार लेखन हेतु लेखकों का चयन किया जाएगा और उनके माध्यम से पुस्तकों का लेखन होगा।