शहीद भगत सिंह के प्रपौत्र और नेताजी सुभाष बोस की सहयोगी लक्ष्मी स्वामीनाथन सहगल की पुत्री सुभाषिनी से बातचीत
पुरानी फोटो में लिखा मेरे पिताजी, अपनी दादी मां( शहीद ए आजम भगत सिंह की माता विद्यावती जी )के साथ बैठे अखबार पढ़ते दिखाई दे रहे हैं
भगत सिंह के प्रपौत्र यादवेंद्र सिंह ने साझा की पुरानी फोटो
राजेश शांडिल्य
चंडीगढ़। हिंदुस्तान की जनता को याद तो जरूर होगी वो मां…जिसके क्रांतिकारी सपूत भगत सिंह ने पूरी ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिला दी थी। क्रांतिकारी शहीद ए आजम भगत सिंह को जन्म देने वाली वीरांगना माता विद्यावती जी की आज पुण्यतिथि है। उनके परपौत्र यादवेंद्र संधू ने आज एक फोटो सोशल मीडिया पर शेयर कर उन्हें श्रद्धांजली देते हुए पुरानी यादों को ताजा किया। उन्होंने लिखा कि मेरी परदादी माता विद्यावती जी( शहीदे आजम भगत सिंह जी की माता जी) 1 जून 1975 को परलोक सिधार गईं थीं। उनकी आज पुण्यतिथि है। आप सबके साथ एक विशेष याद साझा कर रहा हूं,जिसमें मेरे पिताजी स्वर्गीय सरदार बाबर सिंह अपनी दादी मां( विद्यावती जी )के साथ बैठे अखबार पढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। उल्लेखनीय है कि यादवेंद्र सिंह ने मेरा परिवार शहीद भगत सिंह परिवार नाम से एक अभियान चलाया हुआ है। इस अभियान के जरिए यादवेंद्र संधू शहीद ए आजम भगत सिंह को जी जान से चाहने और अपनाने वालों को शहीद ए आजम की खास स्मृति देकर मेरा परिवार भगत सिंह परिवार का सदस्य बना रहे हैं।
यादवेंद्र सिंह संधू ने बताया कि उनके परदादा शहीद ए आजम भगत सिंह और उनके साथी शहीद सुखदेव और राजगुरु के नाम आफिशियली ढंग से आज भी शहीदों की सूची में शामिल नहीं किए गए हैं। उन्होंने बताया कि भारत सरकार कीएक काउंसिल है आईसीसीआर (इंडिया काउंसिल फार कल्चर रिसर्च ) ने एक सूची तैयार की है,जिसके आफिशियली डाक्यूमेंट में 2019 के दौरान चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह का नाम स्वतंत्रता सेनानी सूची में दर्ज किये है,लेकिन शहीद के रुप में अभी तक उनका नाम दर्ज नहीं है,जोकि आफिशयली होना चाहिए। इस विषय में राज्यसभा और लोकसभा में कई बार मुद्दा उठा चुका है और पिछले साल भी उठा था,मगर हर बार गोलमोल जवाब दे दिया जाता है।
उन्होंने बताया कि दिल्ली यूनिवर्सिटी में बीए प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों को पढ़ाई जा रही एक पुस्तक में भगत सिंह को कई जगह पर क्रांतिकारी आतंकवादी लिखा हुआ था और इस पुस्तक कोभारत सरकार का मानव संसाधन मंत्रालय स्पांसर कर रहा था, जब उन्हे इसकी जानकारी मिली और विरोध किया,तब जाकर यह पुस्तक रोकी गई।अगर आजादी के बाद ठोस ढंग से कोई सरकार यह कार्य करती तो दिल्ली यूनिवर्सिटी की पाठ्य पुस्तक में और पंजाब के एक चुने हुए जनप्रतिनिधि द्वारा हरियाणा के करनाल में शहीद ए आजम को आतंकवादी कहने की जुर्रत नहीं होती। उन्होंने बताया कि लाहौर की जिस कोर्ट में भगत सिंह पर मुकदमा चला था, उस अदालत से द ट्रायल आफ भगत सिंह के दस्तावेज पाकिस्तान से मांगे गए थे,पहले पाकिस्तान ने यह दस्तावेज देने के लिए सहमति जताई थी,लेकिन बाद में पाकिस्तान की कोर्ट की धरोहर होने के कारण उसे भारत को नहीं दिया गया,जबकि उस समय लाहौर भारत में था।
मेरा परिवार भगत सिंह परिवार चलाई जा रही है मुहिम
भगत सिंह के दो चित्र देखने को मिलते हैं,एक हैट में,दूसरा पगड़ी वाला। ऐसा ही एक असली चित्र हैं,जब भगत सिंह जी को फांसी हुई तो तब उनके छोटे भाई और मेरे दादा कुलबीर सिंह 14 साल के थे। जिन दिनों भगत सिंह जेल में थे उस दौरान मेरे दादा कुलबीर सिंह उनसे मिलने एक फोटो लेकर गए थे,इसी फोटो पर दादा जी ने भगत सिंह के हस्ताक्षर लिए थे और यह फोटो धरोहर के रुप मेंआज भी हमारे घर में है। देश-दुनिया में शहीद ए आजम के प्रति प्यार,सम्मान और उनके सिद्धांतों में विश्वास करने वाले लोगों इसीधरोहर फोटो को उनके घर तक एक भेंट के रुप में पहुंचाया जा रहा है,ताकि यह परिवार वो होगा,जो देश से प्यार करने वालाहोगा,मेरा परिवार भगत सिंह परिवार वो होगा जो जाति धर्म के भेदभाव को ना मान कर देश से प्यार करने वाला परिवार हो,जो नशों से दूर रहने वाला परिवार हो,जो देश के लिए कुछ करने का जुनून रखने वाला परिवार हो,इस संकल्प के साथ यह धरोहर फोटो अभियान के दौरान भेंट की जा रही है।
शहीद ए आजम की चाहते थे राइट टू रिकाल
किसी भी राष्ट्र की लोकतांत्रिक व्यवस्था को सफल बनाने और उच्च मानक के साथ चलाने में राइट टू रिकाल जनता के लिए बहुत बड़ा हथियार है।शहीद ए आजम की जेल डायरी में इसका उल्लेख मिलता है। भगत सिंह जी ने इस डायरी में लिखा है कि कोई भी प्रतिनिधि जनता द्वारा चुने जाने के बाद यह समझे कि उसकी प्रफोरमेंस जैसी भी हो,लेकिन तय अवधि के लिए अब वह इस पद पर बना रहेगा। उन्होंने इस डायरी में लिखा है कि कार्यकाल के आधे समय में चुने हुए प्रतिनिधि द्वारा किए गए कार्यों की समीक्षा होनी चाहिए।यदि उसकी प्रफोरमेंस निराशाजनक है,जनता को राइट टू रिकाल का अधिकार होना चाहिए।
मैंने अपने माता पिता से धर्मनिरपेक्षता की सीख ली-सुभाषिनी
पूर्व सांसद सुभाषिनी अली सहगल ने माता विद्यावती को श्रद्धांजली देते हुए कहा मेरी माता लक्ष्मी स्वामीनाथन सहगल और पिता प्रेम सहगल दोनों ही नेता जी सुभाष चंद्र बोस के सहयोगी थे,वे दोनों आजादी के लिए और बहादुर थे,लेकिन वे दोनों धर्मनिरपेक्षता के प्रति समर्पित थे और उनका यह मानता था कि बगैर धर्मनिरपेक्षता के यह देश चल नहीं सकता। यही सबसे बड़ी सीख है जो मैने अपने माता पिता से ली और इसे आगे बढ़ाना है।सबसे पहले देश में धर्म निरपेक्षता कायम रहनी चाहिए,जब सब एक होंगे तो फिर इस देश को आगे बढ़ाने और कुछ करने के बारे में सोचा जा सकेगा,उन्होंने इस बात भी चिंता जताई कि अभी तक शहीदे आजम भगतसिंह,सुखदेव और राजगुरु के नाम शहीदों की सूची में दर्ज नहीं हुए। संयोग 23 मार्च को देश के महान सपूत की इस खबर से थमी कलम,वीरांगना माता की खबर से….