न्यूज डेक्स संवाददाता
चंडीगढ़। हरियाणा में आज कई जगहों पर किसानों ने सूरजमुखी की फसल को एएएसपी पर खरीद की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन किया। चौतरफा जाम के इन हालात में वैकल्पिक मार्गों पर अचानक दबाव बढ़ गया और जैसे तैसे गंतव्य पर पहुंचने की जद्दोजहद वाहन चालक करते रहे। कईं घंटों तक जाम के हालात और जाम से निकलने के लिए वाहन चालक और इनमें सवार लोगों को तरह तरह से खासी परेशानी झेलनी पड़ी। इनमें सबसे बुरी स्थिति एमरजेंसी वाहनों की भी नजर आई।
कईं जगहों पर एंबुलेंस के जाम में फंसने के समाचार प्राप्त हुए। इन एंबुलेंस में भले कोई किसान ना हो,मगर इनके परिवार, कोई नजदीकी रिश्तेदार या नातेदार तो आवश्य रहा होगा। मगर सबसे प्रदर्शन के लिए सबसे आसान धरना देने और सरकार तक आवाज पहुंचाने का रास्ता किसानों को पिछले वर्षों में राष्ट्रीय राजमार्ग ही नजर आता रहा है। इस संबंध में देश की न्याय व्यवस्था के यानी हमारी अदालतों के आदेश चाहे जो भी हों,मगर प्रशासन इस प्रकार की स्थिति से निपटने में हर बार विफल हो जाता है।
अब इन हालात पर व्यवस्था का जिम्मा संभालने में असफल रहने वालों को शर्म आनी चाहिए या लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने वाले अपनी मांगों को लेकर लाइफ लाइन पर आकर अपना पेट पीटने वालों को ? यह दोनों को समझने की आवश्यकता है। किसान को भूमि पुत्र,अन्नदाता और ना जाने कितने तरह के अलंकरण से सम्मान देकर संबोधित किया जाता है,मगर वे झट से भूल जाते हैं कि जहां आकर वे खड़े हो रहे हैं,वहां धरने प्रदर्शन करने का अधिकार नियम कायदे से उन्हें नहीं है। फिर चाहे वे अन्नदाता हों या कुछ भी। उन्हें सोचना होगा। पहले भी कई जगहों पर महीनों किसान आंदोलन से परेशानी झेल चुकी देश की जनता फिलहाल दांत पीस रही है। इनका यही कहना है कि अगर सड़कों पर उतर की ही मांगें पूरी होती हैं तो क्या वह भी अपने अधिकार के लिए नियम तोड़कर सड़कों पर उतरें ?