पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की जयंती के उपलक्ष्य में मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा कार्यक्रम संपन्न
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। राम प्रसाद बिस्मिल भारतीय क्रांतिकारी स्वाधीनता आंदोलन के एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जिनके नाम से ही क्रांति की मचलन अनुभव होने लगती है। जब वे स्वयं और उनके साथी क्रांति के माध्यम से देश को स्वाधीन करने के महान कार्य में लगे हुए थे तब पूरा देश अपने इन महान क्रांतिकारियों के पीछे खड़ा था। वास्तविक भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का नेतृत्व रामप्रसाद बिस्मिल और उन जैसे क्रांतिकारियों के हाथों में ही था। यह विचार पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की जयंती के उपलक्ष्य में मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मातृभूमि मिशन मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने व्यक्त किये। कार्यक्रम का शुभारम्भ पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के चित्र पर ब्रम्हचारियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन एवं पुष्पार्चन से हुआ। मातृभूमि सेवा मिशन के ब्रहचारियों ने बिस्मिल पर अनेक प्रेरक प्रसंग प्रस्तुत किये।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा भारत के इस महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल जी का जन्म 11 जून 18 97 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था । मात्र 30 वर्ष की अवस्था में 19 दिसंबर 1927 को उन्हें अत्याचारी ब्रिटिश सरकार के द्वारा फांसी दे दी गई थी। इस काल में ही उन्होंने ऐसे महान क्रांतिकारी कार्य किए जिससे उनका भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के क्रांतिकारी इतिहास में नाम अमर हो गया। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे। 30 वर्ष की आयु में वे मैनपुरी षड्यन्त्र व काकोरी-काण्ड जैसी कई घटनाओं में सम्मिलित होने के कारण भारतीय युवाओं के हृदय सम्राट बन चुके थे । बिस्मिल जी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य भी थे।पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और उनके क्रांतिकारी साथियों के आवाहन पर देश के अनेकों युवा क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हो गए थे।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा बिस्मिल जैसे क्रांतिकारी युवाओं ने मिलकर अपनी असाधारण प्रतिभा और अखण्ड पुरुषार्थ के बल पर हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ के नाम से देशव्यापी संगठन खड़ा किया। जिसमें एक से बढ़कर एक वीर योद्धा क्रांतिकारी युवा सम्मिलित हुआ। इन युवाओं को दिन-रात बस एक ही चिंता रहती थी कि ब्रिटिश एंपायर भारत से कब समाप्त हो और कब वे स्वाधीनता का उगता हुआ पहला सूरज देख पाएं ।रामप्रसाद बिस्मिल 9 अगस्त, 1925 को चंद्रशेखर आजाद सहित अपने 9 साथियों के साथ सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर पर शाहजहांपुर में सवार हुए। चेन खींचकर उसे रोका और खजाना लूटा गया। इस कार्य में उनके साथ अशफाक उल्ला खां, राजेन्द्र लाहिड़ी, चन्द्रशेखर आजाद, शचीन्द्रनाथ बख्शी, मन्मथनाथ गुप्त, मुकुन्दी लाल, केशव चक्रवर्ती, मुरारी शर्मा तथा बनवारी लाल शामिल थे। काकोरी कांड के बाद ब्रिटिश सरकार बेहद गंभीर हो गई और गहन छान-बीन करवाई गई। जांच के बाद यह सिद्ध हो गया कि यह क्रांतिकारियों की योजना थी। देश भर से 40 लोगों को गिरफ्तार किया गया। 26 सितम्बर, 1925 को बिस्मिल भी गिरफ्तार कर लिए गए।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा महीनों तक मुकद्दमा चला। अंतत: उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। फांसी से पहले इस वीर सपूत ने अपनी मां को पत्र लिखा। एक पत्र उन्होंने अपने सबसे प्रिय मित्र अशफाक उल्ला खां को भी लिखा। बिस्मिल को 19 दिसम्बर, 1927 को फांसी हुई। उससे पूर्व सुबह वह स्नान कर तैयार हुए। फांसी के फंदे के समीप पहुंचे। उनसे अंतिम इच्छा के विषय में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘ब्रिटिश साम्राज्य का सर्वनाश। उन्होंने भारत ‘माता की जय’ और ‘हिंदुस्तान जिंदाबाद’ का नारा लगाया और देश की स्वतंत्रता के लिए वीर रामप्रसाद बिस्मिल ने फांसी के फंदे को चूम लिया। उनके बलिदान का समाचार समूचे देश में फैल गया। फूलों की चादर ओड़े बिस्मिल के शव का अंतिम संस्कार किया गया। जब यह सूचना उनकी मां को मिली तो उन्होंने कहा, मैं अपने पुत्र की इस मृत्यु पर प्रसन्न हूं, दुखी नहीं। मैं श्री रामचन्द्र जैसा ही पुत्र चाहती थी।भारत राष्ट्र के लिए बिस्मिल सदैव अमर रहेंगे। कार्यक्रम में आश्रम के ब्रह्मचारी, सदस्य सहित अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहे। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रीय गीत वन्देमातरम से हुआ।