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संस्कृति का जीवन व्यवहार में परिलक्षित होना नितांत आवश्यक : अवनीश भटनागर
संस्कृति आत्म विश्वास पैदा कर सबके साथ जोड़ती है : डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी
दो दिवसीय संस्कृति बोध परियोजना अखिल भारतीय कार्यगोष्ठी का समापन
देशभर के सभी राज्यों से 80 विद्वानों ने की प्रतिभागिता, लघु भारत बना विद्या भारती परिसर
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान में दो दिवसीय संस्कृति बोध परियोजना अखिल भारतीय कार्यगोष्ठी का समापन आज संस्कृति भवन में हुआ। इस अवसर पर मंचासीन विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के संगठन मंत्री गोविद चंद्र महंत, महामंत्री अवनीश भटनागर, संस्कृति शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी, सचिव वासुदेव प्रजापति, सं.बो. परियोजना के विषय संयोजक दुर्ग सिंह राजपुरोहित सहित संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह, सहसचिव पंकज शर्मा भी उपस्थित रहे।
डॉ. रामेन्द्र सिंह ने देशभर के लगभग सभी राज्यों से आए क्षेत्र, प्रान्त संयोजक एवं सह-संयोजकों के रूप में 80 प्रतिभागियों का अभिवादन करते हुए कहा कि कुरुक्षेत्र गीता की प्राकट्यस्थली है। कुरुक्षेत्र धर्म और ज्ञान की प्रेरणा भूमि है। हमें धर्म पर चलने का मार्ग सिखाने की भूमि है। कुरुक्षेत्र जाउंगा और वहां निवास करुंगा, ऐसा संकल्प मात्र से ही पुण्य प्राप्त होता है। इसलिए देशभर से आए विद्वानों को कुरुक्षेत्र की भूमि पर आकर यह कार्य आगे बढ़ाने का जो सौभाग्य प्राप्त हुआ है, उसके लिए उन्होंने सभी का स्वागत किया। उन्होंने संस्कृति ज्ञान परीक्षा की संपूर्ण प्रक्रियाओं को बारीकी से समझा कर आवश्यक सुझाव भी लिए। सं.बो.परियोजना के विषय संयोजक दुर्ग सिंह राजपुरोहित ने अतिथि परिचय कराते हुए सभी प्रतिभागियों का परिचय लिया एवं प्रत्येक सत्र में संस्कृति बोध के व्याप को बढ़ाने सम्बन्धी क्षेत्रों से आए प्रतिनिधियों को निर्देश दिए एवं लेकर आगामी कार्य योजना की जानकारी ली।
विद्या भारती के संगठन मंत्री गोविंद चंद्र महंत ने कहा कि संस्कृति बोध परियोजना को विद्यालय तक सीमित न रखकर समाजव्यापी बनाना है। भारतीय संस्कृति विश्व के कल्याण की कामना करती है। नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति की कम जानकारी है। जीवन व्यवहार में संस्कृति नहीं है, अतः आज संस्कारों की भी अवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जो किसी भी कार्य को आत्मीयतापूर्ण करते हैं तो निश्चित रूप से सफलता मिलती है। समाज और देश की आवश्यकता को समझते हुए इस कार्य को कितना आगे ले जा सकते हैं, इसके संकल्प की आवश्यकता है। हमारा कार्य केवल विद्यालय चलाना नहीं अपितु समाज को जगाना भी है। समाज बोध, संस्कृति बोध, अध्यात्म बोध और देश बोध सभी के लिए आवश्यक है।
विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के महामंत्री अवनीश भटनागर ने कहा कि ज्ञान सार्वभौमिक है परन्तु शिक्षा सदैव राष्ट्रीय होती है। शिक्षा के अंदर राष्ट्रीयता का भाव वहां के लोगों के विचार के आधार पर, संस्कृति के आधार पर, जीवन दृष्टि के आधार पर तय होता है। राष्ट्र का विचार ही विद्या भारती का विचार है। राष्ट्रीयता के इस भाव को विद्या भारती शिक्षा के माध्यम से समाज में ले जाने का प्रयास पिछले लगभग 70 वर्षों से कर रही है। उन्होंने कहा कि संस्कृति बोध परियोजना केवल परीक्षा, कार्यक्रम, मंच प्रदर्शन तक सीमित न रह जाए अपितु संस्कृति ज्ञान हो और फिर वही व्यवहार में भी परिलक्षित हो। संस्कृति जीवन व्यवहार में भी जुड़े। संस्कृति स्वभाव में आए, संस्कृति के प्रति गौरव का भाव, यह स्वभाव में आए।
संस्थान के अध्यक्ष डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी ने कहा कि स्मृति शब्द ज्ञान के निकट इतना नहीं जितना बोध के निकट है। हम सब एक प्रकार से संस्कृति प्रचारक हैं। भारतीय संस्कृति क्या है, इसे दूसरे तक पहुंचाने का काम हमारे पास है। संस्कृति का बोध अपने अंदर ले आएं तो ही हम दूसरे को संस्कृति का बोध पढ़ाने के लिए, दीप से दीप जलाने के लिए योग्य भी होंगे और हमारे भीतर आगे बढ़ने की क्षमता होगी। ज्ञान तभी पूरा होता है जब वह बोध हो जाए, बोध का अर्थ विनम्रता आ जाए, अहंकार का सर्वथा अभाव हो जाए। उन्होंने कहा कि संस्कृति आत्म विश्वास पैदा करती है, सबके साथ जोड़ती है, ऐसा अदम्य साहस देती है जिससे शंकाओं का स्वतः ही समाधान हो जाता है। कार्यगोष्ठी में उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, केरल, झारखंड, उड़ीसा, बंगाल, तेलंगाना, असम, मध्य प्रदेश, जम्मू कश्मीर, छत्तीसगढ़, बिहार, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, सहित अन्य राज्यों के प्रतिभागियों ने भाग लिया। हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा-भाषी प्रतिभागियों के इतर असमिया, तमिल, तेलगु, गुजराती, कन्नड़, मलयालम सहित अन्य भाषाएं बोलने वाले विद्वानों के आगमन से विद्या भारती परिसर ने लघु भारत का लिया।