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वर्धन वंश के शासनकाल में उत्तर भारत की राजधानी रह चुकी है थानेसर, अब दिलाई जाएगी सांस्कृतिक राजधानी के रूप में पहचानः सिंघल
केडीबी कार्यालय में पदभार संभालने के अवसर पर वेदपाठी ब्राह्मणों ने किया मंत्रोच्चारण
स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने गीता के तीन श्लोकों का उच्चारण करने के बाद कहा मदन मोहन छाबड़ा की तरह काम करके पद की शोभा बढ़ाएं उपेंद्र
उपेंद्र सिंघल ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल एवं गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज का आभार जताया
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र।हरियाणा के पांच जिले कुरुक्षेत्र,करनाल,कैथल,पानीपत और जींद में महाभारतकालीन 48 कोस परिधि में स्थित तीर्थों का जिम्मा संभाल रहे कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड (केडीबी) के तीसरे मानद सचिव उपेंद्र सिंघल ने गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद का आशीर्वाद लेकर बुधवार को कार्यभार संभाला।पदभार ग्रहण करने अवसर पर गीता मनीषी ने गीता के श्लोक और कर्म का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि जिस तरह से पांच वर्षों तक केडीबी के मानद सचिव पद पर रहते हुए मदन मोहन छाबड़ा ने अपने कार्यों से पद की शोभा बढ़ाई,उसी तरह उपेंद्र सिंघल भी कार्य करेंगे। उन्होंने कहा कि पद की शोभा इस पदभार संभालने वाले व्यक्ति के कार्यों से बढ़ती है।परमपिता परमात्मा ने कार्य करने का जो अवसर दिया है,उसे उपेंद्र सिंघल बाखूबी निभाएंगे।
इस अवसर पर वेदपाठी ब्राह्मणों के मंत्रोच्चारण के बीच गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने उपेंद्र सिंघल का तिलक कर उन्हें गीता भेंट की और आशीर्वाद दिया। इसके पश्चात उपेंद्र सिंघल ने गीता ज्ञान संस्थानम् में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम और श्री ब्राह्मण एवं तीर्थोद्धार सभा द्वारा संचालित कुरुक्षेत्र संस्कृत वेदशाला के यज्ञोपवीत संस्कार कार्यक्रम में शिरकत की। इस दौरान केडीबी के पांच साल मानद सचिव रहे मदन मोहन छाबड़ा, हरियाणा चैंबर आफ कामर्स के प्रदेश उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंघल,केडीबी के पूर्व सदस्य विजय नरुला,राजेश शांडिल्य के अलावा केडीबी स्टाफ की उपस्थिति रही।
इस मौके पर उपेंद्र सिंघल ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल और स्वामी ज्ञानानंद महाराज का आभार जताते हुए बताया कि थानेसर वर्धन वंश के शासनकाल में स्थाणीश्वर के नाम से प्रख्यात था और प्राचीन उत्तर भारत की राजधानी रहा है और थानेसर प्राचीन काल में भारत के 16 जनपदों में से एक था। उन्होंने कहा कि सरकार का लक्ष्य कुरुक्षेत्र के प्राचीन गौरव और महत्व को कायम रखने के साथ धर्मनगरी की एक अलग पहचान बनाने की।