Friday, November 22, 2024
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यहां वनवास के समय में पांडवों की शरणस्थली बना था काम्यकेश्वर तीर्थ

by Newz Dex
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ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी की प्रेरणा से काम्यकेश्वर तीर्थ पर शुक्ला सप्तमी मेले पर भंडारे का आयोजन

श्रीजयराम विद्यापीठ द्वारा की जा रही है श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्था

न्यूज डेक्स संवाददाता

कुरुक्षेत्र। जयराम संस्थाओं के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी की प्रेरणा से तीर्थों की संगमस्थली एवं धर्मनगरी कुरुक्षेत्र के गांव कमोदा में स्थित श्री काम्यकेश्वर महादेव मंदिर एवं तीर्थ पर रविवारीय शुक्ला सप्तमी मेला 25 जून को आयोजित होगा। जयराम संस्थाओं के रोहित कौशिक ने बताया कि शुक्ला सप्तमी पर परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी की प्रेरणा से दूर दूर से आने वाले श्रद्धालुओं एवं ग्रामीणों के लिए भंडारे की विशेष व्यवस्था की गई है।
सेवक रोहित कौशिक ने काम्यकेश्वर तीर्थ की महत्ता के बारे में बताया कि ऐसी मान्यता है कि प्राचीन तीर्थ में शुक्ला सप्तमी के शुभ अवसर पर स्नान करने से मोक्ष प्राप्त होती है। ग्रामीणों एवं सेवकों द्वारा मेले की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं तथा तीर्थ में स्वच्छ जल भरा गया है। महर्षि पुलस्त्य जी और महर्षि लोमहर्षण जी ने वामन पुराण में काम्यक वन तीर्थ की उत्पत्ति का वर्णन करते हुए बताया कि इस तीर्थ की उत्पत्ति महाभारत काल से पूर्व की है।

कौशिक ने बताया कि मां सरस्वती ने साक्षात कुंज रूप में प्रकट होकर दर्शन दिए और पश्चिम-वाहनी होकर बहने लगी। इससे स्पष्ट होता है कि काम्यकेश्वर तीर्थ एवं मंदिर की उत्पति महाभारत काल से पूर्व की है। वामन पुराण के अध्याय 2 के 34 वें श्लोक के काम्यक वन तीर्थ प्रसंग में स्पष्ट लिखा है कि रविवार को सूर्य भगवान पूषा नाम से साक्षात रूप से विद्यमान रहते हैं। इसलिए वनवास के समय पांडवों ने इस धरा को तपस्या के लिए अपनी शरणस्थली बनाया। द्यूत-क्रीड़ा में कौरवों से हारकर अपने कुल पुरोहित के साथ 10 हजार ब्राह्मणों के साथ यहीं रहते थे।

जयराम विद्यापीठ के रोहित कौशिक एवं सेवक सुमिंद्र शास्त्री ने बताया कि मंदिर में 25 जून को रविवारीय शुक्ला सप्तमी मेला लगेगा। उनके अनुसार इसी पावन धरा पर पांडवों को सांत्वना एवं धर्मोपदेश देने हेतु महर्षि वेदव्यास जी, महर्षि लोमहर्षण जी, नीतिवेता विदुर जी, देवर्षि नारद जी, बृहदश्व जी, संजय एवं महर्षि मार्कंडेय जी पधारे थे। इतना ही नहीं द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण जी अपनी धर्मपत्नी सत्यभामा के साथ पांडवों को सांत्वना देने पहुंचे थे। पांडवों को दुर्वासा ऋषि के श्राप से बचाने के लिए और तीसरी बार जयद्रथ द्वारा द्रोपदी हरण के बाद सांत्वना देने के लिए भी भगवान श्रीकृष्ण काम्यकेश्वर तीर्थ पर पधारे थे। पांडवों के वंशज सोमवती अमावस्या, फल्गू तीर्थ के समान शुक्ला सप्तमी का इंतजार करते रहते थे।

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