न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र,17 नवंबर। कॉस्मिक एस्ट्रो के डायरेक्टर व श्री दुर्गा देवी मन्दिर पिपली (कुरुक्षेत्र ) के अध्यक्ष डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि छठ का पर्व हर वर्ष कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को बहुत ही धूमधाम से पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है। इस वर्ष छठ पर्व की पूजा 20 नवंबर दिन शुक्रवार को होगी। यह पर्व बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह व्रत संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए किया जाता है। छठ पर्व षष्ठी तिथि से दो दिन पहले अर्थात चतुर्थी से नहाय-खाय से आरंभ हो जाता है और इसका समापन सप्तमी तिथि को पारण करके किया जाता है। कोरोना अधिनियमों का अवश्य पालना करें I
छठ पर्व पूरे चार दिनों तक चलता है। इस पर्व में मुख्य सूर्य देव को अर्घ्य देने का सबसे ज्यादा महत्व माना गया है।छठ पूजा की तिथियां, अर्घ्य का समय और पारण समय इस प्रकार से है।
- पहला दिन: नहाय-खाय
छठ पूजा का प्रारंभ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तिथि से होती है। यह छठ पूजा का पहला दिन होता है, इस दिन नहाय खाय होता है। इस वर्ष नहाय-खाय 18 नवंबर दिन बुधवार को है। इस दिन सूर्योदय सुबह 6:46 बजे और सूर्योस्त शाम को 5:26 पर होगा।
- दूसरा दिन: लोहंडा और खरना
लोहंडा और खरना छठ पूजा का दूसरा दिन होता है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है। इस वर्ष लोहंडा और खरना 19 नवंबर दिन गुरुवार को है। इस दिन सूर्योदय सुबह 6:47 बजे पर होगा और सूर्योस्त शाम को 5:26 पर होगा।
- तीसरा दिन: छठ पूजा, सन्ध्या अर्घ्य
छठ पूजा का मुख्य दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि होती है। इस दिन ही छठ पूजा होती है। इस दिन शाम को सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस वर्ष छठ पूजा 20 नवंबर को है। इस दिन सूर्यादय 6:48 बजे पर होगा और सूर्योस्त 5:26 बजे होना है। छठ पूजा के लिए षष्ठी तिथि का प्रारम्भ 19 नवबंर को रात 9:59 बजे से हो रहा है, जो 20 नवंबर को रात 9:29 बजे तक है।
- चौथा दिन: सूर्योदय अर्घ्य, पारण का दिन
छठ पूजा का अंतिम दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि होती है। इस दिन सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। उसके बाद पारण कर व्रत को पूरा किया जाता है। इस वर्ष छठ पूजा का सूर्योदय अर्घ्य तथा पारण 21 नवंबर को होगा। इस दिन सूर्योदय सुबह 6:49 बजे तथा सूर्योस्त शाम को 5:25 बजे होगा।
पौराणिक महत्त्व :
- राजा प्रियवंद ने पुत्र के प्राण रक्षा के लिए की थी छठ पूजा :
एक पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियवंद नि:संतान थे, उनको इसकी पीड़ा थी। महर्षि कश्यप ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर राजा प्रियवंद की पत्नी मालिनी को खाने के लिए दी गई। यज्ञ के खीर के सेवन से रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मृत पैदा हुआ था। उसी समय ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा प्रियवंद से कहा कि मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं इसलिए मेरा नाम षष्ठी भी है। तुम मेरी पूजा करो और लोगों में इसका प्रचार-प्रसार करो। माता षष्ठी के कहे अनुसार राजा प्रियवंद ने पुत्र की कामना से माता का व्रत विधि विधान से किया I उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी थी। इसके फल स्वरुप राजा प्रियवद को पुत्र प्राप्त हुआ।
- श्रीराम और सीता ने की थी सूर्य उपासना
पौराणिक कथा के अनुसार, लंका के राजा रावण का वध कर अयोध्या आने के बाद भगवान श्रीराम और माता सीता ने रामराज्य की स्थापना के लिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को उपवास रखा था और सूर्य देव की पूजा अर्चना की थी।
- द्रौपदी ने पांडवों के लिए रखा था छठ व्रत
पौराणिक कथाओं में द्रौपदी ने पांच पांडवों के बेहतर स्वास्थ्य और सुखी जीवन लिए छठ व्रत रखा था और सूर्य की उपासना की थी, जिसके परिणामस्वरुप पांडवों को उनको खोया राजपाट वापस मिल गया था। - दानवीर कर्ण ने शुरू की सूर्य पूजा
महाभारत के अनुसार दानवीर कर्ण सूर्य के पुत्र थे और प्रतिदिन सूर्य की उपासना करते थे। कथानुसार, सबसे पहले कर्ण ने ही सूर्य की उपासना शुरू की थी। वह प्रतिदिन स्नान के बाद नदी में जाकर सूर्य को अर्घ्य देते थे।