बाढ़ प्रभावित किसानों को 40 हजार प्रति एकड़ मुआवजा दे सरकार- कांग्रेस
मकानों, दुकानों व कारोबार को हुए नुकसान की भरपाई करे सरकार- कांग्रेस
प्राकृतिक आपदा के साथ सरकारी लापरवाहियों ने भी पैदा किए बाढ़ के हालात- हुड्डा
अवैध खनन, ड्रेनेज की सफाई ना होने व दादूपुर नलवी को बंद करने की वजह से डूबा उत्तर हरियाणा- हुड्डा
भविष्य में ऐसी आपदा की पुनरावृत्ति रोकने के लिए तात्कालिक व दीर्घकालिक उपाय करे सरकार – हुड्डा
प्रभावित लोगों के लिए खाने-पीने व मवेशियों के लिए चारे की व्यवस्था करे सरकार- उदयभान
आने वाले दिनों में बीमारियां फैलने की आशंका, अभी से अलर्ट रहे प्रशासन- उदयभान
न्यूज डेक्स संवाददाता
चंडीगढ़। बाढ़ प्रभावित किसानों को 40 हजार प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा मिलना चाहिए। साथ ही, सरकार को मकानों, दुकानों और कारोबार को हुए नुकसान की भरपाई भी करनी चाहिए। यह मांग उठाई है हरियाणा कांग्रेस ने। पूर्व मुख्यमंत्री व नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा और प्रदेश अध्यक्ष चौधरी उदयभान के नेतृत्व में कांग्रेस विधायकों व वरिष्ठ नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने आज राज्यपाल से मिलकर उन्हें ज्ञापन सौंपा। इसके बाद पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए हुड्डा ने बताया कि वो बाढ़ प्रभावित कई जिलों का दौरा करके आए हैं। ज्यादा बारिश की वजह से आई आपदा के बीच बीजेपी-जेजेपी सरकार की लापरवाहियों ने पूरे उत्तर हरियाणा में बाढ़ के हालात पैदा करने में अहम भूमिका अदा की है।
उन्होंने कहा कि आज प्रदेश की जनता तकलीफ में है। ऐसे में विपक्ष आंख बंद करके नहीं बैठ सकता। सरकार की कमियों और जनता की परेशानियों को उजागर करना विपक्ष की जिम्मेदारी होती है। कांग्रेस निश्चित तौर पर अपनी जिम्मेदारी को निभाएगी। अगर सरकार विपक्ष द्वारा उठाई गई मांगों पर गौर करेगी तो इससे जनता का हित होगा। कई गांव के सरपंचों ने उन्हें बताया कि गांववालों ने सरकार से बार-बार ड्रेन्स की सफाई करवाने की मांग की थी। लेकिन, पिछले लगभग 2 साल से सरकार इस मांग की अनदेखी करती आ रही है। इसी तरह शहरों में सीवरेज की सफाई नहीं की गई। इसका खामियाजा पूरे इलाके की जनता भुगत रही है।
उन्होंने कहा कि अब तक प्रशासन के उदासीन रवैये ने उनकी पीड़ा को बढ़ा दिया है। पीड़ित लोगों को अभी तक किसी भी प्रकार की कोई मदद नहीं दी गयी है। राज्यपाल को सौंपे ज्ञापन में उन्होंने मांग करी कि प्रभावित लोगों को पर्याप्त मुआवजा प्रदान करने के लिए बाढ़ से हुए फसल संपत्ति के नुकसान का तत्काल सर्वेक्षण कराया जाए और 40 हजार प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा दिया जाए। जो लोग विस्थापित हुए हैं या उनके आवास क्षतिग्रस्त हो गए हैं, उनके पुनर्वास के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं। व्यापारियों, दुकानदारों के नुकसान का सर्वेक्षण कर उचित मुआवजा दिया जाए। जरूरतमंद लोगों को खाद्य सामग्री और उनके मवेशियों के लिए चारे का वितरण किया जाए। बाढ़ के पानी के कारण भंयकर बिमारियां फैलने का भी डर है इसलिए प्रशासन इसके लिए प्रयाप्त मात्रा में दवा और चिकित्सकों की टीम भेजने का प्रबंधन करे। इसके अलावा भविष्य में ऐसी आपदा की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए तात्कालिक और दीर्घकालिक उपाय किए जाएं।
हुड्डा ने कहा कि ‘दादूपुर-नलवी’ उत्तर हरियाणा की सबसे बड़ी वाटर रिचार्ज परियोजना थी, जो यमुनानगर, अंबाला से लेकर कुरुक्षेत्र तक को बाढ़ से बचाने का काम भी करती। लेकिन, बीजेपी ने सत्ता में आते ही इस परियोजना को डिनोटिफाई कर दिया। ऐसा करके सरकार ने आपदा के वक्त इलाके के लिए लाइफलाइन साबित होने वाली योजना को छीनने वाला अन्याय किया।
इसी तरह बाढ़ के हालात पैदा करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका सरकार के संरक्षण में चल रहे अवैध खनन ने भी निभाई। एनजीटी से लेकर सीएजी की रिपोर्ट में कई बार अवैध खनन का खुलासा हो चुका है। डाडम से लेकर यमुना तक में माफिया ने तमाम नियमों को ताक पर रखकर खनन किया है। यहां तक कि माफिया ने नदियों के बहाव की दिशा ही बदल दी। इसी वजह से नदियों का पानी रिहायशी इलाकों की तरफ आने लगा।
एक बड़ी लापरवाही यह रही कि सरकार द्वारा नदियों के तटबंध को भी मजबूत करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि फ्लड कंट्रोल बोर्ड की बैठक में क्या फैसले लिए गए? क्या उन फैसलों को अमलीजामा पहनाया गया? बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में लोगों से बात करेंगे तो इसका जवाब ना में मिलेगा। भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बताया कि राज्यपाल को सौंपा ज्ञापन में कांग्रेस की तरफ से राहत कार्यों के लिए सरकार व प्रशासन की हरसंभव मदद की पेशकश भी की गई है। साथ ही अपील की गई है कि लोगों की जानमाल की रक्षा के लिए एनडीआरएफ और आर्मी की हरसंभव मदद ली जाए।
चौधरी उदयभान ने बताया कि उन्होंने करनाल से लेकर यमुनानगर तक कई इलाकों का दौरा किया। बाढ़ की वजह से भयावह हालात बन चुके हैं। कई गांव तो टापू में तब्दील हो चुके हैं, जिन तक पहुंचना बेहद मुश्किल हो रहा है। ऐसे मौके पर सरकार और प्रशासन को संवेदनशील तरीके से कार्य करना चाहिए था। लेकिन सरकार इसके विपरीत संवेदनहीनता का परिचय दे रही है। लोगों ने बताया कि वह कई दिनों से जलभराव का सामना कर रहे हैं। लेकिन सरकार का कोई नुमाइंदा उनकी सुध लेने के लिए नहीं आया।
लोगों के पास खाने-पीने के सामान से लेकर पशुओं के लिए चारा तक नहीं बचा। इंसानी जीवन से लेकर मवेशियों की जान सब खतरे में है। किसानों की खेती, खेतों में लगे बोरवेल व मोटर कंडम हो चुके हैं। ऐसे में जरूरी है कि सरकार फसलों के मुआवजे के साथ बोरवेल व मोटर के लिए भी किसानों को अतिरिक्त मुआवजा दे। दुकानदार व कारोबारियों को भी लाखों-करोड़ों रुपए के नुकसान उठानाने पड़े हैं। उनके लिए भी सरकार द्वारा तुरंत मुआवजे का ऐलान किया जाना चाहिए। साथ ही सरकार ने बाढ़ की वजह से मरने वाले 16 लोगों के परिवारों को 4-4 लाख मुआवजा देने का ऐलान किया है, जो कि नाकाफी है। सरकार को इसे बढ़ाकर कम से कम 20 लाख रुपये करना चाहिए।
कांग्रेस ने जमीनी स्तर पर लोगों को खाने-पीने का सामान पहुंचाने में लगे समाजसेवियों व लंगर चला रही संगत का आभार व्यक्त किया और उनकी सराहना की। चौधरी उदयभान ने बताया कि कांग्रेस की तरफ से इलाके के नेता व कार्यकर्ताओं को भी लोगों की मदद के लिए सक्रिय कर दिया गया है। वह अपने स्तर पर हरसंभव मदद पहुंचाने में लगे हुए हैं।
एसवाईएल पर पंजाब के मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए बयान का जवाब देते हुए भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि एसवाईएल हरियाणा का अधिकार है। अगर पंजाब हरियाणा को एसवाईएल का पानी देता तो आज उसे भी बाढ़ का सामना नहीं करना पड़ता। हरियाणा का बहुत बड़ा हिस्सा एसवाईएल के पानी से लाभान्वित होता और पंजाब को बाढ़ जैसी विपदा से राहत मिलती।
इस मौके पर वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर आंदोलनरत कलर्कों के मुद्दे पर बोलते हुए हुड्डा ने कहा कि कांग्रेस सरकार द्वारा यह फैसला 2014 में लागू किया जा चुका था। लेकिन बीजेपी ने सत्ता में आते ही इस फैसले को रद्द कर दिया। जबकि बीजेपी ने 2014 और जेजेपी ने 2019 के अपने मेनिफेस्टो में कर्मचारियों को पंजाब के समान वेतनमान देने का ऐलान किया था। आज प्रदेश में दोनों दलों की सरकार है। लेकिन दोनों ही दल कर्मचारियों की मांगों की अनदेखी कर रहे हैं, जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा सीएजी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि हरियाणा की जनता से बिजली के अतिरिक्त रेट की वसूली हो रही है। पीपीए (पावर परचेज एग्रिमेंट) के मुताबिक राज्य सरकार की वेरिएबल कोस्ट 4.90 रुपये से लेकर 5.00 रुपये यूनिट के हिसाब से बिजली खरीद रही है। जबकि राज्य की ईकाइयां से वैरिएबल कोस्ट 3.25 रुपये से लेकर 3.88 रुपये प्रति यूनिट के रेट में बिजली उत्पादन कर रही हैं। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि कांग्रेस द्वारा लगाए गए पावर प्लांट के जरिए हरियाणा खुद बिजली उत्पादन में सक्षम है तो सरकार बाहर से महंगी बिजली क्यों खरीद रही है।दूसरी तरफ सरकार बिजली ट्रांसमिशन कोस्ट भी पंजाब और राजस्थान से ज्यादा आ रही है ।
मौजूदा सरकार द्वारा 9 साल में प्रदेश में एक भी पावर प्लांट स्थापित नहीं किया। लेकिन दूर्भाग्यपूर्ण है कि ये सरकार पहले से स्थापित प्लांट्स की भी पूरी क्षमता को इस्तेमाल नहीं कर रही। हुड्डा ने बताया कि हरियाणा में बिजली की ट्रांसमिशन कोस्ट 36 पैसे प्रति किलोवाट है, जो कि पड़ोसी राज्यों से ज्यादा है। पंजाब में यह कीमत 22 पैसे और राजस्थान में 29 पैसे है। जबकि सीएजी की ही रिपोर्ट बताती है कि हरियाणा वित्तिय तौर पर कर्जे व घाटे से जूझ रहे देश के टॉप 3 राज्यों में शुमार है।
12वीं फाइनेंस कमीशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि तीन राज्यों केरला, पंजाब और पश्चिमी बंगाल आर्थिक रुप से कमजोर हैं। अब यह आंकड़ा 7 राज्यों पर पहुंच गया है। इनमें पंजाब और केरला के बाद हरियाणा का स्थान है। 2014-15 से 2022-23 के दौरान राज्य की वित्तीय सेहत गड़बड़ा गई। क्योंकि राज्य की देनदारियों की वृद्धि 18 प्रतिशत थी, जबकि राज्य सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि वर्तमान मूल्य पर 14 प्रतिशत रही। यह राज्य के कर्ज में डूबने के संकेत हैं। जबकि 2004-05 से 2013-14 के दौरान स्थिति विपरीत थी। जीडीपी की तुलना में देनदारी वृद्धि 14 प्रतिशत और विकास दर 18 प्रतिशत थी।
दूसरी तरफ केंद्र से मिले पूंजीगत व्यय को पूरा खर्च करने में भी अन्य राज्यों में सबसे निचले पायदान पर है। हरियाणा सरकार ढांचागत निर्माण के लिए आधा पैसा भी ना खर्च पाईं और हरियाणा पर कर्जा बढ़ता गया। देश में हरियाणा स्ट्रेस्ड स्टेट्स में शामिल हो गया है।
हरियाणा रोडवेज की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए हुड्डा ने कहा कि 2015-16 में रोडवेज में बसों की औसत संख्या 4210 थी। जो घटकर 2019-20 में 3118 रह गई है।
फसल बीमा योजना का जिक्र करते हुए हुड्डा ने बताया कि 2016 से 2021 के बीच के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। बीमा प्रिमियम की कुल रकम का महज 12 प्रतिशत ही किसानों को मुआवजे के रूप में प्राप्त हुआ है। जबकि 88 प्रतिशत रकम कंपनियों की तिजोरी में मुनाफे के रूप में जमा हो गई है।