Friday, November 22, 2024
Home haryana शहीद चंद्रशेखर आजाद एक ऐसे युवा क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अपने देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपनी जान दे दी – डा. श्रीप्रकाश मिश्र

शहीद चंद्रशेखर आजाद एक ऐसे युवा क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अपने देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपनी जान दे दी – डा. श्रीप्रकाश मिश्र

by Newz Dex
0 comment

शहीद चंद्रशेखर आजाद एवं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की जन्म जयंती के उपलक्ष्य में मातृभूमि सेवा मिशन के तत्वावधान में स्वराष्ट्र संवाद कार्यक्रम संपन्न

न्यूज़ डेक्स संवाददाता

कुरुक्षेत्र। चन्द्रशेखर ‘आजाद भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी थे। वे शहीद राम प्रसाद बिस्मिल व शहीद भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे।भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आजाद कराने के लिए देश के अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जिंदगी मातृभूमि के लिए कुर्बान कर दी थी। उन्हीं महान स्वतंत्रता सेनानियों में एक नाम चंद्रशेखर का बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। यह विचार शहीद चंद्रशेखर आजाद एवं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की जन्म जयंती के उपलक्ष्य में मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा आयोजित स्वराष्ट्र संवाद कार्यक्रम में मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने व्यक्त किये। कार्यक्रम का शुभारम्भ मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यर्थियों ने भारतमाता, शहीद चंद्रशेखर आजाद एवं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के चित्र पर वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ हुआ। डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के भावरा में हुआ था. 1921 में ही चंद्रशेखर आज़ाद सुचारू रूप से आज़ादी की लड़ाई में समर्पित हो गये थे।

उन्होंने ठान लिया था कि वे कभी भी अंग्रेजों के हाथ नहीं आएंगे और अंग्रेजों की गुलामी की हुकूमत से खुद को आखिरी सांस तक आजाद रखा। उन्होंने बेहद कम उम्र में ही अपनी जिंदगी को देश के नाम कर दिया था। डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा चंद्रशेखर का पूरा बचपन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र झाबरा में ही बीता था। यहां पर उन्होंने बचपन से ही निशानेबाजी और धनुर्विद्या सिखी। लगातार मौका मिलते ही वो इसकी अभ्यास करने लगे, जिसके बाद यह धीरे-धीरे उनका शौक बन गया। पढ़ाई से ज्यादा चंद्रशेखर का मन खेल-कूद और अन्य गतिविधियों में लगता था। जलियांवाला बाग कांड के दौरान आजाद बनारस में पढ़ाई कर रहे थे। इस घटना ने बचपन में ही चंद्रशेखर को अंदर से झकझोर दिया था। उसी दौरान उन्होंने ठान ली थी कि वह ईंट का जवाब पत्थर से देंगे। इसके बाद उन्होंने यह तय कर लिया कि वह भी आजादी के आंदोलन में उतरेंगे और फिर महात्मा गांधी के आंदोलन से जुड़ गए। डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से जुड़ने के बाद उनकी गिरफ्तारी हुई। उस दौरान जब उन्हें जज के सामने पेश किया गया, तो उनके जवाब ने सबके होश उड़ा दिए थे। जब उनसे उनका नाम पूछा गया, तो उन्होंने अपना नाम आजाद और अपने पिता का नाम स्वतंत्रता बताया। इस बात से जज काफी नाराज हो गया और चंद्रशेखर को 15 कोड़े मारने की सजा सुनाई।जलियांवाला बाग कांड के बाद चंद्रशेखर को समझ आ चुका था कि अंग्रेजी हुकूमत से आजादी बात से नहीं, बल्कि बंदूक से मिलेगी। शुरुआत में गांधी के अहिंसात्मक गतिविधियों में शामिल हुए, लेकिन चौरा-चौरी कांड के बाद जब आंदोलन वापस ले लिया गया तो, आजाद का कांग्रेस से मोहभंग हो गया और फिर उन्होंने बनारस का रुख किया।

डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा अंग्रेज सरकार ने राजगुरु, भगतसिंह और सुखदेव की सजा को किसी तरह कम या उम्रकैद में बदलने के लिए वे इलाहाबाद पहुंचे। उस दौरान अंग्रेजी हुकूमत को इसकी भनक लग गई कि आजाद अल्फ्रेड पार्क में छुपे हैं। उस पार्क को हजारों पुलिस वालों ने घेर लिया और उन्हें आत्मसमर्पण के लिए कहा, लेकिन उस दौरान वह अंग्रेजों से अकेले लोहा लेने लगे।इस लड़ाई में 20 मिनट तक अकेले अंग्रेजों का सामना करने के दौरान वह बुरी तरह से घायल हो गए। आजाद ने लड़ते हुए शहीद हो जाना ठीक समझा। इसके बाद आजाद ने अपनी बंदूक से ही अपनी जान ले ली और वाकई में आखिरी सांस तक वह अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे। डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा तिलक ‘हिंदू राष्ट्र’ के विचार को प्रस्तुत किया और हिंदुओं को संगठित करने के लिए गणेश उत्सव एवं शिवाजी उत्सव को प्रारंभ किया। परंतु शीघ्र ही उन्होंने हिंदू मुस्लिम एकता को आधार बनाया और समस्त भारतीयों के लिए स्वराज्य की मांग की। इसलिए तिलक ने समस्त भारतीयों के आर्थिक हितों की एकता एक राष्ट्रभाषा हिंदी, क्षेत्रीय भाषाओं के लिए देवनागरी को सामान्य लिपि बनाने का विचार प्रस्तुत किया। तिलक ने राष्ट्रवाद को राष्ट्रधर्म कहा।तिलक का राष्ट्रवाद बहु-आयामी था। यह एक साथ ही धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक था। राष्ट्रवाद द्वारा भारत के संपूर्ण जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन चाहते थे। तिलक प्रथम राजनेता थे, जिन्होंने राष्ट्रवाद को उसकी संपूर्णता में प्रकट किया। अतः तिलक द्वारा प्रस्तुत राष्ट्रवाद ‘समग्र राष्ट्रवाद’ कहलाता है।डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा तिलक के स्वराज्य संबंधी चिंतन पर ‘वैदिक स्वराज्य’ एवं ‘शिवाजी के हिंदू पद पादशाही’ का प्रभाव दिखाई देता है। तिलक का उद्देश्य भारत में ऐसे स्वराज्य की स्थापना करना था जो भारत को पुनः उसका गौरव दिलाने में समर्थ हो।बाल गंगाधर तिलक के स्वराज्य के, आध्यात्मिक एवं राजनीतिक दो स्वरूप स्वीकार किए हैं‌। तिलक मानते थे कि अंग्रेजों के समान सभी देशों की जनता का यह प्राकृतिक अधिकार है कि वह अपने-अपने देशों पर शासन स्थापित करें। मातृभूमि शिक्ष मंदिर के बच्चों ने दोनो महापुरुषों पर प्रेरक प्रसंग सुनाये। सर्वश्रेष्ठ प्रेरक प्रसंग के लिए विद्यार्थी मंदीप को स्मृति चिन्ह देकर पुरस्कृत किया गया। कार्यक्रम का समापन वन्देमातरम से हुआ। कार्यक्रम में आश्रम के विद्यार्थी, सदस्य एवं गणमान्य जन उपस्थित रहे।

You may also like

Leave a Comment

NewZdex is an online platform to read new , National and international news will be avavible at news portal

Edtior's Picks

Latest Articles

Are you sure want to unlock this post?
Unlock left : 0
Are you sure want to cancel subscription?
-
00:00
00:00
Update Required Flash plugin
-
00:00
00:00