हरियाणवी नाट्य उत्सव में हुआ नाटक चरणदास चोर व मां का मंचन
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। आजादी का अमृतमहोत्सव के अंतर्गत कला एवं सांस्कृतिक कार्य विभाग, हरियाणा द्वारा हरियाणा कला परिषद के सहयोग से आयोजित हरियाणवी नाट्य उत्सव 2023 के पहले चरण का भव्य समापन हुआ। इस अवसर पर हरियाणा पशुधन विकास बोर्ड के अध्यक्ष धर्मबीर मिर्जापुर मुख्यअतिथि के रुप में पहुंचे, वहीं विशिष्ट अतिथि जजपा युवा जिलाध्यक्ष एवं शुगरकेन बोर्ड के सदस्य जसविंद्र सिंह खैरा उपस्थित रहे। कार्यक्रम से पूर्व हरियाणा कला परिषद के निदेशक संजय भसीन एवं विभाग की कला एवं संस्कृति अधिकारी रंगमंच तानिया जी.एस. चौहान ने पुष्पगुच्छ देकर अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्जवलन के साथ की गई। मंच संचालन कला परिषद के मीडिया प्रभारी विकास शर्मा द्वारा किया गया।
नाट्य उत्सव में पहला नाटक हबीब तनवीर की लेखनी से सजा व सिरसा से कर्ण लड्डा के निर्देशन और हरियाणवी में अनुवादिन चरणदास चोर व दूसरा नाटक ऋषिपाल के निर्देशन में मां मंचित हुआ। चरणदास चोर नाटक लोक शैली में प्रस्तुत किया गया। नाटक की शुरुआत चोरी के सीन से होती है। एक सोने के थाल के चक्कर में पुलिस चरणदास को पकड़ना चाहती है, लेकिन बेहद चालाकी से चरणदास बचता रहता है। पुलिस से बचते बचते चरणदास एक बाबा की कुटिया में पहुंचता है, जहां बाबा उसे झूठ न बोलने की नसीहत देते है। इसके अलावा बाबा उसे पुलिस से बचाने के लिए तीन वचन भी ले लेते है, जिसमें बाबा कहते हैं कि चरणदास कभी भी सोने की थाली में भोजन नहीं करेगा, किसी रानी से शादी नहीं करेगा और किसी राज्य का राजा नहीं बनेगा। वचन देकर चरणदास वहां से जाकर दूसरी जगह चोरी करता रहता है और हर बार बच जाता है। लेकिन एक दिन वह रानी के महल में सोने की मुहरें चोरी करने के आरोप में पकड़ा जाता है। रानी के सामने पेश किए जाने पर वो चोरी की बात कबूल लेता है और बताता है कि उसने केवल पांच मुहरे चोरी की है, बाकी मुहरे उनके मंत्री ने चुराई है। चरणदास के सत्य से रानी प्रभावित हो जाती हैं। रानी चरणदास के लिए सोने की थाली में खाना मंगवाती हैं पर वह खाने से मना कर देता है। रानी चरणदास से राजा बनने और शादी करने को कहती हैं। गुरु को दिए वचनों के कारण चरणदास रानी का विवाह का प्रस्ताव ठुकरा देता है। जिसके बाद रानी कहती हैं कि हमारे बीच जो भी बातचीत हुई उसे किसी से नहीं कहना। लेकिन सच बोलने के वचन के कारण चरणदास इस बात से भी इंकार कर देता है और रानी गुस्से में आकर उसे फांसी पर चढ़ाने का हुक्म दे देती है। इस तरह अपने वचनों पर अडिग रहने वाले चरणदास को इसकी सजा फांसी के तौर पर मिलती है। हास्य से भरे नाटक के मंचन के दौरान दर्शक खूब ठहाके लगाते नजर आए। कलाकारों की अदाकारी काबिलेतारीफ रही।
इसके बाद दूसरा नाटक मां मंचित हुआ। जिसमें आज की आधुनिकता के दौर में संयुक्त परिवार से एकल परिवार की ओर भागते युवाओं को आईना दिखाने का प्रयास किया गया। वृद्धाश्रम में शुरु हुए नाटक में दिखाया कि सभी बुजुर्ग अपने-अपने बच्चों की अनदेखी से परेशान होकर वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर हैं। तभी एक और महिला को उसका बेटा वहां छोड़ने आता है। लेकिन वृद्धाश्रम की संचालिका महिला के बेटे को आईना दिखाते हुए बदलने पर मजबूर कर देती है और उसके बेटे को एहसास होता है कि मां-बाप के साथ रहने का सुख क्या होता है। इस प्रकार बहुत ही मार्मिक ढंग से युवा पीढ़ी को समझाने का प्रयास कर गया नाटक मां। नाटक के अंत में सभी कलाकारों को प्रशस्ति पत्र प्रदान किये गये तथा अतिथियों को शॉल व स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर शहर के कलाप्रेमी उपस्थित रहे।