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यात्रा अनुभव
1929 के बाद भी पसीना छूटना अब भी है जारी, मैंने अनुभव किया वो लिख रहा हूं
कभी इच्छा तो नहीं हुई संसद भवन देखने,मगर हुसैनीवाला में जागृत हो गई
लाहौर की तो सिर्फ हैट थी,घटना दिल्ली में ब्रिटिश सेंट्रल असेंबली की
आपको टकटकी लगाने पर विवश कर सकती है वो जगह
यहां क्रांतिकारी भगत सिंह व बटूकेश्वर दत्त ने सेंट्रल असेंबली में फेंका था बम
वरिष्ठ पत्रकार राजेश शांडिल्य की फेसबुक वाल से
विधानसभा और संसद भवन जाकर इन्हें देखने की इच्छा कभी नहीं हुई थी।शायद कारण यही रहा होगा कि 23 वर्षों की पूर्णकालिक पत्रकारिता में 2022 तक भारत की संसद भवन और हरियाणा की विधानसभा भीतर जाकर नहीं देखी थी। हालांकि अलग माध्यमों से कई बार अवसर मिला था। अमर उजाला हरियाणा, स्टेट ब्यूरो चंडीगढ़ में नियुक्ति के दौरान पहली बार 2023 फरवरी और मार्च में विधानसभा सत्र को कवर करने ड्यूटी लगी थी। लिहाजा हरियाणा विधानसभा की कार्रवाई को कवर करने मैं मार्च में सत्र के आखिरी दिन तक गया।वो अलग बात है कि इससे पहले 2019 मैं ब्रिटिश पार्लियामैंट को लंदन यात्रा के दौरान देख चुका था। इसके बाद मुझे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र कहे जाने वाले भारत की संसद जाने का अवसर प्राप्त हुआ।
इच्छा यहां हुई थी जागृत
बताना चाहता हूं कि पिछले दिनों मैं हुसेनीवाला बार्डर पर गया था। यह वही जगह है जहां शहीद ए आजम भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु और क्रांतिकारी बटूकेश्वर दत्त के समाधि स्थल हैं।यहां संग्रहालय में रखी इन महापुरुषों के जीवन से जुड़ी चुनिंदा वस्तुओं, पत्रों और वास्तविक चित्रों के दर्शन भी किए थे। उस दिन शायद पहली बार यह इच्छा जागृत हुई थी कि कम से कम उस जगह को भीतर जाकर देखना लेना चाहिए,जहां से गूंगी बहरी ब्रिटिश हुकूमत के कानों को बम धमाके की आवाज से खोलने का प्रयोग इन महापुरुषों की योजना से हुआ था। असेंबली में बम फेंकने की घटना बेशक कुछ लोग लाहौर समझते हों,लेकिन शहीद ए आजम भगत सिंह में गहरी रुचि रखने वाले अधिकांश लोग जानते है कि यह घटना ब्रिटिश शासनकाल में तत्कालीन काउंसिल हाउस दिल्ली सेंट्रल असेंबली में हुई थी और यहीं बम फेंका गया था,जहां देश के सबसे बड़े लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश की संसदीय कार्रवाई चलती है।
ब्रिटिश सेंट्रल असेंबली के बनने के दूसरे साल में बनी गूंगे बहरों के कान खोलने की योजना
बताते है कि यह भवन साल 1921 में बनना शुरु हुआ था और इसका निर्माण कार्य 1927 में पूरा हुआ,यह भवन आज भी काफी बुलंद और आकर्षक है। इसके निर्माण के करीब दो साल के भीतर ब्रिटिश शासन के कान खोलने के लिए 8 अप्रैल 1929 में यहां बम फेंका गया था। यकीनन इस घटना के बाद ब्रिटिश हुकूमत को पसीने छूट गए थे,मगर पसीना आज भी आता है। वो क्यों बताते हैं आपको,उस घटना को अब करीब सौ साल होने जा रहे हैं,मगर उसका असर आज भी इतना असरदार है कि अगर आप संसद भवन के भीतर प्रवेश दर्शक दीर्घा तक जाने का प्रबंध कर लेते हैं तो अनेक जगहों पर चेकिंग के साथ आप घड़ी,मोबाइल,पर्स,पेन,सिक्का (धातु से बनी मुद्रा),मेटल फ्रेम वाला आई कार्ड और सबसे बड़ी बात अपना पसीना पोंछने के लिए रूमाल तक नहीं ले जा सकेंगे। यानी 1929 के बाद पसीना छूटना अभी तक जारी है।तब उस दौर में असेंबली में बैठे माननीयों का पसीना छूटा था और अब संसद भेजने वाले स्थानीयों का पसीना छूटता है।वैसे पसीना सुखाने के लिए आप बचपन वाला हथियार यानी कुर्ते की बाजू का इस्तेमाल कर सकते हैं,शेष भीतर का जाकर फुली एयर कंडिशनर कुछ देर बाद आपका पसीना सुखा देगा।
तो सुनते ही यहां ठहर गई थी मेरी नजर
खैर, मंगलवार यानी 25 जुलाई को जब कुछ साथियों के साथ यहां पहुंचा तो यहां हमें रिसीव करने के लिए कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र के माननीय सांसद नायब सैनी और दो सहयोगी रवि और सौरभ मौजूद थे,स्वागत कक्ष में सांसद स्वयं आए और सभी साथियों का पास बनवा कर सीधे एंट्री की व्यवस्था भी कराई। इस दौरान संसद भवन के एक अधिकारी बीके रतूड़ी जी से संपर्क हुआ।बातचीत, व्यवहार और सहयोग की दृष्टि से बेहतरीन व्यक्ति लगे।उनसे कुछेक जानकारी भी हासिल की।उनके सहयोगी ने भीतर जाकर उस दीर्घा को दिखाया,जहां भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने अचानक अपनी कुर्सी से खड़े होकर अंग्रेजों के दमनकारी कानूनों के खिलाफ आवाज बुलंद करने के इरादे से बम फेंका और इंकलाब जिंदाबाद का गगनबेदी नारे लगाये थे।उन्होंने वह दो खंभे भी दिखाए, जहां यह बम जाकर गिरा था,लेकिन कोई जख्मी नहीं हुआ,उस बम के बारुद से केवल भारत के गुस्से गुबार उठा था।
दिल्ली में खिंचाई गई वो फोटो ही बनी क्रांति का सिंबल
दरअसल बम में इस तरह की कोई जहरीली वस्तु,कांच या लोहे के कील नहीं थे,जिससे किसी की जान को खतरा पैदा होता।कुछ दिन पहले इसी घटना पर चर्चा शुरु थी,लगभग सभी एक सुर में बोले,नहीं गलत, वो घटना तो लाहौर में हुई है। भई यह घटना लाहौर की नहीं है,क्रांतिकारी भगत सिंह इन बम फेंकते वक्त सिर पर जो विदेशी हैट पहना था,केवल उसकी खरीद लाहौर से खरीदा की गई थी। असेंबली की घटना को अंजाम देने से पहले क्रांति का सिंबल बन रहे भगत सिंह की एक खास मुद्रा में जो फोटो भी तैयार खिंचाई गई थी,जिसमें वह हैट पहने नजर आते हैं,वह कुछ ही दिन पहले दिल्ली कश्मीरी गेट स्थित रामनाथ स्टूडियो में खिचाई गई थी। बता दें कि शहीद ए आजम भगत सिंह की कुल 4 असली फोटो में से यह एक और उनका आखिरी असली फोटो है,जिसे मैं भी साझा कर रहा हूं वैसे आपने पहले भी देखा,सुना हो सकता है।असेंबली में बम फेंकने से दो दिन पहले भगत सिंह रामनाथ स्टूडियो पर यह फोटो लेने भी पहुंचे थे।
पहुंचे तो मणिपुर घटना की गूंज और सदन में घमासान
भगत सिंह,बटुकेश्वर दत्त जैसे अनेक क्रांतिकारियों की बदौलत भारत को 1947 में आजादी मिली और उसके बाद से अब यहां भारतीय संसद भवन है,जहां सुरक्षा के इतने पैने प्रबंध होने का बड़ा कारण दो दशक पहले हुई आतंकी घटना को माना जाता है। उसके बाद से यहां सुरक्षा घेरा और तगड़ा हो चुका है। 25 जुलाई 2023 को जब हम संसद पहुंचे तो मणिपुर की घटना के कारण सदन में घमासान मचा था।
घोड़े की चाल और कुरुक्षेत्र प्रस्थान
वैसे अपनी भी संसदीय कार्रवाई को देखने में व्यक्तिगत रुप से मेरी कोई रुचि नहीं थी,क्योंकि जब देश के माननीय वहां बैठकर सब कुछ काफी बेहतर ढंग से कर रहे हों तो बीच में कुछ क्षण के लिए हम नजर गढ़ा कर क्या कर लेंगे ? देखा तो टीवी पर भी जा सकता है,करोड़ों लोग देखते भी हैं। वैसे भी हमारे कार्रवाई देख लेने से होता भी क्या है। हम तो आम जनता हैं और आम और जनता दोनों चूसने के लिए होते हैं,वैसे भी सीजन चल ही रहा है। दूसरी बात ये कि यहां जो फैसले होते हैं, हमें जिम्मेदार नागरिक की तरह वे मानने हैं।फिर चाहे रामो वामो सामो, जिसकी भी सरकार हो। सरकार जो भी रोडमेप बनाये, हमें घोडे़ की तरह आंखों को इधर उधर घुमाए बगैर सीधा इसी रोडमेप पर दौड़ना है।और वे गधे हैं जो इस रोडमेप को छोड़कर फिजूल की बातें करना बेकार है। यहां का पूरा मर्म समझ आखिर मैं घोड़े के ढाई कदम चल कुरुक्षेत्र वापस पहुंचा।