न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र,21 नवंबर। कॉस्मिक एस्ट्रो के डायरेक्टर व श्री दुर्गा देवी मंदिर पिपली (कुरुक्षेत्र)के अध्यक्ष डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि कार्तिक मॉस के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को “गोपाष्टमी” के नाम जाना जाता है I यह पर्व रविवार 22 नवम्बर 2020 को मनाया जाएगा I यह पर्व ब्रज प्रदेश का मुख्य त्यौहार है I गोपाष्टमी पर्व अर्थात गायों की रक्षा, संवर्धन एवं उनकी सेवा के संकल्प का ऐसा महापर्व जिसमें सम्पूर्ण सृष्टि को पोषण प्रदान करने वाली गाय माता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु गाय-बछड़ों का पूजन किया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने जिस दिन से गौ चारण शुरू किया वह शुभ दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी का दिन था। इसी दिन से गोपाष्टमी पर्व का प्रारम्भ हुआ।
गोपाष्टमी का महत्व :
जब श्रीकृष्ण भगवान ने अपने जीवन के छठें वर्ष का शुभारम्भ किया । तब वे अपनी मां यशोदा से जिद्द करने लगे कि वह अब बड़े हो गए हैं और गाय चराना चाहते हैं। उनके हठ के आगे मां यशोदा कोहार माननी पड़ी और उन्हें अपने पिता नंद बाबा के पास आज्ञा लेने के लिए भेज दिया। उस दिन गोपाष्टमी थी और उसी दिन से श्री कृष्ण को गोपाल व गोविंद के नाम से भी जाना जाने लगा। आचार्य आनंद दुबे ने बताया कि ब्रज में इंद्र का प्रकोप इस तरह बरपा की लगातार बारिश होती रही, जिससे बचने के लिए श्री कृष्ण जी ने सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी अंगुली से उठाए रखा। गोपाष्टमी के दिन ही स्वर्ग के राजा इंद्र देव ने अपनी हार स्वीकार की थी। भगवन श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली से उतार कर नीचे रखा था। भगवान श्रीकृष्ण स्वयं गो माता की सेवा करते हुए, गाय के महत्व को सभी के सामने रखा।
गोपाष्टमी मनाने का कारण :
गौ अथवा गाय भारतीय संस्कृति का प्राण मानी जाती है I इसे बहुत ही पवित्र तथा पूज्यनीय माना जाता है। मानव जाति की समृद्धि गाय की समृद्धि के साथ जुड़ी हुई है। गोपाष्टमी के पावन पर्व पर लोगों गौ माता का पूजन-परिक्रमा कर विश्व की मंगल कामना की प्रार्थना करते है।
गाय आधिदैविक, अधिदैहिक एवं आधिभौतिक तीनों तापों का नाश करने में सक्षम है। इसी कारण अमृत तुल्य दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोमय तथा गोरोचन-जैसी अमूल्य वस्तुएं प्रदान करने वाली गाय को शास्त्रों में सर्व सुख प्रदायक कहा गया है।
गाय की पूजा करें और श्रेष्ठ पुण्य कमाएं :
गोपाष्टमी के दिन प्रातःकाल में ही गायों को स्नान आदि कराया जाता है और गऊ माता को मेहंदी, हल्दी, रोली के थापे लगाए जाते हैं। इस दिन बछड़े सहित गाय की पूजा करने का विधान है। धूप, दीप, गंध, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड़, वस्त्र आदि से गायों का पूजन किया जाता है और आरती उतारी जाती है। इसके बाद गायों को गो-ग्रास दिया जाता हैं। पौराणिक मान्यता है कि गाय की परिक्रमा करके गायों के साथ कुछ दूरी तक चलना भी चाहिए। ऐसा कर उनकी चरण रज को माथे पर लगाने से सुख- सौभाग्य में वृद्धि होती है। गाय की रक्षा एवं पूजन करने वालों पर सदैव भगवान श्री विष्णु की कृपा बनी रहती है। तीर्थों में स्नान-दान करने से, ब्राह्मणों को भोजन कराने से, व्रत-उपवास और जप-तप व हवन-यज्ञ करने से जो पुण्य मिलता है वहीं पुण्य गौ को चारा या हरी घास खिलाने अथवा किसी भी रूप में गाय की सेवा करने से प्राप्त हो जाता है।