पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आयुर्वेद शिरोमणि आचार्य बालकृष्ण के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में वैदिक ब्रम्हचारियों को पाठ्य सामग्री वितरित की गई।
न्यूज़ डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र । आध्यात्म प्रेरित सेवा संस्थान मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आयुर्वेद शिरोमणि आचार्य बालकृष्ण के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में वैदिक ब्रम्हचारियों को पाठ्य सामग्री वितरित की गई। कार्यक्रम का शुभारम्भ ब्रम्हचारियों द्वारा लोकमंगल के निमित्त स्वस्तिवाचन से हुआ। इस अवसर पर एक विचारगोष्ठी वैदिक सनातन संस्कृति के सम्पोषण एवं संरक्षण में संत समाज का अवदान विषय पर संपन्न हुई। विचार गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा भारत विश्व का सबसे प्राचीन राष्ट्र है। भारतीय संस्कृति के वैश्विक स्तर पर प्रचार प्रसार में देश के महान संतो की भूमिका सदैव बहुत महत्वपूर्ण रही है। सच्चे संत जाति, धर्म, मत, पंथ, सम्प्रदाय आदि दायरों से परे होते हैं। ऐसे करुणावान संत ही अज्ञान-निद्रा में सोये हुए समाज के बीच आकर लोगों में भगवद्भक्ति, भगवद्ज्ञान, निष्काम कर्म की प्रेरणा जगा के समाज को सही मार्ग दिखाते हैं, जिस पर चल के हर वर्ग के लोग आध्यात्मिकता की ऊँचाईयों को छूने के साथ-साथ अपना सर्वांगीण विकास सहज में ही कर लेते हैं। सभी में भगवद्-दर्शन करने की प्रेरणा देने वाले ऐसे संतों के द्वारा ही धार्मिक अहिष्णुता, छुआछूत, जातिगत भेदभाव, राग-द्वेष आदि अनेक दोष दूर होकर समाज का व्यापक हित होता है।ऐसे संतों का जहाँ भी अवतरण हुआ है वहाँ भारतीय संस्कृति के वैदिक ज्ञान का प्रचार-प्रसार होकर समाज में व्यापक परिवर्तन हुए हैं। डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा जब समाज में कई विकृतियाँ फैलने लगीं तब आद्य गुरु शंकराचार्य जी ने अपने शिष्यों के साथ भारत के कोने-कोने में घूम-घूमकर सनातन धर्म व अद्वैत ज्ञान का प्रचार किया। लौकिक और पारलौकिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, आर्थिक, राजनैतिक उत्थान के लिए शरीर, मन, बुद्धि आदि से की जाने वाली सम्यक चेष्टाएँ ही संस्कृति कहलाती है. यानी हम अपनी कर्म और ज्ञान इन्द्रियों के माध्यम से जीवन के चहुँमुखी समग्र विकास के लिए जो चेष्टाएँ करते हैं, वे संस्कृति हैं।संस्कृति के एक अंश को सभ्यता कहा जाता है. इन दोनों में कुछ फर्क है. संस्कृति का आधार अनुभव से प्राप्त ज्ञान है, जबकि सभ्यता बुद्धि द्वारा विकसित ज्ञान पर आधारित है. जो ज्ञान अनुभव से मिलता है, वह परिवर्तनशील नहीं होता, जबकि बुद्धि से मिला ज्ञान, यानी सभ्यता में बदलाव होता रहता है। डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा आचार्य बाल कृष्ण द्वारा आयुर्वेद के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर कार्य हुआ है। उनके द्वारा देशो आयुर्वेदिक औषधियों को खोज हुई है। आज आयुर्वेद, कृषि, पर्यावरण सहित विभिन्न क्षेत्रों में उनके द्वारा महत्वपूर्ण कार्य किया जा रहा है। योग ऋषि स्वामी रामदेव जी के सभी कार्यो के अनन्य सहयोगी के रूप में आचार्य बालकृष्ण अद्भुत प्रतिभा के धनी है। सनातन वैदिक संस्कृति के क्षेत्र में उनके द्वारा किये जा रहे समस्त कार्य अपने आप में बेमिशाल है। कुरुक्षेत्र संस्कृत वेद विद्यालय के आचार्य नरेश कौशिक ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। ब्रम्हचारी नवीन ने आभार ज्ञापन किया। कार्यक्रम का समापन आचार्य बालकृष्ण के सर्वमंगल के निमित्त वैदिक मंत्रोच्चारण से हुआ। कार्यक्रम में मिशन के विद्यार्थी, सदस्य एवं गणमान्य जन उपस्थित रहे।