वीर खुदीराम बोस की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में मातृभूमि सेवा मिशन के तत्वाधान में मातृभूमि शिक्षा मंदिर के बच्चों ने श्रद्धांजलि अर्पित कर नमन किया
वीर खुदीराम बोस को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा मात्र अठारह वर्ष 8 महीने 8 दिन की आयु में, 11 अगस्त 1908 को फांसी दे दी गई
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। देश की आज़ादी की लड़ाई में कुछ नौजवानों की शहादत ने स्वतंत्रता संग्राम का रुख बदलकर रख दिया था. एक ऐसा ही नाम खुदीराम बोस का भी है, जिन्हें 11 अगस्त 1908 को महज़ 19 साल की उम्र में फांसी दे दी गई थी। अंग्रेज़ी सरकार उस वक्त खुदीराम की निडरता और वीरता से इतना डरी हुई थी कि उन्हें इतनी कम उम्र में ही फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया। अपनी वीरता के लिए पहचाने जाने वाले खुदीराम हाथ में गीता लेकर खुशी-खुशी फांसी के फंदे पर चढ़ गए थे। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने वीर खुदीराम बोस की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किये। कार्यक्रम का शुभारम्भ भारतमाता एवं वीर शहीद खुदीराम बोस के चित्र पर माल्यार्पण एवं केपुषपारचन से हुआ। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के बच्चों ने खुदीराम बोस के चित्र के समक्ष श्रद्धांजलि अर्पित कर नमन किया।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा भारत वीरों की धरती रही है। कई वीर सपूतों की कुर्बानियों से हमने आजादी पाई है। उन वीर सपूतों में एक नाम है शहीद खुदीराम बोस का। उन्होंने सबसे कम उम्र में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए।देश की आजादी के लिए श्रीमदभगवदगीता ग्रंथ को लेकर खुशी खुशी फांसी पर चढ़ने वाले वीर खुदीराम बोस अदम्य साहस के क्रांतिकारी थे ।देश को आजादी दिलाने के लिए कुछ भी कर गुजरने की तमन्ना रखने वाले खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में हुआ था. वह 9वीं कक्षा में ही स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गए थे. 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में हुए आंदोलन में भी उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. खुदीराम की निडरता और आजादी के लिए उनके जज्बे को देखते हुए 28 फरवरी 1906 को सिर्फ 17 साल की उम्र में उन्हें पहली बार गिरफ्तार किया गया था, लेकिन वह अंग्रेजों को चखमा देकर जेल से भाग निकले थे। हालांकि, सिर्फ दो महीने के बाद उन्हें दोबारा पकड़ लिया गया था. इसके दो महीनें बाद वह फिर से पकड़ लिए गए पर गवाह ना होने के कारण उन्हें छोड़ दिया गया।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा भारतीय क्रांतिकारी संगठन “युगांतर” ने क्रूर न्यायाधीश “किंग्जफोर्ड” को मारने के लिए दो क्रांतिकारियों को चुना था। उनमें से एक “खुदीराम बोस” है और दूसरे का नाम “प्रफुल्ल कुमार चाकी” था। दोनों ने मिलकर न्यायाधीश किंग्जफोर्ड को मारने की योजना बनाई। लेकिन अत्यधिक प्रयास के बाद भी वह सफल नही हुए। ब्रिटिश अधिकारियों पर बम फेंकने के जुर्म में मात्र अठारह वर्ष 8 महीने 8 दिन की आयु में, 11 अगस्त 1908 को फाँसी दे दी गई, जिससे वह भारत के उन सबसे युवा क्रांतिकारियों में से एक बन गए जिन्हें अंग्रेजों ने फांसी दी थी।
फांसी के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गये कि बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे। बंगाल के राष्ट्रवादियों के लिये वीर खुदीराम बोस शहीद और अनुकरणीय हो सम्पूर्ण बंगाल के विद्यार्थियों तथा अन्य लोगों ने शोक मनाया। कई दिन तक स्कूल कॉलेज सभी बंद रहे और नौजवान ऐसी धोती पहनने लगे, जिनकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था। खुदीराम बोस का जीवन सदैव प्रत्येक भारतीय के लिए प्रेरणास्रोत रहेगा। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रीय गीत वन्देमातरम् से हुआ। कार्यक्रम में आश्रम के विद्यार्थी एवं सदस्य उपस्थित रहे।